अडाणी पर उठी आवाज़ संसद से बाहर

 


बीते सप्ताह इसी जगह लिखे  एक लेख का शीर्षक था 'मुद्दा बनाओ और घेर लो ',और अब सप्ताह बीतने  से पहले ही राहुल गांधी को पूरी तरह घेर लिया गया और संसद से उनकी सदयता भी समाप्त कर दी गई। इसे बदले की सियासत से ज़्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता। अव्वल तो मानहानि मामले में दो साल की सज़ा अधिकतम होती है और सूरत की अदालत ने इसे भी एक महीने के लिए स्थगित कर दिया था। जो संसद पिछले एक पखवाड़े से नहीं चल रही थी, उसने सदस्यता ख़त्म करने के मामले में एक दिन का समय भी नहीं लिया। सरकार ने जो मुस्तैदी इस मामले में दिखाई है उससे स्पष्ट हो गया है कि भारत जोड़ो यात्रा के बाद और कारोबारी अडाणी पर तीखे हमले करने के बाद वे भाजपा के लिए 'पप्पू' नहीं 2024 की हार का भूत भी बन गए थे। सरकार के इस कदम के बाद  दुनिया में 
कौन भारत को  'मदर ऑफ़ डेमोक्रेसी ' कहेगा इसका जवाब भी सरकार को देना चाहिए। संसद से राहुल गाँधी की सदस्यता का ख़ात्मा तानाशाही की नई नियमावली का नया पाठ है।  

एक सत्ताधारी पार्टी जो विपक्ष के नेता को 'पप्पू ' तो  कहती है लेकिन फिर उसे घेरने में भी कोई कसर नहीं छोड़ती। किसी पप्पू से इतना डरते हुए किसी ने किसी को कभी नहीं देखा होगा। भारतीय जनता पार्टी से हर शिकारी को सीखना चाहिए कि फंदा बनाकर सो मत जाओ। नए फंदे बनाते जाओ, शिकार कभी तो फंसेगा। फ़िलहाल राहुल गांधी फंसते हुए ही नज़र आ रहे हैं लेकिन इस बीच कुछ ऐसा भी हो गया है जो होते-होते रह जाता था। अब तक विपक्ष की एकता का गुब्बारा ज्यों ही आसमान में उड़ता हुआ दीखता कोई न कोई इसमें छेद कर देता। ममता बैनर्जी और अखिलेश यादव की एकता ने कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी को समान दूरी पर रखा ही था कि राहुल गाँधी को दो साल जेल की आशंका संसद सदस्यता की समाप्ति ने  फिर सबको एक कर दिया है । कभी भाजपा भी ( 1977 और 1989 ) ऐसे ही एक होने को आतुर थी। यहाँ  इस बार तो आम आदमी पार्टी भी साथ आ गई है। वे अरविंद केजरीवाल जो हर राज्य में जा जाकर कांग्रेस के वोट काट रहे थे और जिन पर भाजपा की बी टीम होने का भी इल्ज़ाम था उन्होंने भी कह दिया है कि ग़ैर भाजपा नेताओं और पार्टियों पर मुक़दमे कर उन्हें ख़त्म करनी की साज़िश हो रही है। प्रधानमंत्री ने संसद में कहा था कि ईडी ने विपक्षी नेताओं को एक कर दिया है जबकि इस बार तो लगता है राहुल गाँधी ने सबको जोड़ दिया है। 

राजनीति में जेल किसी तमगे से कम नहीं मानी जाती। कुछ का तो यहाँ तक कहना था कि राहुल गांधी चूक कर गए उन्हें समय नहीं मांगना था और जेल जेल चले जाना चाहिए था। सरकार की अपेक्षा थी कि माफी संसद में ना सही सूरत की अदालत के सामने ही कर लेते कि मोदी नाम को भ्रष्टाचार से जोड़ने का उन्हें खेद है वे क्षमा मांगते हैं तो बात बन जाती । राहुल ने ऐसा कुछ नहीं किया। दो साल की सज़ा स्वीकारते ही वे संसद की सदस्यता से अयोग्य घोषित हो जाते और फिर दो साल तक सरकार उन्हें मानहानि के मुक़दमे में अंदर रखने में कामयाब हो जाती। जिस वक्तव्य पर राहुल गांधी को सज़ा सुनाई गई है वह उन्होंने  कर्नाटक के कोलार में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए दिया था। सेशन कोर्ट की ओर से टिप्पणी की गई कि सुप्रीम कोर्ट की सलाह के बावजूद राहुल गांधी के आचरण में कोई बदलाव नहीं आया है और जनता को सम्बोधित करने का तरीका गंभीर है यदि अभियुक्त को कम दंड दिया जाता है तो जनता में गलत संदेश जाता है  और इससे मानहानि का उद्देश्य भी हासिल नहीं होता है। गौरतलब यह भी है कि मानहानि  मुकदमा ना तो जनता में से किसी ने दायर किया था  और ना ही ललित मोदी ,नीरव मौदी या नरेंद्र मोदी ने जिनका नाम राहुल गाँधी ने लिया था। कर्नाटक के मामले का गुजरात में मुकदमा दर्ज़  किया गया।  भारतीय जनता पार्टी के विधायक और पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने मानहानि का दावा करते हुए कहा था कि इस टिपण्णी ने मोदी समुदाय का मान घटाया है। 

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने संवाददाताओं से बात करते हुए कहा कि इस मामले में न्यायाधीशों को बदला गया। यह गंभीर आरोप है जिसका स्पष्ट आशय है कि इस फैसले की चाहत में गहरी व्यूहरचना की गई है। खड़गे ने लाल बहादुर शास्त्री पर लिखी किताब माटी के लाल के विमोचन समारोह में कहा -"हम गांधी टोपी वाले लोग हैं,मोदी साहब के सर पर काली छतरी रहती है। काली छतरी के नीचे सब काले धंधे वाले लोग रहते हैं। हम इस फैसले के ख़िलाफ़ उच्च न्यायायलय में अपील करेंगे।" अब कानून मंत्री किरन रिजिजू का बयान भी देखिए -कांग्रेस नेताओं ने मुझे बताया कि राहुल गाँधी के रवैये से पार्टी डूब रही है ,सब ख़राब हो रहा है। उनकी पार्टी का नुक्सान तो होता ही है देश का भी नुकसान होता है। यह बड़ा ही रोचक बयान है,कांग्रेस की चिंता में डूबा हुआ। खैर अब लगता है कि देश में बयानबाज़ी पर राजनीतिक शुचिता कायम हो जाएगी। 2024 का चुनाव 'आप-जनाब ' के अंदाज़ में होगा। कांग्रेस की विधवा ,हाइब्रिड बछड़ा ,जर्सी गाय ,पचास करोड़ की गर्लफ्रेंड कोई नहीं बोलेगा। भारत की राजनीति के बड़े शालीन चुनाव हम देखेंगे। 

इस लिखे से लग सकता है कि मोदी नाम के लोगों को भ्रष्ट आचरण से जोड़ने का यहाँ समर्थन हो रहा है। ऐसा नहीं है। यह विरोध है जिसकी सत्ता है उसकी मनमानी ताकत के इस्तेमाल का। लोकतंत्र में बोलती बंद करने का कोई औचित्य नहीं है। कोई घुमाफिरा कर बात कहता है कोई सीधे। प्रतिद्वंदियों को यही अंदाज़ सीखना होगा, वरना दांवपेंच से सत्ता सबको जेल की हवा खिलाने की ताकत रखती है। कारोबारी अडाणी पर जीपीसी की मांग संसद को म्यूट कर सकती है ,माफी मांगने का दबाव बना सकती है और जेल भेजने का दमख़म रखती है। संयुक्त संसदीय समिति का गठन इससे पहले हर्षद मेहता , केतन पारीख  घोटालों में भी हुआ है। हर्षद मेहता के समय 1991 में जब कांग्रेस की सरकार थी और केतन पारीख के समय 2001 में जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी।  मेहता और पारीख पर जेपीसी हो सकती है तो फिर अडाणी  पर क्यों नहीं ? भारत के संसदीय इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ कि खुद मंत्रियों ने बजट सत्र को हंगामें की भेट चढ़ाया हो। अब अगर कोई कह दे कि मेहता, पारीख और अडाणी सब नाम गुजरात से ही क्यों आते हैं तो क्या यह भी मानहानि के दायरे में होगा ?

बात विपक्षी एकता की। ममता बैनर्जी की टीएमसी को छोड़ दिया जाए तो लगभग सभी विपक्षी दलों ने  सूरत की अदालत के फ़ैसले में सत्ता का योगदान देखा है। किसी भी लोकतंत्र में जब यह आशंका जताई जाए कि न्याय पालिका भी स्वतंत्र नहीं है तो यह निर्णायक क्षण होता है। सरकारी एजेंसियों के बाद अब न्याय तंत्र भी। अरविन्द केजरीवाल ने कहा कि राहुल गांधी को इस तरह मानहानि के मुक़दमे में फंसाना ठीक नहीं है। झारखंड मुक्ति मोर्चा के हेमंत सोरेन ने कहा सज़ा के निर्णय से असहमत हूँ। जनतंत्र के आगे धनतंत्र की कोई बिसात नहीं। समजवादी पार्टी के अखिलेश यादव ने कहा देश की मानहानि /जनता की मानहानि /सौहार्द की मानहानि / संविधान की मानहानि /अर्थव्यवस्था की मानहानि  भाजपा पर ना जाने कितने तरह के मानहानि के मुकदमे होने चाहिए। विपक्ष को नगण्य से मुकदमों  में फंसाकर अपना राजनीतिक भविष्य साधने वाली भाजपा विपक्ष की ताकत से डर गई है। विपक्ष के ऐसे अनेक बयान राहुल गांधी की इस सज़ा के निर्णय पर आए हैं। जबकि  ममता बैनर्जी और अखिलेश यादव की कोलकाता में बैठक के बाद अखिलेश यादव का साफ़ कहना था कि हम भाजपा और कांग्रेस से सामान दूरी बनाकर चलेंगे और भाजपा को हराने के लिए समाजवादी पार्टी ममता बैनर्जी के नेतृत्व में ढृढ़ता से खड़ी है। सज़ा का फ़ैसला एक महीने  टल गया है लेकिन जो आज दिख रहा है वह विपक्ष का एक सुर । आपातकाल के बाद 1977 का  मंज़र भी कुछ यही था। 


  

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