ऑपरेशन सिंदूर जारी है और जारी है चुनावी रोड शो

ऑपरेशन सिंदूर के बाद सरकार कुछ ज़्यादा ही बेचैन नज़र आ रही है। यह बेचैनी कभी मंत्रियों की ज़ुबां से झलकती है तो,कभी विधायकों की तो कभी प्रधानमंत्री के भाषणों से। हाल ही में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख ने भी अपने साक्षात्कार में जो कहा है, वह भी इस बेचैनी को पुष्ट करता है। आख़िर प्रधानमंत्री को विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करो और संघ प्रमुख को यह कहने की ज़रूरत क्यों पड़ी कि भारत के पास ताकतवर होने के आलावा कोई विकल्प नहीं है और हिन्दू शक्ति को एक होना पड़ेगा ? कहा तो ये जा रहा है कि ऑपरेशन सिंदूर अभी जारी है। सीमांत प्रदेशों में मॉक ड्रिल चल रही है और सेना अलर्ट मोड में है। जब सीमा पर यूं तनाव बना हुआ है तब जनमानस को तमाम रोड शो और घर-घर सिंदूर बांटने जैसी प्रक्रिया में क्यों उलझाया जा रहा है ? क्या यह युद्ध के माहौल को चुनावी उन्माद में बदलने की कोशिश है ? आपातकालीन हालात बने रहें और ज़्यादा सवाल-जवाब भी ना हों ? लिखने-बोलने पर तो गिरफ़्तारियों का सिलसिला जारी है ही। फिर ये कौनसी नई परिस्तिथियां हैं कि पक्ष-विपक्ष के अन्य नेता तो विदेश में हिंदुस्तान का ...