अब सरहद शांत और व्यापार उग्र होगा !
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीफ़ का वह वीडिओ ख़ूब देखा जा रहा है जिसमें वे रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुख़ातिब होकर कह रहे हैं-"बहुत शुक्रिया महामहीम कि आपने अपने महान देश में आने का मुझे न्योता दिया। मैं सालों पहले मास्को आया था, जब मैं बच्चा था। मुझे वहां आकर और पुरानी याद ताज़ा कर बहुत ख़ुशी होगी। मैं पाकिस्तान का समर्थन करने और और इस क्षेत्र में संतुलन कायम करने के लिए भी आपका शुक्रिया अदा करना चाहता हूं। हम हिंदुस्तान से आपके ताल्लुक़ का भी सम्मान करते हैं और इससे हमें कोई दिक़्क़त नहीं हैं लेकिन हम भी आपसे बहुत मज़बूत रिश्ते बनाना चाहते हैं। आपके नेतृत्व में वह क्षमता है जो इस क्षेत्र को समृद्ध और प्रगतिशील बना सके।" वीडिओ एएनआई ने जारी किया है जो उस वक्त का है जब बीते इतवार -सोमवार को शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में तमाम देशों के राष्ट्राध्यक्ष शामिल हुए थे। इस दौरान भारत,चीन और रूस के नेताओं के जलवे और तस्वीरें पूरी दुनिया ने देखी थीं। इसके बाद ही दुनिया के नेताओं को यह डर भी हो गया कि कहीं भारत छिटक कर उस खेमे में न चला जाए जहां शामिल तमाम देशों की सरकारें अधिनायकवादी हैं। अमेरिका के दबाव के बावजूद इन देशों से आवाज़ आनी शुरू हो गई है कि अगर भारत छिटका तो एशिया में संतुलन को बड़ा झटका लगेगा। फ़िनलैंड ने तो आवाज़ बुलंद कर भी दी है।
भारत पर 50 फ़ीसदी टैरिफ थोपने के बाद donald trump तो कह दिया है भारत और रूस दोनों ही डीपेस्ट और डार्केस्ट चीन के साथ नत्थी हो गए हैं और हमने उन्हें खो दिया है। उनका यह बयान निराशा और चेतावनी दोनों को ही एक साथ नत्थी करता है।बेशक चीन,रूस,पाकिस्तान ,ईरान जैसे देशों में लोकतंत्र का उदार चेहरा अभी भी सामने नहीं आया है। जो कसर बाकि थी
![]() |
Trump wrote on social truth US has lost india & Russia to deepest and darkest china |
वह उत्तर कोरिया के तानाशाह प्रधानमंत्री किम जोंग उन ने चीनी परेड में आकर पूरी कर दी है। ऐसे में भारत कैसे ख़ुद को इस समूह में बेहतर रख सकता है और क्या इन नए समीकरणों में चीन और पाकिस्तान से रही अब तक की दुश्मनी को समाप्त करने की ताक़त है ? इससे पहले डोनाल्ड ट्रम्प ने फिर कहा था कि भारत के साथ तो कई बड़ी दिक्कतें हैं और हम आने वाले समय में और टैरिफ़ लगाएंगे। अब तो राष्ट्रपति ट्रंप भारत को लेकर सवाल करने पर ही आगबबूला होने लगे हैं। पोलैंड के एक सवांददाता के सवाल पर उन्होंने ऐसा ही किया। पोलिश पत्रकार ने उनसे पूछ लिया कि आप भारत के लिए इतने सख़्त और रूस के प्रति इस क़दर नर्म क्यों हैं ,आप रूस पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाते ? जवाब में वे पत्रकार को धमकी दे देते हैं कि तुम्हें दूसरी नौकरी ढूंढ़नी पड़ेगी। कैसे कह सकते हो कि कोई कार्रवाई नहीं हुई ,भारत पर टैरिफ से रूस को सैकड़ों अरब डॉलर का नुकसान हुआ है। बहरहाल यूरोप और युरोपियन यूनियन से आवाज़ उठनी शुरू हो गई है। फ़िनलैंड के राष्ट्रपति अलेक्सेंडर स्टब ने साफ़ कहा -" मैं न केवल अपने यूरोपीय यूनियन के सदस्यों को बल्कि अमेरिका को भी यह संदेश देना चाहता हूं कि विश्व की इस नई व्यवस्था में सभी को अपनी विदेश नीति को लेकर गरिमा पूर्ण रवैया अपनाने की ज़रूरत है और अगर हम ऐसा नहीं करेंगे, ख़ासकर ग्लोबल साउथ और इंडिया को लेकर तो हम ये लड़ाई हार जाएंगे। शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन ने बता दिया है कि हमारा कितना कुछ दांव पर लगा है।" सच है कि दुनिया सकते में है और चिंतित भी कि अमेरिका की वजह से भारत जैसा देश अब लोकतांत्रिक शक्तियों से दूर हो रहा है । इसकी भरपाई ही है कि यूरोपीय संघ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सहयोग के लिए बात कर रहा है और शीघ्र ही संघ का एक सम्मलेन भारत में किये जाने की भी योजना है।
![]() |
The secret talk |
वैसे भारत नई दिशा में क़दम बढ़ा चुका है। शीत युद्ध का दौर लद गया है। ये बहुपक्षीय दौर का समय है। स्थाई दोस्त नहीं केवल हित होते हैं। कल्पना कीजिये कि अगर ये तमाम देश जिस तरह से एक मंच पर हैं और जैसा कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा भी है कि शंघाई सहयोग संगठन का मकसद सभी सदस्य देशों के साझे व्यापारिक हित और सुरक्षा तंत्र के लिए सबसे सशक्त मंच देना होगा; तब क्या भारत अपने परंपरागत दुश्मन पाकिस्तान से गले लग कर सीधा व्यापार करने लगेगा। चीन सीमा पर शांत रह कर, अब सारी ऊर्जा आपसी क़ारोबार को बेहतर करने में लगा देगा ? भारत 2020 में हुई अपने 20 सैनिकों की शहादत को भूल जाएगा ? भूल जाएगा कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान चीन, पाकिस्तान की सीधी मदद कर रहा था ?ऐसे में क्या भारत तिब्बतियों को वैसी सुरक्षा दे पाएगा जो उसने दे रखी है क्योंकि दावा तो चीन का तिब्बत पर है ? यह देखना भी कितना दिलचस्प होगा कि भारत -पाकिस्तान धड़ाधड़ क्रिकेट खेल रहे हैं। पाकिस्तान से मेवे भारत आ रहे हैं तो भारत से ताज़ा सब्ज़ियां और मिठाइयां पाकिस्तान जा रही हैं। वहां से महीन कशीदाकारी आ रही है तो यहां से मधुबनी कला वहां जा रही है। सिंधु नदी का पानी बेरोक बह रहा है। फ़वाद खान तमाम हिंदी फ़िल्में फिर साइन कर रहे हैं और फरीद अयाज़ -अबू मोहम्मद अपनी सूफ़ी क़व्वाली लेकर भारत आ गए हैं और 'मोहे सर से टली बला सुना रहे हैं'..। सोनू निगम और श्रेया घोषाल कराची में अपने नग़्मे सुना रहे हों ठीक वैसे ही जैसे अतीत में मेहदी हसन, नुसरत फ़तह अली खां, ग़ुलाम अली और लोक गायिका रेशमा सुनाया करती थीं। इस समय चीन और रूस ने 'रेड सिल्क' नाम की साझा फिल्म बना कर इस क्षेत्र में भी व्यापार के नए द्वार खोले लिए हैं, संभव है भारत-पाक या भारत-चीन भी कोई नई केमिस्ट्री तलाश लें।
हालात तो यह थे कि भारत को पाकिस्तान से किनारा करने के लिए ईरान के साथ चाबहार बंदरगाह परियोजना को शुरू करना पड़ा ताकि ईरान,अफगानिस्तान और मध्य एशिया के देशों से व्यापार के रास्ते खुल जाएं बेहद महात्वाकांक्षी इस योजना में भारत ने बड़ा निवेश किया तो उधर चीन ने पाकिस्तान से मिलकर ग्वादर बंदरगाह समुद्र के भीतर बनाया है। इस नई वैश्विक व्यवस्था में बहुत कुछ उलटने-पलटने वाला है। अगर किसी को यह महज़ ख़याली पुलाव या खीर लग रही है तो उन्हें सोचना चाहिए कि मुख्य धारा के मीडिया ने जिस तरह से शीर्षक लगाए हैं और तीनों नेताओं की हंसती-खेलती जो तस्वीरें दिखाई हैं उससे तो यही लगता है कि दिन अब फिरने वाले हैं। चरण मीडिया तो वही संदेश देता है, जैसे निर्देश होते हैं। 'मिले सुर मेरा तुम्हारा और 'पीएम मोदी के लिए पुतिन ने दस मिनट इंतज़ार किया और फिर कार में 45 मिनट तक सीक्रेट टॉक' जैसे शीर्षकों कि क्या ज़रूरत थी। ज़ाहिर है भारत सरकार दुनिया को यही समझाना चाहती है कि अमेरिका के पचास फीसदी टैरिफ के जवाब में वह नया रुख अपना रही है।
भारत ने रूस से तेल ख़रीदना भी बंद नहीं किया और एक नई समानांतर व्यवस्था भी बनाने जा रहा है। यह वजूद में आई तो फिर अर्थ व्यवस्था में सबको पीछे छोड़ देगी। जो चीनी बैंक अस्तित्व में आया तो वह विश्व बैंक से बड़ा होगा। इस सम्मलेन के बाद तो पुतिन ने अपना नैतिक क़द भी ऊंचा कर लिया है। पत्रकारों से खचाखच भरी प्रेस वार्ता में उन्होंने कई सवालों के जवाब दिए और कहा कि हम यूक्रेन पर कोई कब्ज़ा नहीं चाहते। जो हुआ उसके लिए रूस नहीं पश्चिम और नाटो (उत्तर अटलांटिक संधि संगठन )देश ज़िम्मेदार हैं। नाटो ने यूक्रेन की जनता की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ उसे अपने में मिलाना चाहता है और अब पांच साल हो चुके हैं यूक्रेन की चुनी हुई सरकार निर्णय का हक़ खो चुकी है। ग़ज़ब तमाशा है कौन लोकतंत्र की मिसाल दे रहा है ? भारत अमेरिका रिश्तों पर तो चचा ग़ालिब एक बार फिर खरे हैं -
ज़िक्र उस परिवश का,और फिर बयां अपना
बन गया रक़ीब आख़िर था जो राज़दां अपना
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें