हार
इस चुनाव में कोई जीते
पद की गरिमा हारी है
ज़ुबां से सादगी हारी है
शक से यकीन हारा है
शोर से शाइस्तगी हारी है
नासहों से इबादत हारी है
बहस से रिश्ते हारे हैं
दग़ाबाज़ी से यकीन हारा है
नफ़रत से मोहब्बत हारी है
बेहयाई से तहज़ीब हारी है
फिर भी मैंने नहीं टांगा है
अपने भरोसे को खूंटी पर
मैं अपने इस लिखे से हारना
चाहती हूँ ....
वर्षा-शाहिद
नासहों - उपदेशकों
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