पाक कलश

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 wonder vally : kalash
दुनिया का सबसे चर्चित मुल्क पाकिस्तान। आतंकियों को पनाह देने वाला, लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाने वाला] सैनिक-गैर सैनिक हुक्मरानो की अदूरदर्शी नीतियों का शिकार पाकिस्तान। अमेरिका की गोद में बैठकर उसी से नफरत करने वाला पाकिस्तान। औरतों के हक की अनदेखी करता पाकिस्तान और पड़ोसी भारत को बेवजह हौव्वा मानने वाला पाकिस्तान।
... लेकिन इसी पाकिस्तान में एक बेहद खूबसूरत जगह है कलश। नाम जितनी ही पवित्र और सुंदर। पाकिस्तान के उत्तर पश्चिम और हिंदु कुश हिमालय पर्वत शृखलाओं के बीच बसी जन्नत के नजारे वाली इस घाटी के बाशिंदे आजाद खयाल हैं। स्त्री परदे में नहीं है।  एक ऐसा त्योहार भी इस घाटी में मनता है जब एक लड़की के लिए सब कुछ मुमकिन है। वह अपने प्रेम का इजहार कर सकती है और अपनी शादी को तोड़ सकती है। बेशक, यह पाकिस्तान की आम औरतों की जिंदगी से बिलकुल अलग है। बल्कि पूरे भारतीय उपमहाद्वीप से अलग है।
बीबीसी वेब पर प्रकाशित एक आलेख के मुताबिक कलश घाटी के लोग इस्लाम धर्म की बजाय तमाम देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। पहाड़ी घर आपस में सटे हुए हैं। छत और बरामदे जुड़े हैं। छोटा और बंद समाज है। रास्ता मुश्किल है इसलिए बाहरी असर ना के बराबर है। घाटियों में मंदिर बने हैं, जहां मुसलमानों और औरतों के जाने पर पाबंदी है। अजीब यह भी है कि गर्भावस्था और खास दिनों के दौरान स्त्रियां गांव से बाहर अलग घर में रहती हैं। यह परंपरा पुरानी है, लेकिन ज्यादती की शिकायतें नहीं मिलती हैं।
कलश घाटी की अपनी भाषा और संगीत है। संस्कृति पर इंडो-ग्रीक असर हावी है। रंगत और नैन-नक्श काफी कुछ यूरोप का अक्स पैदा करते हैं। भाषा खोवार है। भाषा पर गौर कीजिये हड्डी को अथी [संस्कृत में अस्थि ]; गाँव को ग्रोम [ग्राम]; बेटे को पुट [पुत्र ];नाश को वे भी नाश ही कहते हैं । इस भाषा का लिखित प्रयोग ना के बराबर है। बहुत कोशिश की गई कि खोवार भाषा को रोमन लिपि में ही लिखा जाए, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। लिखा-पढ़ी उर्दू में ही होती है।यहां के लोगों को खो कहा जाता है
माना जाता है कि तीन से चार हजार साल पहले इनके पुरखे यहां आकर बसे थे। सिकंदर महान भी यहां आए थे। सिकंदर के इतिहास में  दर्ज है कि जब वे इस इलाके से गुजरे तो वहां उन्होंने जिन लकडिय़ों का इस्तेमाल आग जलाने के लिए किया वे कोफीन थे, जिसमें मृत देह को रखा जाता था। वहां के लोगों को बेहद गोरे और नाजुक देहवाला बताया गया यानी ठीक वैसा ही जैसे वे  खुद थे। घाटी के लोग एक खास  धर्म को मानने वाले थे, जो युनानी देवी-देवताओं से काफी मिलता-जुलता था। ऐसा नहीं है कि यूनानी मूल के लोग यहां आकर बसे, बल्कि दोनों का ही मूल एक रहा होगा। एक मत यह भी कहता है कि सिकंदर के कुछ सैनिक यहीं बस गए थे और ये उन्हीं के वंशज है।
बहरहाल,  पवित्र और बाहरी हस्तक्षेप से अछूते इलाके में अब पाकिस्तान सरकार को पर्यटन की बेशुमार संभावनाएं नजर आने लगी हैं । कलश के लोग नहीं चाहते कि यहां की पाक जमीं पर बाहरी दखल हो। होटल बने। इलाका खाली बोतलों और कांच के गिलासों से पट जाए। छोटी-सी घाटी में इस कचरे को दफनाने का कोई उपाय नहीं है। कलश के लोग दुखी हैं। वे आग्रह करते हैं कि घाटी को इस दबाव से मुक्त किया जाए।
मौसम बच्चों की छुट्टियों का है। वे माता-पिता के साथ पहाड़ों पर जाना चाहते हैं। पर्यटन ज्ञान और समझ बढ़ाने का बेहतरीन जरिया है, लेकिन क्या जरूरी है कि प्रचलित पहाड़ ही चुने जाएं। वहां भीड़ और होटल्स के अलावा बहुत कम जानने के लिए होता है। क्यों नहीं वे इलाके चुनें जाएं जो थोड़े भीतरी हो। वहां की सभ्यता से जोड़ते हो। क्यों सैर का मकसद डायरी में एक शहर की उपस्थिति भर हो? कलश के बाशिंदों का भी यही एतराज है कि सरकार इस इलाके को एक मुश्त दुह लेना चाहती है वरना, मेल-जोल से किसे दिक्कत है। इस्माइल मेरठी ने तो कहा भी है
सैर कर दुनिया की गाफिल
जिंदगानी फिर कहां
जिंदगानी गर रही तो
 नौजवानी फिर कहां

टिप्पणियाँ

  1. नयी और बेमिसाल जानकारी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया...

    बिलकुल ही अनजान थे हम इससे...बड़ा अच्छा लगा जानकार...

    कांच प्लास्टिक का अम्बार, मनोरम प्राकृतिक स्थलों को तेजी से गंदलाता जा रहा है...दुर्भाग्यपूर्ण है यह...

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  2. युद्ध के बाद जिन सैनिकों को यहाँ ठिकाना मिला, उनको ही युद्ध का पड़ोस मिला है।

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  3. हालत खराब है काफिरों की, न कोई सुविधा, न सहायता, धर्म परिवर्तन का दवाब अलग। हाँ अभी भी दीर्घायु हैं ये लोग।

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  4. shukriya ranjanaji praveenji... anuraagji aap sahi kah rahe hain.

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