ऑपरेशन सिंदूर : पक्ष और विपक्ष के बीच बुलंद हुई निर्दलीय आवाज़

 ऑपरेशन सिंदूर पर लोकसभा में चली सोलह घंटे की बहस जब मंगलवार को पूरी हुई तो साफ़ हो गया कि देश के पास ऐसे धुरंदर नेता हैं जो सरकार की आंख में आंख डाल कर बात करते हैं और सटीक सवाल करते हैं। उधर  सरकार भी भले ही भाग नहीं रही थी लेकिन जवाब देने में उसे भी बड़ी तैयारी और मेहनत और लग रही थी। देश के हर हिस्से से शामिल सांसदों की यह ज़रूरी और अच्छी बहस थी।  फिर भी विपक्ष को शायद इस बात का मलाल हो सकता है कि कुछ जवाब उसे नहीं मिले जैसे पहलगाम में पर्यटकों की सुरक्षा में चूक क्यों हुई ;ख़ुफ़िया तंत्र विफल क्यों रहा ;अमेरिका ने बीच ऑपरेशन में भांजी क्यों मारी ; हमारे कितने लड़ाकू विमान नष्ट हुए और चीन-पाकिस्तान एक मंच पर साथ आने की समझ सरकार को क्यों नहीं हुई। बेशक सरकार ने अपना पक्ष रखने की पुरज़ोर कोशिश की लेकिन बीच -बीच में जब भी देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू का ज़िक्र आ जाता था तो लगता कि सरकार जैसे अब तक किसी नेहरूफोबिया से ग्रस्त है और हर मौके पर उन्हें  किसी ढाल की तरह ले ही आती है। बेशक बंटवारा हमारी दुखती रग है लेकिन हम कब तक उस घाव को हरा रखेंगे, सिर्फ इसलिए की इससे वोटों की सियासत मज़बूत होती है ? विभाजन की त्रासदी  की क़ीमत लंबी अशांति और नफ़रत क्यों होनी चाहिए ? यूं पक्ष विपक्ष की इस बेहतरीन बहस में  निर्भीक,नम और निर्दलीय आवाज़ भी थीं जिन्हें गंभीरता से दोनों पक्षों को सुनना चाहिए । उनमें से एक स्वर कश्मीर के निर्दलीय सांसद (बारामुला) राशिद इंजीनियर का था। यह भारत के संविधान और बुलंद लोकतंत्र की एक झलक है जिसे  कश्मीर की जनता ने जेल में रहते हुए भी जिता कर दिल्ली भेजा।





बारामुला से सांसद इंजीनियर राशिद ने नेशनल कांफ्रेंस के उमर अब्दुल्ला को लोकसभा चुनाव में हराया था जो अब जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री हैं। राशिद पिछले कई सालों से जेल में बंद हैं और उन्होंने लोकसभा चुनाव भी जेल में रहते हुए ही लड़ा था।  उन्हें टेरर के फंडिंग मामले में एनआईए की तरफ से गिरफ्तार किया गया था। राशिद ने कहा, हम पहलगाम हमले में मारे गए परिवारों का दर्द समझ सकते हैं, क्योंकि हमने 1989 से ऐसे हजारों लोग खोए हैं। कश्मीर में जितनी तबाही हुई है, हमसे बेहतर कोई नहीं समझ सकता है। हमने कब्रिस्तान देखे हैं और लाशें उठाते-उठाते थक चुके हैं।  राशिद ने पहलगाम में हुए आतंकी हमले को पूरी इंसानियत का कत्ल बताते हुए कहा  "आपको कश्मीरियों के दिल जीतने होंगे। मैं देख रहा हूं कि आप में से किसी एक ने भी कश्मीरियों के लिए बात नहीं की। आज रूलिंग पार्टी और विपक्ष को यह तय करना होगा। उन्होंने आगे कहा कि 15 अगस्त 1947 को देश मिला। चाहे जितने हों, नेहरू हों, गांधी हों, सरदार पटेल हों, लियाकत अली खान हों,आप इंडिया को एक नहीं रख सके। आपने तीन हिस्से कर दिए आप कश्मीरियों को क्यों मार रहे हैं। मैं पूछना चाहता हूं कि हमारा कुसूर क्या है। आपने 60 सांसद दुनिया में भेजे ,मैं जानना चाहता हूं उनमें से कश्मीरी कितने थे ,एक भी नहीं। उन्होंने कहा-"लोग जेलों में मर रहे हैं। मिलिटेंसी खत्म करनी होगी। यहां सब ट्रंप ट्रंप बोल रहे हैं ,मैं कह रहा ट्रंप के पास कश्मीर का हल नहीं है ,लोगों के पास है। यह एक राजनीतिक मसला है सांप्रदायिक नहीं।" सांसद ने इल्तजा के स्वर में कहा कि मैं यहां आख़िरी बार बोल रहा हूं  क्योंकि यहां आने में एक लाख साठ हज़ार रूपए लगते हैं। कहां  से लाऊं। ये बुज़ुर्ग सांसद जेल में हैं और उन्होंने इस सत्र में शामिल होने के लिए जमानत या कस्टडी पैरोल की मांग की थी।  कस्टडी पैरोल के तहत कोर्ट की तरफ से कहा गया कि राशिद को अपनी यात्रा और सुरक्षा का खर्च खुद ही देना होगा।  

ज़ाहिर है कश्मीर से आया यह सांसद भारतीय संविधान और लोकतंत्र की बुलंदी को बयां करता है। एक निर्दलीय व्यक्ति जिस पर टेरर फंडिंग का मुकदमा है ,जनता उसे जिताती है और फिर वह उस जनता की आवाज़ इस बड़ी बहस में रखता है। ऑपरेशन सिंदूर की इस बहस में कई नेताओं के धुआंधार भाषण से सुनने वालों को बढ़िया किक मिली । विपक्ष मोदी जी से सवाल कर रहा था तो जवाब लेने सत्तापक्ष नेहरू के पास जा रहा था। हर सदस्य के वक्तव्य यहां लिखना मुश्किल है लेकिन जो टोन सदन में सेट हुई वह यही थी कि सत्ता के वक्ताओं का जोर कांग्रेस को दोषी ठहराना था कि उन्होंने पाकिस्तान बनने दिया और चीन नेहरू जी की ग़लती से अक्साई चिन ले उड़ा। विपक्ष मरने वालों को भारतीय कह रहा था और सत्ता पक्ष हिंदू। इसकी तसदीक के लिए सांसद प्रियंका गांधी का भाषण सुना जा सकता है । उन्होंने पहलगाम हमले में शहीद हर व्यक्ति का नाम लिया और जब कहा कि वे 26 भारतीय थे तब उधर से आवाज़ आई हिन्दू थे। सांसद ने दोहराया भारतीय थे। समाजवादी पार्टी की सांसद जाया बच्चन ने ऑपरेशन सिंदूर के नाम पर राज्य सभा में सवाल उठाया कि सिंदूर तो उजड़ गए उनके,ये बड़े-बड़े लिखने वालों ने क्या नाम सुझाया है? 

हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने लोकसभा में कहा कि पहलगाम किसने किया, हमारे पास साढ़े सात लाख सेना और अर्द्धसैनिक बल है ये चार चूहे कहां  से  घुस आए और हमारे भारतीय नागरिकों को मार डाला ? जवाबदेही किसकी तय होगी ? उन्होंने भारत पाकिस्तान क्रिकेट मैच पर कहा कि आपका ज़मीर ज़िंदा क्यों नहीं है..क्या हुकूमत में हिम्मत है कि वे उन 25 परिवारों को फ़ोन कर के कहे कि हमने आपके सिंदूर का बदला ले लिया, अब आप पाकिस्तान का मैच देखो। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ऑपरेशन सिंदूर का सिलसिलेवार ब्यौरा देते हुए बहस की शुरुआत करते हुए कहा कि विपक्ष सही सवाल नहीं पूछ रहा है। उन्होंने कहा -"विपक्ष को यह जानने में रुचि नहीं है कि भारतीय सेना ने पाकिस्तान को कितना नुकसान पहुंचाया। उनके कितने विमान गिराए। विपक्ष को यह जानने में दिलचस्पी है कि भारत के कितने विमान गिरे।किसी भी परीक्षा में परिणाम मायने रखता है। अगर कोई छात्र परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर रहा है तो हमारे लिए उसके अंक भी महत्वपूर्ण होने चाहिए।" उन्होंने कहा कि हमें इस बात पर ध्यान नहीं देना चाहिए कि परीक्षा के दौरान उसकी पेंसिल टूट गई या पेन खो गया। अंततः परिणाम मायने रखता है और नतीजा यह है कि हमारी सेना ने ऑपरेशन सिंदूर के लक्ष्यों को पूरी तरह हासिल कर लिया। ज़ाहिर है सरकार नुक़सान का हवाला नहीं देना चाहती थी और न ही युद्ध विराम के लिए डोनाल्ड ट्रंप का। 

नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी का इस बहस में दखल  दमदार इसलिए भी मालूम हुआ कि यह कोई रटा-रटाया वक्तव्य नहीं था,देश की चिंता थी और गंभीर हालात में सत्ता की अपनी छवि को चमकाने की कोशिश पर करारा प्रहार था। शायद यह कइयों की समझ से बाहर भी रहा। उन्होंने कहा कि दो बातें हैं- "पोलिटिकल विल' और 'फ्रीडम ऑफ़ ऑपरेशन' सेना के प्रयोग में 100 परसेंट पोलिटिकल विल होनी चाहिए।"  इस अटैक में राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं थी, केवल प्रधानमंत्री की इमेज चमकाने की कोशिश थी। ऐसा कौन करता है कि मैंने एक घूंसा मारा है और अब आप कुछ मत करना। राहुल गांधी ने रक्षा मंत्री के बयान का हवाला देते हुए कहा, "सरकार ने पाकिस्तान को 22 मिनट के ऑपरेशन के बाद  सुबह 1:35 बजे सूचित किया कि हमने उनके आतंकी ठिकानों पर हमला किया है और दावा किया कि यह कदम तनाव बढ़ाने वाला नहीं था, लेकिन आपने 30 मिनट में ही पाकिस्तान के सामने सरेंडर कर दिया, जिससे यह संदेश गया कि सरकार में युद्ध लड़ने की इच्छाशक्ति नहीं है। सरकार ने हमारे पायलटों की स्वतंत्रता को बंधन में जकड़ दिया, जिससे उनकी क्षमता पर अंकुश लगा।" यही वजह रही कि यह ऑपरेशन एक युद्ध में बदलते हुए नज़र आया। दोनों और से हमले हुए और पाकिस्तान की पृष्ठभूमि में चीन नज़र आया और अमेरिका ने भांजी मार ली, युद्ध रुकवाने का ट्वीट कर श्रेय भी ले लिया और लगातार ले रहा है । 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा -"पाकिस्तान के साथ हमारी लड़ाई तो कई बार हुई है। लेकिन यह पहली ऐसी भारत की रणनीति बनी कि जिसमें पहले जहां कभी नहीं गए थे वहां हम पहुंचे। पाकिस्तान के कोने-कोने में आतंकी अड्डों को धुआं-धुआं कर दिया गया। कोई सोच नहीं सकता है कि वहां तक कोई जा सकता है। बहावलपुर और मुरीदके, उसको भी जमींदोज कर दिया गया।" उन्होंने यह भी कहा कि 22 अप्रैल को पहलगाम में जिस प्रकार की क्रूर घटना घटी, जिस प्रकार आतंकवादियों ने निर्दोष लोगों को उनका धर्म पूछ-पूछ करके गोलियां मारी, यह क्रूरता की पराकाष्ठा थी। भारत को हिंसा की आग में झोंकने का यह सुविचारित प्रयास था। भारत में दंगे फैलाने की यह साजिश थी। मैं आज देशवासियों का धन्यवाद करता हूं कि देश ने एकता के साथ उस साजिश को नाकाम कर दिया। प्रधानमंत्री के इस कथन के बाद उम्मीद की जानी चाहिए अब देश में कोई गुलशन और सिंदूर नहीं उजड़ेगा। देश की जनता से उनकी सरकार की प्रतिबद्धता दिखानी होगी। चचा ग़ालिब ने क्या ख़ूब कहा है -

रगों में दौड़ते -फिरने के हम नहीं क़ायल 
जो आंख ही से ना टपका तो फिर लहू क्या है  


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