हिंद की सेना का जवाब कि हां तुम एक विफल राष्ट्र हो


पाकिस्तान एक विफल देश है क्योंकि इसका जन्म ही नफ़रत की बुनियाद पर हुआ है। अंग्रजों से आज़ाद होते ही भारत का बंटवारा हुआ और मानवता ने जिस वीभत्स मंज़र को देखा,उसकी मिसाल कम मिलती हैं। कई कलाकार, लेखक और पॉलिटिशियन मज़हब के आधार पर बंटे पाकिस्तान  में चले तो गए लेकिन उम्र भर सिर्फ हिंदुस्तान को ही याद करते रहे, अपने दोस्तों से मिलने के लिए तड़पते रहे जैसे उन्हें यह अहसास हो गया था कि ग़लती हो चुकी है और समय का पहिया अब पीछे नहीं खींचा जा सकता। जो लिख सकते थे, उनके शब्दों में यह दर्द बयां हुआ और बा



क़ी अपने दिलों में इस टीस के साथ ज़िंदा रहे। मशहूर और बेहतरीन कहानीकार सआदत हसन 'मंटो' (दो दिन बाद उनकी सालगिरह है) उन्हीं में से एक थे। उन्होंने विभाजन के समय हुए दंगों की त्रासदी को भीतर तक उतारा और फिर पन्नों पर। 'टोबा टेकसिंह' और 'खोल दो' उनकी ऐसी ही महान रचनाएं हैं। मंटो दोस्तों को अक्सर लिखा करते थे कि यार मुझे वापस बुला लो। उन्होंने ख़ुदकुशी की नाकाम कोशिश भी की थी। वे बहुत कम (43) उम्र जी पाए जैसे चिंता और जीवन का कोई गहरा रिश्ता हो। यूं तो मंटो के बारे में कहने को इतना कुछ है कि मंटो पढ़ाई-लिखाई में कुछ ख़ास नहीं थे कि मंटो कॉलेज में उर्दू में ही फ़ेल हो गए थे कि वे बेहद निडर थे कि उनकी कई कहानियों पर अश्लीलता के मुक़दमे चले और उनकी कहानियां तो बस इंसान को चीर के ही रख देती हैं। विभाजन से पहले के बॉम्बे में उनके किस्से -कहानियां फिल्म इंडस्ट्री की जान हुआ करते थे।  बेशक मंटो का फिर पैदा होना मुश्किल है लेकिन अफ़सोस यह भी कि एक बेहतरीन कथाकार नफ़रत की भेंट चढ़ गया और असमय मौत की नींद सो गया। 

ऐसे ही एक शायर रईस अमरोही थे जो जॉन एलिया के बड़े भाई थे, वे भी बंटवारे को बर्दाश्त नहीं कर पाए। उनका परिवार उत्तरप्रदेश के अमरोहा का था जो 1947 में पाकिस्तान चला गया। उनकी मेटाफिजिक्स ,ध्यान और योग पर कई किताबें प्रकाशित हुई उनका भी दिल केवल भारत के लिए धड़कता रहा। वे लिखते हैं -

हिन्द की बहारों ,तुम को सलाम पहुंचे 

बिछड़े हुए नज़ारों तुम को सलाम पहुंचे 

भारत के चाँद तारों ,तुम को सलाम  पहुंचे 

बरसों के बाद यारों तुम को सलाम पहुंचे 

ये नामा-ए -मोहब्बत यारों के नाम ले जा 

ओ हिंद जाने वाले मेरा सलाम ले जा। 

उनकी ऐसी कई नज़्मों का ज़िक्र और प्रकाशन विदेश सेवा के अधिकारी और सांसद रहे मणि शंकर अय्यर ने अपनी किताब 'पाकिस्तान पेपर्स' में किया है। रईस अमरोही की 1988 में एक कट्टरपंथी समूह ने उनकी लाइब्रेरी में ही हत्या कर दी। कट्टरपंथी केवल किसी धर्म के ख़िलाफ़ नहीं होते वे, हर उस व्यक्ति के ख़िलाफ़ होते हैं जो उदारता की बात करता है, तरक़्क़ी की बात करता है,शांति की बात करता है । वे ख़ुद में एक ज़िंदा बम होते है। ऐसे बीमार जिन्हें ताज़ा हवा कभी छूकर भी नहीं गुज़री होती। शक और डर में जीने वाले हैवानों का कुनबा जो निर्दोषों का खून बहाना जानता है। वे ही 22 अप्रैल को पहलगाम आए थे और कई स्त्रियों का सिंदूर उजाड़ गए । खुद मोहम्मद अली जिन्ना जिन्हें पाकिस्तान का जनक और क़ायदे आज़म बताया जाता है वे भी अपनी ज़िन्दगी में ही अनुभूत कर चुके थे कि पाकिस्तान का बनाना उनकी ग़लती थी। वे पाकिस्तान बनने के बाद केवल एक साल ज़िंदा रहे। मज़हब के आधार पर एक देश बनाने वाले ने कहा था -" पाकिस्तान कोई ईश्वर शासित राज्य नहीं होगा जहां पीर-पुज्जे किसी खास मक़सद से राज करेंगे। देश में कई गैर मुस्लिम भी हैं जिन्हे  समान अधिकार होंगे और वे मिलकर पाकिस्तान की तरक्की में शामिल होंगे।" अफ़सोस ऐसा हो न सका क्योंकि बुनियाद ऐसी नहीं थी। 

पिछले दिनों पहलगाम आतंकी हमले से कुछ दिन पहले hi पाकिस्तान के आर्मी चीफ जनरल असीम मुनीर का  द्वि-राष्ट्रवाद के सिद्धांत का उल्लेख भी यही बताता है कि कैसे एक विफ़ल राष्ट्र को जब-तब अपने किएधरे को उचित बताने की नाकाम कोशिश करनी पड़ती है। इससे पहले मुनीर एक अन्य कार्यक्रम में  कश्मीर को पाकिस्तान के ‘‘गले की नस'' बताया था। मुनीर ने कहा- ‘‘द्वि-राष्ट्र सिद्धांत इस बुनियादी मान्यता पर आधारित था कि मुसलमान और हिंदू दो अलग-अलग मुल्क हैं, एक नहीं। मुसलमान जीवन के सभी पहलुओं-धर्म, रीति-रिवाज, परंपरा और सोच में हिंदुओं से अलग हैं। ''तब सवाल यही है कि बांग्लादेश क्यों पाकिस्तान से अलग हुआ और बलूच, सिंधी क्यों नाखुश हैं ? पाक सेना के प्रमुख यहां बुरी तरह फ़ेल हुए हैं और फ़ेल हुआ है उनका मज़हब के आधार पर दो राष्ट्र बनाने का सिद्धांत। 

साफ़ है कि कैसे एक विफल राष्ट्र का सेनाध्यक्ष अपनी सोच को सही बताने के इरादे से  कुतर्क का सहारा लेने लगता है जबकि भारत का सच दुनिया के सामने है। इसकी वजह जिन्ना के समकालीन हमारे नेताओं की दृष्टि और सोच है। पाकिस्तान के मज़हबी आधार पर निर्माण के बावजूद उन्हें कोई दुविधा नहीं थी कि वे भविष्य में कैसा भारत बनाएंगे। उन्होंने विश्व का बेहतरीन संविधान गढ़ा। देश जहां हर वर्ग, धर्म के नागरिक समान और मौलिक अधिकारों के दायरे में होंगे। कोई भेदभाव नहीं होगा। आज भारत और पाकिस्तान दोनों कहां खड़े हैं? उसके पीछे 1947 की भीषण त्रासदी के बावजूद हमारे नेताओं की सर्वधर्म समभाव की सोच रही। इस सोच का परिचय भारतीय सेना ने बुधवार को तब भी दिया जब दो महिला अधिकारियों ने ऑपरेशन सिंदूर की जानकारी दुनिया से साझा की। उन्होंने भारतीय सेना और वायु सेना की संयुक्त प्रेस ब्रीफिंग की। विंग कमांडर व्योमिका सिंह और कर्नल सोफिया कुरैशी ने विदेश सचिव मिसरी के साथ ऑपरेशन सिंदूर की जानकारी देते हुए मंगलवार रात एक बजे से डेढ़ बजे तक पाकिस्तान में निशाना बनाए गए ठिकानों के नाम और विवरण साझा किए। सिग्नल कोर की अधिकारी सोफिया कुरैशी ने हिंदी में बात की, जबकि विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने अंग्रेजी में बात कही। कर्नल सोफिया ने 2016 में बहुराष्ट्रीय क्षेत्र प्रशिक्षण अभ्यास में सेना के प्रशिक्षण दल का नेतृत्व भी किया था। उनके परिवार की पृष्ठभूमि सेना में सेवा देने की रही है। सोफिया कुरैशी के पिता ताज मोहम्मद कुरैशी ने कहा- "हमें बहुत गर्व है। हमारी बेटी ने हमारे देश के लिए बहुत बड़ा काम किया है। पाकिस्तान को नष्ट कर देना चाहिए। मेरे दादा, मेरे पिता और मैं सभी सेना में थे । अब वह भी सेना में है।" ऑपरेशन सिंदूर के साथ यह काफ़ी है पाकिस्तान को भारत के अब तक के सफर और सोच को बताने के लिए। 

उधर पाकिस्तान के सूचना मंत्री और पूर्व विदेश मंत्री हिना रब्बानी खर ने कई विदेशी चैनलों को साक्षात्कार दिए लेकिन आतंकवादियों को पनाह देने के ख़िलाफ़ उनके पास कोई जवाब नहीं था क्योंकि पूरी दुनिया जानती है कि अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान में घुस कर मारा था।स्काई न्यूज़ की एंकर यालदा हकीम को वहां के रक्षा मंत्री कह ही चुके हैं कि हां हम अतीत में आतंक को प्रायोजित करते रहे हैं।भारत के ख़िलाफ़ आतंक का प्रयोग पाकिस्तान की सेना और शासन  दोनों के लिए खाद-पानी का काम करता रहा है । उनका लोकतंत्र हमेशा सेना की बैसाखियों पर सवार रहा। पहलगाम नरसंहार के बावजूद भारतीय सेना ने  सुरक्षात्मक रवैया अपनाया है। कोई सैनिक और नागरिक ठिकानों को निशाना नहीं बनाया क्योंकि युद्ध खुद एक मसला होता है किसी  मसले का हल नहीं।  







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