आतंरिक्ष से भव्य हिंदुस्तान धरातल पर कैसा है ?


'ऊपर से भारत कैसा दिखाई देता है आपको?' यही सवाल है जो भारत की दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दोनों ने अंतरिक्ष में जाने वाले यात्रियों से पूछा था और दोनों के ही जवाब दिल छू लेने वाले रहे। चालीस साल पहले जब तत्कालीन प्रधानमंत्री ने भारत के पहले स्क्वॉड्रन लीडर राकेश शर्मा से पूछा था कि, 'ऊपर से भारत कैसा दिखाई देता है आपको,' उन्होंने बिना किसी हिचक के अल्लामा इक़बाल की कविता 'सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा' की पंक्ति के साथ जवाब दिया था। तब पूरा देश जैसे गदगद हो गया था और जो उस समय बच्चे थे उनके लिए तो स्क्वॉड्रन लीडर राकेश शर्मा का अंतरिक्ष के शून्य गुरुत्वाकर्षण के बीच वह मुस्कुराता चेहरा कभी न भूलने वाला क्षण हो गया था। वे ही गर्व के क्षण ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने भी दिए, जब उन्होंने कहा कि 'ऊपर से भारत बहुत भव्य दिखाई देता है।' शुभांशु (1985 )उस वक्त पैदा भी नहीं हुए थे जब राकेश शर्मा ने पहली बार अंतरिक्ष में भारत का झंडा लहराया था। बेशक ऊपर से भारतीय भूभाग बड़ा ही दिव्य और भव्य दिखाई देता है लेकिन क्या भीतर वही चमक भारतवासियों की आंखों में भी है? करीब जाने पर भी क्या भारत की उसी सुंदरता के दर्शन होते हैं? क्या नागरिक सुख-चैन से रह रहे हैं? हक़ीक़त में जो दिखाई देता है वह यही है कि रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में आवाम के सामने मुश्किलों का ऐसा अम्बार है कि ऊंचाई पर पहुंचने के लिए कोई सीढ़ी तो मिलती नहीं, उलटे सांप हर रोज़ काट जाते हैं। आख़िर क्यों भीतर का भारत इतना  बेचैन, गरीब और मुश्किलों में जूझता दिखाई देता है?



नव मध्यवर्ग कह सकता है कि, "आप विलाप कर रहे हैं। उस तरक़्क़ी को क्यों नहीं देखते जो भारत में हर कहीं हो रही है। हवाई अड्डे, रेलवे, एक्सप्रेस हाईवेज़ और सुरक्षा में भारत कहां  से कहां पहुंच गया है!" माफ़ कीजिये लेकिन अहमदाबाद हवाई दुर्घटना और पहलगाम आतंकी घटना ने देश को जैसे भावनात्मक रूप से तोड़ दिया है। भीड़ में भगदड़, पुलों का गिरना तो जैसे न्यू नॉर्मल बन चुके हैं। ऐसी बेहिसाब घटनाएं हैं जो भारत के शहरों का हौसला तोड़ती हैं। ट्रैफिक और सड़क दुर्घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। इंदौर भारत का एक व्यवसायिक शहर है लेकिन यहां बिजली ऐसे आंख-मिचौली खेलती है कि बच्चों की परीक्षा ही चपेट में आ जाती है। इस बार 4 मई को नीट (यूजी) की परीक्षा के दौरान ही बिजली गुल हो गई। अदालत ने 75 छात्रों की परीक्षा फिर से कराने का निर्देश दिया। परीक्षा में इतनी देर हो गई कि पूरे देश के परिणाम आने में समय लगा। अगली सुनवाई के बाद इन परीक्षार्थियों के परिणाम रोककर;शेष सभी के परिणाम घोषित कर दिए गए। एडमिशन के लिए कॉउंसलिंग शुरू होने वाली है लेकिन अब तक इन छात्रों के भविष्य का कोई फैसला नहीं हुआ है। क्या यह छात्रों का दोष है कि उन्होंने दिक्कत की शिकायत की। हर साल 22 लाख से ज़्यादा परीक्षार्थी इस परीक्षा में बैठते हैं और ऐसा कभी नहीं होता है कि परिणाम बिना किसी रुकावट के घोषित हो जाए। आखिर राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (एनटीए) यह सुनिश्चित क्यों नहीं करती? अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी भारत के छात्र मुश्किलों से घिरे हैं। अमेरिका में पढ़ने वाले भारतीय छात्र प्रतिदिन अपना पासपोर्ट लेकर पढ़ने जाते हैं। वे भारत नहीं आ रहे हैं क्योंकि उन्हें डर है कि एक बार आने के बाद उन्हें दोबारा प्रवेश नहीं मिलेगा। छात्र देश का भविष्य हैं और हमारा सिस्टम उनके प्रति ज़िम्मेदार नज़र नहीं आता है। 

जयपुर के युवक की पीड़ा और कुंठा से रूबरू होना ज़रूरी है क्योंकि बेरोज़गार युवाओं का हाल पूरे भारत में एक सा है। यह युवक कभी कॉल सेंटर में काम करता था। पुलिस को रेल की पटरियों से उसकी लाश बरामद हुई। बाद में उससे मिले पते पर पुलिस पहुंची तो घर में उसकी मां की लाश मिली। जिसके बारे में पुलिस का कहना है कि वह उसकी हत्या कर खुद मौत की नींद सो गया। कैसा निष्ठुर और अपराधी समाज बन रहा है हमारा? क्या कोई फ़िक्र नज़र आती है? बहुसंख्यक युवा आबादी के पास काम नहीं है। पढ़े-लिखे युवक डिलीवरी बॉयज़ बनने पर मजबूर हैं। किन्हीं कमज़ोर क्षणों में फिर इन्हीं से अपराध भी हो जाते हैं। यह अपराध को न्यायोचित ठहराने की कोशिश नहीं है लेकिन समाज के तेज गति से हो रहे क्षरण की ओर ध्यान देना ज़रूरी हो गया है। 

डिजिटल अरेस्ट यानी ऑनलाइन धोखाधड़ी का यह हाल है कि अपराधी राजस्थान के मुख्य न्यायाधीश को ही लूटने की तैयारी कर लेते हैं। ऑनलाइन ठगी तो जैसे हर नागरिक की बदकिस्मती बन गई है। साल 2022 में 40 लाख ऐसे  मामले थे जो 2024 में बढ़कर1करोड़  23हज़ार हो गए।बचाव में लोग हंसकर कहते हैं- "पहले जेब कटती थी अब इस तरह लुटते हैं।" ये अपराधी कभी यह कहकर डराते हैं कि आपके पुराने फ़ोन का इस्तेमाल मनी लॉन्ड्रिंग में हो रहा है तो कभी कहते हैं आपके बच्चे ने अपराध कर दिया है। फ़ोन हमेशा पुलिस की वर्दी वाली तस्वीर के साथ आता है। कॉल के बाद वह इनकमिंग पूरी तरह से गायब हो जाती है। आखिर कौन देखेगा इस साइबर लूट को? आम भारतीय अभी इन तकनीकों को सीखने में ही लगा है कि उसके साथ धोखा हो जाता है। ठगी में बैंक के नंबरों से भी कॉल आते हैं और खाताधारी से खर्च की लिमिट बढ़ाने के नाम पर पैसे ट्रांसफर करा लिए जाते हैं। राजस्थान उच्च न्यायालय ने स्वयं संज्ञान लेकर बताया कि इसमें लूट के साथ लोगों की जान भी जा रही है। सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि उनके पास भी ऐसा कॉल आया था जिसे फिर रजिस्ट्रार को देकर निस्तारित कराया गया। न्यायाधीश ने केंद्र सरकार और राज्य सरकार से जवाब भी मांगा लेकिन कोई जवाब दाखिल नहीं हुआ। अंदाज़ा लगाना क्या मुश्किल है कि व्यवस्था के बड़े छेद अपराधी को साफ बचा लेते हैं।  


देश के कर्णधार चुनाव के लिए तमाम मशीनों के इस्तेमाल में जुटे हुए हैं लेकिन देश के मजदूर और दलित आज भी मेनहोल की सफाई में मौत का शिकार हो रहे हैं,उन्हें कोई मशीन या रोबो नहीं दिए जाते। सेप्टिक टैंक की जहरीली गैस अक्सर इनकी जान ले लेती है। मेनहोल में घुसने के लिए आज भी ज़िंदा इंसान ही उतारा जाता है जिसकी दम घुटने से मौत हो जाती है। देश की एक ज्वैलर्स कंपनी ने तो सोने के कण निकालने के लिए आठ मजदूरों को सेप्टिक टैंक में उतार दिया। चार मजदूरों की जहरीली गैसों से मौत हो गई। देश में ऐसे सफाई कामगारों की संख्या 7.70 लाख के आस-पास बताई जाती है। 


इधर व्यवस्था ने अपने जिस कानून संशोधन का बढ़-चढ़कर ज़िक्र किया था वह वहां भी फेल है। सीएए (नागरिक संशोधन अधिनियम,2019) के तहत यह सुनिश्चित किया गया कि पड़ोसी देश जैसे बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के तमाम हिन्दू शरणार्थियों की राह सरकार आसान करेगी। उन्हें नागरिकता और सुरक्षा दी जाएगी। जो यह भी हुआ होता तो सीमा पर रवि कुमार और शांति बाई की जोड़ी यूं जान न गंवाती । पाकिस्तान के सिंध के इस हिन्दू जोड़े ने सहमति से शादी कर ली थी और डेढ़ साल पहले भारत आने के लिए कागज़ात दाख़िल कर दिए थे क्योंकि रवि कुमार के पिता को इस विवाह से दिक्कत थी। शरण की आस में यह जोड़ा पिछले महीने जैसलमेर के रास्ते भारत आना चाहता था लेकिन सीमा पर तेज गर्मी में भूख प्यास से दोनों की मौत हो गई। जीते-जी तो भारत में शरण नहीं मिली लेकिन पोस्टमार्टम के बाद उनका अंतिम संस्कार ज़रूर भारत में हुआ। कौन नहीं जानता कि कितने सख्त तेवर और इरादों के साथ सरकार ने संसद में इस कानून की पैरवी की थी जिसने पड़ोसी देशों के कई हिंदू नागरिकों को भारत लौटने के लिए प्रेरित कर दिया। क्या वाक़ई कोई है जो ऊपर से भव्य और दिव्य नज़र आने वाले हिंदुस्तान को सारे जहां से अच्छा बनाएगा। 1984 हो या 2025 आम भारतीय के भीतर की बेचैनी,डर और अभाव को दूर कर सके ऐसा कोई है ?  


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