ऑपरेशन सिंदूर : पक्ष और विपक्ष के बीच बुलंद हुई निर्दलीय आवाज़

ऑपरेशन सिंदूर पर लोकसभा में चली सोलह घंटे की बहस जब मंगलवार को पूरी हुई तो साफ़ हो गया कि देश के पास ऐसे धुरंदर नेता हैं जो सरकार की आंख में आंख डाल कर बात करते हैं और सटीक सवाल करते हैं। उधर सरकार भी भले ही भाग नहीं रही थी लेकिन जवाब देने में उसे भी बड़ी तैयारी और मेहनत और लग रही थी। देश के हर हिस्से से शामिल सांसदों की यह ज़रूरी और अच्छी बहस थी। फिर भी विपक्ष को शायद इस बात का मलाल हो सकता है कि कुछ जवाब उसे नहीं मिले जैसे पहलगाम में पर्यटकों की सुरक्षा में चूक क्यों हुई ;ख़ुफ़िया तंत्र विफल क्यों रहा ;अमेरिका ने बीच ऑपरेशन में भांजी क्यों मारी ; हमारे कितने लड़ाकू विमान नष्ट हुए और चीन-पाकिस्तान एक मंच पर साथ आने की समझ सरकार को क्यों नहीं हुई। बेशक सरकार ने अपना पक्ष रखने की पुरज़ोर कोशिश की लेकिन बीच -बीच में जब भी देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू का ज़िक्र आ जाता था तो लगता कि सरकार जैसे अब तक किसी नेहरूफोबिया से ग्रस्त है और हर मौके पर उन्हें किसी ढाल की तरह ले ही आती है। बेशक बंटवारा हमारी दुखती रग है लेकिन हम कब तक उस घाव को हरा रखेंगे, सिर्फ ...