कमंडल को चाहिए मंडल का टेका
अब तक कमंडल से अपनी राजनीति को चमकाने वालों को अचानक मंडल की याद आ गई है, वह भी तब जब देश पहलगाम आतंकी हमले के बाद सरकार से बड़े एक्शन की उम्मीद कर रहा था। मुख्य धारा के मीडिया ने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ ऐसा माहौल तैयार कर दिया था कि लगने लगा था कि सरकार घर में घुसकर मारने की नीति टाइप किसी कदम का खुलासा देशवासियों से करेगी। ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और बुधवार को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट की राजनीतिक मामलों की समिति ने आगामी जनगणना के साथ जाति की गिनती कराने का फ़ैसला कर लिया। आज़ादी के बाद पहली बार देश के नागरिकों से उनकी जाति पूछी जाएगी। अब तक अनुसूचित जाति और जनजाति को अवश्य गिना जाता था लेकिन अब शायद अन्य पिछड़ा वर्ग का बढ़ता संख्याबल सरकार को इस निर्णय के लिए मजबूर कर रहा है। विपक्ष जिसकी जितनी आबादी उतनी उसकी भागीदारी का नारा पहले ही बुलंद किये हुए था। ऐसे ही मकसद में सरकार की दिलचस्पी होगी तो फिर इस मासूमियत पर कौन न फ़िदा हो जाए। इसमें कोई शक नहीं कि इस मसले पर देश जिस नेता को लगातार बोलते हुए देख-सुन रहा था वो राहुल गांधी थे । इस हद तक कि लगभग ऊब होने लगी थी लेकिन राहुल गांधी थकते नहीं थे। वे जनसभाओं से लेकर संसद तक बस इसी जातीय जनगणना की बात करते थे। एक बार तो उन्हें अपमानित करते हुए केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कह दिया था कि जिसकी जात का पता नहीं वो गणना की बात करता है। आम भारतीय बोलचाल में यह किसी गाली से कम नहीं था लेकिन राहुल गांधी ने इस गाली का जवाब भी संसद में दिया था और कहा था-"जो भी दलितों की, पिछड़ो की बात करता है उसे गालियां खाना ही पड़ता है। अर्जुन को मच्छी की आंख दिख रही थी, ठीक वैसे ही मुझे भी मच्छी की आंख दिख रही है और जातीय जनगणना हम करा के रहेंगे।"
ज़ाहिर है लगातार बोलते रहना ही सियासत में फलदाई ज़मीन तैयार करता है। अब घोषणा के तुरंत बाद भी राहुल गांधी रुके नहीं हैं। उन्होंने कह दिया है कि हम तय करेंगे कि सरकार 50 फ़ीसदी की सीलिंग भी बदले और आगे की नीतियां हम डिज़ाइन करेंगे क्योंकि हमारे पास तेलंगाना और कर्नाटक का डाटा है। वह निजी संस्थानों में भी आरक्षण लागू करने की मुद्रा में दिखाई दिए। फिलहाल ऐसा लगता है जैसे पहलगाम के बाद विपक्ष जिस तरह सरकार के साथ खड़ा था ,जाति जनगणना के मुद्दे पर सरकार विपक्ष के साथ आकर खड़ी हो गई है। अब किसके 'मास्टर स्ट्रोक' में ज़्यादा दम है गणना इस बात की होनी चाहिए। खैर मज़ाक से अलग जब पहलगाम हमले के जवाब के इंतज़ार में बैठे मीडिया से केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने जब यह बात साझा की तो वाकई यह सबके लिए चौंकने का समय था। शुरुआत में अश्विनी वैष्णव ने केन्द्रीय मंत्रिमंडल के शिलॉन्ग से सिलचर तक हाई-स्पीड कॉरिडोर हाईवे परियोजना, किसानों के लिए गन्ने के उचित मूल्य की जानकारी दी और आखिर में जब प्रेस ब्रीफिंग खत्म होने वाली थी तभी उन्होंने चुपचाप पॉकेट से एक पर्चा निकालकर जाति जनगणना वाली बात पढ़ दी और आदतन जनगणना ना होने पाने की वजह भी कांग्रेस के माथे मढ़ दी। यह सच है कि अंग्रेज जातियों की जनगणना कराता था लेकिन आज़ाद भारत के नेताओं ने इसे नहीं करवाना चाहा था ताकि देश मोटे तौर पर कई उपजातियों में ना बंटे।
इस सरकार ने कोविड महामारी के दौरान टाली गई सामान्य जनगणना को भी अब तक नहीं किया है। अंतिम बार यह 2011 में हुई थी और 2021 में होनी थी। 2025 के बजट में भी जनगणना का धन शामिल नहीं है इसलिए इसमें और देरी हो सकती है। शायद अगले आम चुनाव से पहले देश को ये आंकड़े मिलें। फिलहाल तो देश की सारी नीतियां और योजनाएं इन्हीं पुराने आंकड़ों पर चल रही हैं या यूं कहे कि इस सियासत को इन आंकड़ों की ज़रूरत ही कहां है। धर्म की राजनीति बराबर प्रभावी और नतीजे देने वाली रही है। दो साल पहले सरकार की दिलचस्पी नवजात बच्चे और उसके माता -पिता का धर्म जानने में हो गई थी। भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने जन्म-पत्र के फॉर्म नंबर एक में धर्म के सवाल को जोड़ दिया गया था। अब शायद जातियों में भी रूचि हो गई है। अभी पिछले हफ्ते ही छत्तीसगढ़ भारतीय जनता पार्टी का ही एक पोस्टर सोशल मीडिया में खूब तैर रहा था। पोस्टर में पहलगाम आतंकी हमले में पत्नी का पति के शव के साथ विलाप का स्केच था जिस पर लिखा था - 'धर्म पूछा जाति नहीं.... याद रखेंगे।' ज़ाहिर है पार्टी धर्म को पहले रखने की हामी रही है जाति की नहीं। फिर क्या हुआ कि सरकार को सोच और नीति में यूं बदलाव करना पड़ा ? अचानक 'देश तोड़ने वाला काम' देशहित में कैसे हो गया ? देशद्रोही देशभक्त कैसे हो गए?
देश ने बीते कुछ सालों में देखा है कि वह पूरे समय बस चुनाव की नाव में तैरता रहता है। इस नाव में बैठकर ही सबको वैतरणी पार करनी है। हर फ़ैसला सिर्फ चुनाव है। हर घटना,हर उत्सव बस एक चुनाव हैं। चुनाव के बाद सरकारें भी चुनाव हैं। लोकसभा चुनाव में भाजपा का 240 सीटों पर सिमटना और उत्तरप्रदेश में उसके गणित का बिगड़ना भी एक वजह है। ऐसे में जातियों को गिन कर सही उम्मीदवार उतार कर, दृश्य को बदला जा सकता है। विशेषज्ञ कहते हैं मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी की राजनीति को हिंदुत्व के साथ सामाजिक न्याय के पहलू को जोड़ने की ज़रूरत नहीं है। आक्रामक हिंदुत्व से केवल 18 से 20 फीसदी मतदाताओं का समर्थन मिलता है। दलित जातियां इससे छिटक जाती हैं। भगवा और नीले झंडों में प्रतिस्पर्धा का नज़ारा दिखाई दे रहा है। समाजवादी पृष्ठभूमि का ओबीसी समाज भी इससे चौंक जाता है। ज़ाहिर है पार्टी इस संतुलन को साधने की कोशिश में है। बिहार में पिछली सरकार जो यूपीए की रही वह जाति जनगणना करा चुकी थी। तेलंगाना में भी यह गणना हो चुकी है और कर्नाटक में भी। राहुल गांधी भी संसद में ख़म ठोक चुके हैं कि अर्जुन के जैसे ही उन्हें भी मच्छी की आंख दिख रही है और जातीय जनगणना करा के रहेंगे। वे द्रोणाचार्य द्वारा गुरुदक्षिणा में एकलव्य का अंगूठा लिए जाने का उदाहरण देकर भी कह चुके हैं कि आपने किस-किस का अंगूठा काटा है ,हम यह जानकर ही दम लेंगे। अब इस महत्वपूर्ण घोषणा के बाद भाजपा के नेताओं और प्रवक्ताओं की बड़ी दुविधा हो गई है कि आखिर जातीय जनगणना के ख़िलाफ़ दिए गए बयानों से किस तरह मुंह फेरें। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था -"जो करेगा जात की बात, उसको मारूंगा कस के लात", महाराष्ट्र चुनाव से पहले 'एक हैं तो सेफ हैं ' का नारा स्वयं प्रधानमंत्री ने बुलंद किया था। दिलचस्प यह देखना भी होगा कि इस गणना के बाद योगी 'बटेंगे तो कटेंगे' में क्या संशोधन करते हैं।
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Cabinet minister Ashwini vaishnav in a press conference about caste census |
बिहार में इस साल नवंबर में चुनाव होने हैं। पहलगाम हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सऊदी अरब की यात्रा बीच में छोड़ देश लौटे और फिर वे बिहार गए। इससे पहले एक बड़ी बैठक में उन्होंने दुश्मन देश पाकिस्तान को कड़ी चुनौती दी। फैसला सेना के हाथ छोड़ा और खुली छूट की बात भी कही। इससे पहले 2019 में आतंकवादियों ने पुलवामा की घटना को अंजाम दिया था। इस हमले में 42 सीआरपीएफ के जवान शहीद हो गए थे। जवाब नहीं मिला की विस्फोटक किसकी चूक से भीतर आया था। चूक पहलगाम में भी हुई कि जहां इतने सैलानी था वहां सुरक्षा बल क्यों नहीं था ?तब भी बिहार जनसभा में प्रधानमंत्री ने कहा था -"इस देश में जितना आक्रोश है, लोगों का खून ख़ौल रहा है इस समय जो देश की अपेक्षाएं हैं, कुछ कर गुजरने की भावना है। वो भी स्वाभाविक है। हमारे सुरक्षा बलों को पूर्ण स्वतंत्रता दे दी गई है । मैं आतंकी सांगठनों और उनके सरपरास्तों को कहना चाहता हूं कि वे बहुत बड़ी ग़लती कर चुके हैं। बहुत बड़ी कीमत उनको चुकानी पड़ेगी " एक बार फिर बड़ी कीमत देश के नागरिकों ने चुकाई है।सवाल उठता है कि सेना को दी गई छूट की अवधि क्या थी ?छूट थी तो फिर यह चूक किसकी है ? बहरहाल जाति जनगणना के फैसले के बीच ओमप्रकाश वाल्मीकि की कविता 'ठाकुर का कुआँ ' याद आती है कि अब सब अपना होगा।
चूल्हा मिट्टी का
मिट्टी तालाब की
तालाब ठाकुर का।
भूख रोटी की
रोटी बाजरे की
बाजरा खेत का
खेत ठाकुर का।
बैल ठाकुर का
हल ठाकुर का
हल की मूठ पर हथेली अपनी
फ़सल ठाकुर की।
कुआँ ठाकुर का
पानी ठाकुर का
खेत-खलिहान ठाकुर के
गली-मुहल्ले ठाकुर के
फिर अपना क्या?
गांव ?
शहर?
देश?
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