लड़कियों के लिए सामाजिक व्यवस्था अब भी क्रूर और जजमेंटल
 
चंडीगढ़ की वामिका हो या जयपुर की स्वप्निल समाज और व्यवस्था अब भी इनके लिए बेहद क्रूर हैं । समाज इन्हें अपनी निगाहों  से तौलता -परखता रहता है और क़ानून व्यवस्था वह मंच नहीं दे पाती जहां वे निडर होकर अपनी पीड़ा कह सकें। कई बार दोनों युति बनाकर पीड़िताओं के हक़ में होने से इंकार करती हैं। नतीजतन एक के बाद एक कई लड़कियां और महिलाएं जुर्म का शिकार होती चली जाती हैं। आधी आबादी की तरक़्क़ी के रास्ते रुक जाते हैं। परिवार उन्हें कैद रखने में ही अपना हित समझने लगता हैं। उनकी पूरी कोशिश केवल इतनी होती है कि लड़की मायके में सुरक्षित रह कर सीधे ससुराल सुरक्षित पहुंच जाए। आंख फिर केवल तब खुलती है जब ससुराल से बेटी की असमय संदिग्ध मौत की ख़बर मिलती है।अब भी कई परिवार इसी सोच पर यकीन रखते हैं कि हमने डोली सजा दी , अब अर्थी भी वहीं से सज-धज कर  निकले। यह सोच घरेलू हिंसा को बढ़ावा देती है। कुछ माता-पिता विवाहित बेटी को घर में रखना भी चाहते हैं तो समाज दबाव बनाता है। अफ़सोस कि  इस इतवार को जयपुर की स्वप्निल संदिग्ध हालात में मौत की नींद सो गई और चंडीगढ़ की वामिका के आरोपी को बीच सुनवाई में सरकार ने ज़िम्...
 
