चीअर्स or फीअर्स





bold n beautiful: gabriella pasqualott
as mumbayee indians cheer leader






दक्षिणअफ्रीकी चीअर गर्ल गैबरीला का ब्लॉग उस मानसिकता की पोल
खोल
ता है जो पूरी दुनिया में
मौजूद है।
क्या गोरे, क्या काले
कोई इससे अछूता नहीं। गैबरीला
का यह कहना कि ऑस्ट्रेलियाई  खिलाड़ी  तो हमें मांस  के टुकड़े समझते हैं महज सनसनी पैदा नहीं
कर
ता बल्कि चकित करता है,
दुखी कर
ता है। वह लिखती हैं ,
आईपीएल मैचों के दौरान जब
हम भारतीय शहरों की सड़कों से
गुजरते तो सबकी नजरे केवल
हम ही पर होतीं। जैसे हम
अश्लीलता का चलता-फिरता
बाजार हो। उफ! बरदाश्त नहीं
होता था यह सब।
गैबरीला भारतीय खिलाडिय़ों
के सद्व्यवहार की तारीफ करती
हैं वहीं महिलाओं के बारे में
कहती हैं कि वे दोहरा व्यवहार
करती हैं। पहले तो हमें देखती हैं
और फिर ऐसे जताती हैं जैसे
हमारा कोई अस्तित्व ही नहीं.
मुंबई इंडियंस की बाईस
वर्षीय इस खूबसूरत चीअर लीडर
ने स्पष्ट किया है कि उसे जब
  ब्लॉग लिखने का प्रस्ताव दिया
गया था तो महज इतनी अपेक्षा
थी कि अपनी आईपीएल और
भारत यात्रा के
  ब्यौरे साझा करूं।
वे साफ कहती हैं कि मैंने जो भी
लिखा सहज था। ना ही मैं किसी
भारतीय फिल्म में आ रही हूं
और ना रियलिटी शो में।
हमारा सवाल हो सकता है
कि इतना ही सीधा-सच्चा रवैया
है तो चीअर लीडर बनने की
जरूरत
क्या है कोई और काम
ढूंढ लिया होता। इससे भी पहले
सवाल यह उठता है कि चीअर
गर्ल्स  को आईपीएल मैचेज में
रखा ही
क्यों गया है? वह भी
गोरी-चिट्टी, सुडौल सुंदर
युवतियों को। जाहिर है आम
भारतीय जन मानस इसके
आकर्षण में
लिप्त हैं। मैच के
दौरान छ
क्का लगते ही इन
छरहरी बालाओं को
थिरकते देख वह
मुग्ध हो जाता है। तेज रोशनी,
संगीत, इनका नृत्य और क्रिकेट
की गेंद ऐसा जादू पैदा करती है
कि युवा भारतीय, क्रिकेट मैदानों
की ओर दौड़ा चला आता है। वह
पैसा देना चाहता है। टिकट
खरीदना चाहता है, वरना सब
जानते हैं कि इन मैचों में खिलाड़ी
और उसकी टीम के नाम में दूर-दूर
का भी रिश्ता नहीं। इन
चीअर लीडर्स का दायित्व दर्शकों
के सामने थिरकना भर नहीं
बल्कि मैच के बाद कई धनपतियों
की पार्टीज में शिरकत करना भी
होता है। वे वहां नचवाई जाती हैं।
फैशन परेड आयोजित की जाती
है। जयपुर में आयोजित वोद्का
की एक कंपनी ने तो अखबार को
भेजे  प्रेस-नोट   में लिखा है कि
चीअर
गर्ल्स की शरारती और
मस्त अदाओं ने पार्टी का रंग
जमा दिया। इस पैड पार्टीज में
कोई भी पैसेवाला शामिल हो
सकता है। शराब पीकर नृत्य
करने तक के आनंद को स्वीकृति
देने के बाद हम
उम्मीद करते हैं
कि सब कुछ दायरे में हो और
जब क्रिकेटर इस हद को पार
कर देते हैं, तो हम चीअर लीडर
को निकाल फेंकते हैं। धन के
इर्द-गिर्द लगने वाले मजमें से
और अपेक्षा भी
क्या की जा
सकती है।
गैबरीला बताती हैं कि मेरे
ब्लॉग लिखने के बाद कई
खिलाडिय़ों ने मुझसे संपर्क किया
कि कहीं भूल से भी हमारा नाम
मत ले देना। कुछ तो बच्चों की
तरह सफाई देने के लिए
आईपीएल अधिकारियों से भी
मिले, जबकि मैंने किसी खिलाड़ी
को लेकर किसी अधिकारी को
कुछ नहीं कहा।
बहरहाल, अतिथि देवो भव:
की परंपरा वाले हमारे देश को
एक बड़े तमाशे ने कहां तक क्षति
पहुंचाई है यह विचारणीय जरूर
होना चाहिए। इंक्रेडिबल इंडिया
को दुनिया तक पहुंचाने वालों के
लिए भी यह चिंता का विषय होना
चाहिए। गैबरीला महज एक

चीअर लीडर या ब्लॉगर नहीं,
बल्कि उस मानसिकता का भी
अनावरण है, जो स्त्री को उपभोग
के आगे नहीं देख सकती। . . .और शो-बिज़  में तो कतई नहीं 

क्यों चीअर्स के साथ इतने फीअर्स जुड़े हैं ??

टिप्पणियाँ

  1. चकाचौंध के पीछे की कालिमा का आभास नहीं होता है हमें।

    जवाब देंहटाएं
  2. चीयरलीडर्स को मैच के दौरान मैदान पर मसक्कत करते देखकर कभी-कभी तो लगता है कि क्या जिन्दगी है इनकी। अफ़सोस होता है! फ़टाफ़ट क्रिकेट में चीयरबालाओं की स्थिति देखकर!

    जवाब देंहटाएं
  3. क्रिकेट अब खेल कहाँ रह गया है ????

    और उसमे भी आई पी एल ?????? यह कैसा क्रिकेट है ?????

    आई पी एल + चीयर लीडर्स.... क्या कहें...बस घिन आती है....

    कितना अंतर है पुराने ज़माने के बरातों में बाई जी डांस और क्रिकेट के मैदान पर इस डांस में ?????

    बहुत बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है...

    लेकिन किसे दोष दें...पैसा सदा से नारी देह को भोग का साधन ठहराती आई है और नारी भी पैसे के लिए अपने को साधन रूप में प्रस्तुत करने में सहयोग करती आई है...

    जवाब देंहटाएं

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