घूंघट की आड़ में प्रत्याशी

यहाँ जो घूंघट की आड़ में नज़र आ रही हैं वे भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी पूनम कँवर हैं जिन्होंने कल बुधवार को राजस्थान के बीकानेर की कोलायत सीट से पर्चा दाख़िल किया। मुझे निजी तौर पर लगता है कि उनके मतदाताओं को दस बार सोचना चाहिए क्योंकि जो विधायक आँख में आँख डालकर  बात नहीं कर पाएगा वह जनता के हित कैसे साध पाएगा ? प्रत्याशी जब प्रेस वार्ता को सम्बोधित कर रहीं थींतब भी केवल वही घूंघट में  थीं। अच्छी बात यह थी कि उनके साथ स्त्रियों  का हुजूम था। पूनम कोलायत से सात बार विधायक रह चुके कद्दावर भाजपा नेता देवी  सिंह भाटी की पुत्रवधु  हैं। उम्मीद की जानी चाहिए की यह परिवार एक क़दम और आगे बढ़ाते हुए इस परदा प्रथा को भी ख़त्म करेगा।

एक सवाल मुझसे भी  पूछा जा सकता है  कि क्या किसी बुर्कानशीं के लिए भी आप यही राय दोहराएंगी ? बेशक पर्देदारी  की ज़रुरत ही क्या है।आँख पर किसी भी  किस्म का  परदा क्योंकर होना चाहिए।  लोकतंत्र  का आधार ही संवाद है और परदा , घूंघट संवाद में बाधा। परदा  नहीं जब कोई ख़ुदा से बन्दों से परदा  करना क्या ......
तस्वीर भास्कर से साभार है 

टिप्पणियाँ

  1. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 15/11/2018 की बुलेटिन, " इंक्रेडिबल इंडिया के इंक्रेडिबल इंडियंस - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. पर्दे मेैं वोट माँगना -कैसी अजीब बात है .जब सामने नहीं आ सकतीं तो कैसे समझेंगी सामना करेंगी लोगों की समस्याओं का.

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  3. यही तो है इनक्रेडिबल इण्डिया

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