जॉली LLB-3 इस बार दो जालियों के बीच में उलझा क़ानून
रविवार को दिन में जॉली LLB-3 फ़िल्म देखी।हॉल आधा भरा हुआ था। बिना किसी हिचक के कह सकती हूं कि फ़िल्म कमाल की है। कुछ तो मन सोनम वांगचुक की गिरफ़्तारी से व्यथित है और कुछ यह जॉली -3 भी ऐसे ही सवाल करती है कि ए वतन तू क्यों न हमारा हुआ ? तक़लीफ़ से घिरी जनता जब शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन में शामिल होती है तो व्यवस्था ऐसा जाल रचती है कि आंदोलन हिंसक हो जो ऐसा नहीं होता तो वह ख़ुद चिंगारी सुलगा देती है। फिर सत्ता की गोलियां मासूमों के सर में धसने लगती हैं। जॉली बेशक़ भट्टा परसोल से जुड़े किसानों की घटना पर बनी हो लेकिन उसकी आत्मा राजस्थान की पृष्ठभूमि में इस क़दर जीवंत हुई है कि लगता है जैसे देश का हर हिस्सा तकलीफ़ और उत्पीड़न के मामले में एक ही है। यहां उसकी भाषा ,पहनावा, खान-पान सब एक है। उसकी स्पिरिट को समझने में हर सत्ता हर नेता नाकाम है। संविधान का भी टेक्स्ट है लेकिन मूल भाव गायब। हर राज्य में किसान और आदिवासियों से उनकी ज़मीन छीन कर मुनाफ़ाख़ोर क़ारोबारियों को देकर विकास के सब्ज़बाग़ दिखाने का यह धंधा अर्से से जारी है। सत्ता किस क़दर बड़े उद्योगपतियों का हित देखती है और इस हित को साधने में वह अपनी ही जनता को लहूलुहान करती चली जाती है, जॉली इसे समझाने में क़ामयाब रही है। क़ामयाब इसलिए भी कि इसमें व्यंग्य का पुट है ,सवांद का तड़का है कोर्ट रूम का कसा हुआ ड्रामा भी ।
बहुत फ़ख़्र और ख़ुशी की बात है कि इस फिल्म की कोर टीम में जयपुर में पत्रकारिता के हमारे साथी रहे राम कुमार सिंह हैं। फिल्म की कथा ,पटकथा निर्देशन सबकुछ सुभाष कपूर का है लेकिन राम जी के साथ काम करने के बाद, बहुत आसानी से यह समझ आ जाता है कि किन दृश्यों में उनका स्पर्श रहा होगा। राजस्थान पर उनका पूरा अधिकार है और वह पात्रों की भूषा और भाषा में भी नज़र आता है। प्रतिभा तो उनकी पत्रकारिता में ही दिख गई थी,अब वे अपनी बात कहने के लिए और भी असरदार मंच पर हैं । उनका गद्य व्यंग्य तो हमने उनकी फिल्म भोभर,ज़ेड प्लस,सरकार में भी देखा था लेकिन यह कैनवस बड़ा है। अक्षय कुमार,अरशद वारसी, सौरभ शुक्ला ,हुमा कुरैशी और सीमा विश्वास (ख़ामोशी और द बैंडिट क्वीन में फूलन देवी का क़िरदार निभाने वाली )जैसी पॉपुलर स्टार कास्ट भी है। फिल्म के प्रारंभ में ही जो कविता है और जिस दृश्य में गजानन माधव 'मुक्तिबोध' की तस्वीर भी दिखाई देती है ,वह घर तक साथ आती है। वह बताती है कि आख़िर कैसे किसान का माटी से रिश्ता माँ-सा क्यों है ? छप्पर टपकता रहा मेरा फिर भी /मैंने बारिश की दुआ की.. इस कविता को भी राम कुमार ने ही लिखा है।
कविता की इमेज पोस्ट के साथ है। कथानक की पृष्ठभूमि राजस्थान है और कोर टीम के कोर मेंबर भी राजस्थान से हैं। सरकार को यहाँ फिल्म देखने वालों से टैक्स क्यों लेना चाहिए।
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