गुड़िया भीतर गुड़ियाएं

हम सब गुस्से में हैं। हमारी
संवेदनाओं को एक  बार फिर
बिजली के नंगे तारों ने छू दिया है।
हम खूब बोल रहे हैं, लिख रहे हैं
लेकिन  कोई नहीं बोल रहा है तो
वो सरका र और
कानून व्यवस्था
  के लिए  ज़िम्मेदार लोग। खूब
बोल-लिख कर  भी लग रहा है कि
क्या यह काफी है ? कोई हल है हमारे पास कि  बच्चों
का  यौन शोषण न हो और बेटियों
के  साथ बलात्कार का  सिलसिला
रुक जाए। ऐसी जादू की  छड़ी किसी कानून के पास नहीं लेकिन
कानून लागू करने वालों के  पास
एक शक्ति है वह है इच्छा शक्ति।
ईमानदारी से लागू करने की  इच्छा
शक्ति। हमने किसी  भी सरकारी
मुखिया को  सख्ती से यह कहते
नहीं सुना कि  बहुत हुआ, अब और
नहीं। मेरे देश, मेरे प्रदेश में इस
तरह का कोई  भी अपराध बर्दाश्त
नहीं किया जाएगा। हर मुखिया
बचता नजर आता है। बयान आते
हैं पुलिस क्या करे वह हर दीवार,
हर कौने की  चौकसी नहीं कर
सकती; दुष्कर्म एक सामाजिक
अपराध है; कोई भी सरकार हो,
इलजाम तो सरकार पर ही लगते
हैं; ऐसे उबा देनेवाले बयानों की
लंबी फेहरिस्त है। कोई सख्त
आवाज नहीं गूंजती कि ऐसे
वहशियाना कृत्य को  अंजाम देने
वाले दरिंदों को  बख्शा नहीं
जाएगा। ऐसा  कोई संदेश जब
ऊपर से नहीं आता तो नीचे वाले
अपने आप ही मुक्त हो जाते हैं ।
दरअसल, हमारा समाज अब भी
की  मानसिकता में नहीं है। क्या
हुआ लड़के  ने जोर जबरदस्ती की
चलो शादी कर दो इन दोनों की ।
आज भी यही हल दिखाई देता है
बलात्कारियों का । इसकी  पुष्टि
पकडे़ गए आरोपी मनोज के घर
से भी होती है। दिल्ली में पांच
साल की  बच्ची से दुराचार करने
वाले मनोज ने अपनी पत्नी के
साथ भी यही हरकत की  थी।
पंचायत ने फिर उनका  ब्याह करा
दिया। अपनी साली के  साथ भी
यही व्यवहार दोहराया था और पांच
साल की  मासूम से पहले भी वह
न जाने कितने बच्चों को  अपना
शिकार बना चुका  हो। जरूरी नहीं
कि  इसमें बेटियां ही हों। बेटे भी तो
हो सकते हैं। लड़कों के  माता-पिता
को कतई बेखौफ होने की
जरूरत नहीं।
हम इस अपराध को  अपराध
ही नहीं मानते शायद तभी हर
लड़की  का  अपने जीवन में ऐसे कई अपराधियों से सामना होता
है। घर, छत, गली, थिएटर,
बाथरूम, यहां तक कि  पूजा स्थलों
पर भी ऐसे शिकारी घात लगाए
बैठे होते हैं। लड़की खुद को बचने में  ऊर्जा खर्च
करती हैं वहीं ये दुराचारी अपनी
कुचेष्टाओं को  धारदार बनाने में
लगे रहते हैं। यह जितना प्रचलित
है उतनी ही प्रचलित है घरवालों
की लापरवाही। हर लड़की को  यह
घुट्टी पिला दी जाती है कि  चुप रह,
ज्यादा शोर न मचाना। दुष्कर्मी
पहला शिकार परिवार से ही ढूंढता
है और जब परिवारों की चुप्पी  उसे
शह देती है तो वह निरंकुश हो
जाता है।
इन घटनाओं को  लड़कियों
की  इज्जत से जोड़कर देखा जाता
है। अपराध सहते रहो तो इज्जत
बरकरार है और ज्यों ही आवाज
उठाई वह तार-तार हुई। यह कैसी
इज्जत है जो चुप्पी  से चलती है।
हरकत करने वाला बाइज्जत बरी
और लड़की  बेइज्जत। अभी भी
कई जगह लिखा जा रहा है कि
गुडि़या की  अस्मत की कीमत
पुलिस ने दो हजार रुपए लगाई।
पुलिस की  यह भूमिका  बड़ी रोचक
है। जो पेशकश   अपराधी की  ओर
से होनी चाहिए थी वह पुलिस की
ओर से हो रही थी यानी
अपराधी-पुलिस भाई-भाई।
पांच साल की  गुडिय़ा अकेली
नहीं है। गुडिय़ा भीतर कई
गुडिय़ाएं हैं असंख्य अपराधियों से
घिरीं। एक  समय था डायन, सती,
विधवा प्रताडऩा, नाता जैसी कई
कुप्रथाओं से घिरा था समाज।
राजा राममोहन राय, दयानंद
सरस्वती जैसे समाज सुधारकों  ने
लंबी लड़ाई लड़ी। यह लड़ाई
मुसलसल यानी लगातार जारी
रहनी चाहिए थी। आज उस
भूमिका  में कोई नहीं रह गया है।
दुष्कर्म, अपचार जैसी सामाजि·
बुराईयां बढ़ी हैं। यह दो
राजनैतिक  दलों के  लचर बयानों
से नहीं जानेवाली। इन दलों का
लक्ष्य समाज को  स्वस्थ और
मजबूत बनाने का  नहीं बल्कि सत्ता
प्राप्ति का  है। इनसे और इनके
सिस्टम से न्याय मिलेगा इसमें
संदेह है हर भारतवासी को .

टिप्पणियाँ

  1. हृदयस्पर्शी और सार्थक रचना...

    सादर
    अनु

    जवाब देंहटाएं
  2. सच में संदेह है...... अपने प्रशासन और समाज से यह निराशा मिलना दुखद है

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही मार्मिक वर्णन |

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

    जवाब देंहटाएं

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