पाकिस्तान :' टू ' मैनी नेशन थ्योरी
टू नेशन थ्योरी के आधार पर बना कृत्रिम राष्ट्र पसकिस्तान अब कई राष्ट्र वाला बनने जा रहा है। बांग्लादेश के बाद अब बलूचीस्तान ने अपना झंडा लहरा दिया है।
लगता है कि पाकिस्तान का एक और हिस्सा उसके गले की नस बनने जा रहा है। पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष आसिफ़ मुनीर ने पिछले महीने ज़रूर कश्मीर को अपने गले की नस बताया था लेकिन सच्चाई यह है कि अब जिसने पाकिस्तान की नाक में विध्वंस मचा रखा है, वह उसी के देश का अपना हिस्सा बलूचिस्तान है। 'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद एक बलोच नेता मीर यार बलूच ने बलूचिस्तान को आज़ाद घोषित कर दिया है बाक़ायदा अपने एक झंडे और राष्ट्रगीत के साथ। बलूच जनजाति का संघर्ष यूं तो सदियों पुराना है लेकिन कुछ समय से यह सतह पर है जिसका जन्म पाकिस्तान बनते ही हो गया था। पाकिस्तान ने हमेशा इस संघर्ष को विद्रोह मानकर कुचलने की कोशिश की। देश का सबसे बड़ा और संसाधनों के हिसाब से बेहद समृद्ध हिस्सा होने के बावजूद बलूचिस्तान को कोई तवज्जो नहीं मिली। पाकिस्तान में पहले दिन से ही पंजाब मूल के हुक्मरानों, सेनाध्यक्षों और बुद्धिजीवियों का दबदबा रहने से उसके अन्य हिस्से छिटके ही रहे। सिंध, खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान जैसे सूबे हमेशा विकास से कटे रहे।नतीजतन वहां की जनता आज भी ग़रीबी और अशिक्षा से ग्रस्त है। उस पर दुविधा यह है कि पाकिस्तान पर राज करने वाले कभी परवाह भी नहीं करते कि इन विद्रोहियों से बातचीत कर कोई रास्ता निकाला जाए।
बलूचियों को यह भी लगता है कि पाकिस्तान ने अपने बदहाल आर्थिक तंत्र को दुरुस्त करने के लिए चीनियों को उनके इलाके में बुला लिया है। चीन ने 62 अरब डॉलर का भारी निवेश किया है और वह बलूचिस्तान में ग्वादर पोर्ट को संचालित करता है। चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपैक) के तहत इस बंदरगाह से चीन जहां दुनिया से जुड़कर अपना माल बेचने की राह आसान करता है, वहीं बलूची मानते हैं कि यह उनकी आज़ादी में दख़ल है और उनकी ज़मीन पर कब्ज़े की साज़िश है। चीन का विस्तारवादी अतीत भी उन्हें ऐसा सोचने पर मजबूर करता है। बलूचिस्तान न केवल पाकिस्तान का सबसे बड़ा राज्य है बल्कि प्राकृतिक गैस, सोना, तांबा, रेडियम जैसे कई महत्वपूर्ण खनिजों के भंडार भी वहां हैं। पहले-पहल सिंगापुर की एक कंपनी इसका संचालन कर रही थी, फिर चीन ने इसे अपने ही देश की कंपनी को दे दिया। चीन यहां काम करते रहने के लिए अपनी सेना रखना चाहता है क्योंकि छह महीने पहले उसके पांच इंजीनियर यहां मारे जा चुके हैं। पाकिस्तान के बारे में यह कहना ग़लत नहीं होगा कि अपने खस्ताहाल अर्थतंत्र को ज़िंदा करने के लिए चीन एक बड़े उत्प्रेरक के रूप में वहां काम कर रहा है और पाकिस्तान यह कीमत अपने सूबों का दमन करके दे रहा है। दमन का यह सिलसिला ऐसा रहा कि एमनेस्टी इंटरनेशनल की रपट के मुताबिक 2011 से अब तक दस हज़ार बलूच गायब कर दिए गए हैं।
पाकिस्तान के ख्यतिनाम पत्रकार हामिद मीर के लफ़्ज़ों में लिखी यह कहानी बताती है कि पाकिस्तानी शासक किस कदर बलूचियों के प्रति क्रूर रहे हैं। वे लिखते हैं- "यह सिर्फ एक लड़की की कहानी नहीं है, बल्कि बलूचिस्तान की हजारों माताओं, बेटियों, बहनों और पत्नियों की कहानी है। सामी दीन को तब से जानता हूं, जब वह सिर्फ 10 साल की थी। उसके पिता डॉ. दीन मोहम्मद बलूच बलूचिस्तान के खुजदार जिले के ओरनाच में एक सरकारी अस्पताल में डॉक्टर थे। 28 जून 2009 को उन्हें पाकिस्तानी सुरक्षा बलों ने बलूच अलगाववादियों के साथ संबंध होने के संदेह में गिरफ्तार कर लिया। लेकिन उन्हें कभी किसी अदालत में पेश नहीं किया गया। उनकी पत्नी और स्कूल जाने वाली दो बेटियों ने अदालत में याचिका दायर की, लेकिन उन्हें कभी न्याय नहीं मिला। एक दिन 10 साल की सामी अपने पिता के लिए आवाज उठाने इस्लामाबाद आई। मैंने उसे प्रेस क्लब के सामने देखा। उसके हाथ में अपने पिता की तस्वीर थी। वह बलूचिस्तान के अन्य लापता लोगों के परिवारों के साथ बैठी थी। सामी की बस यही मांग थी कि अगर उसके पिता किसी अवैध गतिविधि में शामिल हैं, तो उन्हें अदालत में पेश किया जाए, वरना रिहा किया जाए।"
हामिद आगे लिखते हैं- "फरवरी, 2014 में, जब वह सिर्फ 15 साल की थी, एक ऐतिहासिक लॉन्ग मार्च का हिस्सा बनी। यह मार्च क्वेटा से कराची और फिर कराची से इस्लामाबाद तक (2,000 किलोमीटर) किया गया था, जिसमें बलूचिस्तान में जबरन गायब किए गए लोगों के मुद्दे को उठाया गया था। इस मार्च की अगुवाई सामी के मामा 72 वर्षीय कदीर बलूच कर रहे थे। जब वे इस्लामाबाद पहुंचे, तो मैंने अपने टीवी शो में मामा कदीर और सामी को आमंत्रित किया, लेकिन मेरे शो से कुछ मिनट पहले पाकिस्तानी सेना के तत्कालीन प्रवक्ता जनरल असीम सलीम बाजवा मेरे ऑफिस आए और मुझसे इंटरव्यू न लेने के लिए कहा। मैंने मना कर दिया। शो के दौरान जब ब्रेक हुआ, तो मुझे तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का फोन आया, जो मेरा शो देख रहे थे। उन्होंने इन बलूच कार्यकर्ताओं से मिलने की इच्छा जताई। मैंने अगले दिन सुबह 11 बजे उनकी मुलाकात तय कर दी। सामी इस बात से बेहद उत्साहित थी कि वह प्रधानमंत्री से मिलेगी और फिर उसके पिता लौट आएंगे, पर उसी रात मामा कदीर, सामी और अन्य प्रदर्शनकारियों को इस्लामाबाद से जबरन बाहर निकाल दिया गया। खुफिया एजेंसियों ने प्रधानमंत्री को कभी भी बलूच कार्यकर्ताओं से मिलने नहीं दिया। कुछ हफ्तों बाद कराची में मुझ पर एक जानलेवा हमला हुआ। मुझे छह गोलियां लगीं, लेकिन किस्मत से मैं बच गया। कुछ समय बाद नवाज शरीफ को सुप्रीम कोर्ट ने अयोग्य घोषित कर दिया।"
क्या यह घटना काफ़ी नहीं पाकिस्तान की उथल-पुथल को बताने के लिए? दुनिया को जैसे बलूचियों की आवाज़ से भी कोई मतलब नहीं है। वह वक्त देखकर अपने स्वार्थ के हिसाब से पासे फेंकती है। तभी तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भारत और पकिस्तान को एक ही पलड़े में रखकर युद्ध रुकवाने की बात कह देते हैं। भारत और पाकिस्तान को ही यह समझना होगा कि देश में या देश के बाहर, माहौल बातचीत से ही बदला जा सकता है। आपसी संवाद ही काम कर सकता है वरना दो बिल्लियों की लड़ाई में फ़ायदा सिर्फ बंदर का होता है जो सारी रोटी चट कर जाता है। इस माहौल में बलूच नागरिकों को भी लगता है कि दुनिया उनकी भी आवाज़ सुने। बलूच नेता मीर यार बलूच ने एक्स पर पोस्ट कर कहा कि बलूचिस्तान के लोगों ने अपना राष्ट्रीय फैसला ले लिया है। 'रिपब्लिक ऑफ़ बलूचिस्तान' एक स्वतंत्र राष्ट्र है और अब दुनिया को भी चुप नहीं रहना चाहिए। उन्होंने भारत समेत अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से समर्थन की अपील की है कि वे बलूचों को 'पाकिस्तान के लोग' कहना बंद करें। उन्होंने कहा कि हम अपनी नस्ल बचाने के लिए निकले हैं, आओ हमारा साथ दो। मीर ने कहा- "पाकिस्तान को दी जाने वाली अंतरराष्ट्रीय सहायता और कर्ज पैसे की बर्बादी थी। 1947 से 2025 तक पाकिस्तान ने पश्चिम, आईएमएफ, विश्व बैंक से अरबों डॉलर प्राप्त किए और हजारों जिहादी समूहों का समर्थन किया। पाकिस्तान ने आतंकवाद के खिलाफ़ युद्ध के नाम पर अमेरिका से फंड लिया, लेकिन इन पैसों का इस्तेमाल 9/11 हमले के बाद अफगानिस्तान में 5000 से अधिक अमेरिकी सैनिकों, नाटो सैन्य बलों और नागरिकों को मारने के लिए आतंकियों पर खर्च किया। पाकिस्तान के आतंकवादी व्यवहार के कारण बलूचिस्तान पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और संयुक्त राष्ट्र महासभा की आपातकालीन बैठक बुलानी चाहिए।" पोस्ट में भारत से समर्थन की आस में भारत की पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को खाली कराने की मांग का भी पूरा समर्थन किया है। इसके साथ ही यह मुद्दा सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने लगा।
हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है। सैंतीस बरस की करीमा बलूच वहां की जानी-मानी मानवाधिकार कार्यकर्ता थीं। बलूच राष्ट्रीय आंदोलन को महिलाओं के मध्य ले जाने का श्रेय उन्हें ही जाता है। बीबीसी ने उनका नाम दुनिया की सौ सबसे प्रभावशाली महिलाओं की सूची में शामिल किया था। रक्षाबंधन के मौक़े पर करीमा बलोच ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बलूचिस्तान में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघन के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने की अपील की थी। पाकिस्तान में हालात ख़राब होने लगे तब करीमा ने कनाडा में शरण ली, जहां से 22 दिसंबर 2020 को संदिग्ध परिस्थितियों में उनका शव बरामद किया गया। बलूचिस्तान में कई संगठन हैं जो अपनी आज़ादी के लिए लड़ रहे हैं। वे जब-तब अपनी उदारवादी सोच को ज़ाहिर भी करते हैं। नेता ताराचंद बलोच वहां की बलोच नेशनल पार्टी के चुने हुए नेता थे और बलूच आज भी उन्हें बहुत सम्मान से याद करते हैं। बाद में आंदोलन हिंसक हो गया। बलूच लिबेरशन आर्मी ने मार्च में एक ट्रेन को अगुआ कर चुन-चुन कर पाकिस्तानी सेना के जवानों को निशाना बनाया था। लड़ाई पुरानी है क्योंकि 1947 में बलूचिस्तान की एक रियासत कलात ने पाकिस्तान में शामिल होने से इनकार कर दिया था। उसने पाकिस्तान की आज़ादी से पहले ही खुद को आज़ाद घोषित कर दिया था। पाकिस्तानी सेना ने वहां हमला बोल दिया फिर एक समझौते के तहत मोहम्मद अली जिन्ना के साथ सहमति बनी कि दोनों में से कोई भी कहीं घुसपैठ नहीं करेगा। ऐसा हो नहीं पाया और बलूचिस्तान आज भी तकलीफ़ में ही है जो समय-समय पर ज़ाहिर होती रहती है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद यह और बढ़ी है।
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