दोनों ही करते हैं देश की बात बाहर

  

राहुल गांधी की ब्रिटैन यात्रा समाप्त हो गई है लेकिन भारत में उनके सम्बोधनों और साक्षात्कारों के बाद जंग शुरू हो गई है। ये हमले इतने तीखे और निजी हैं कि जो खुद ही इस बात की पुष्टि कर रहे हैं कि भारत में इन दिनों सवालों के जवाब नहीं दिए जाते बल्कि जो सवाल कर रहे हैं उन पर हमला किया जाता है। इस तरह तो जो राहुल ने लंदन में कहा वह साबित होता हुआ लगता है। गाँव हो चुकी दुनिया में कहां क्या कहा जा रहा है वह छिपा नहीं है इस तरह विदेशी धरती जैसी अवधारणा भी नहीं बची है हां कुछ अधिनायकवादी देश ज़रूर ऐसा करने पर अपने से अलग आवाज़ों को दबा देते हैं या फिर सलाखों के पीछे डाल देते हैं। राहुल गाँधी पर ताज़ा बयान कानून मंत्री किरन रिजिजू का आया है ,तब क्या उन्हें उनके कथित देश के खिलाफ काम के लिए  गिरफ़्तार नहीं कर लेना चाहिए। जो बात कानून मंत्री को गलत लगी वह कानूनन सही कैसे हो सकती है। कानून मंत्री  ने कहा -"भारत के लोग जानते हैं कि राहुल गांधी पप्पू हैं लेकिन विदेशी नहीं जानते कि वे सही में पप्पू हैं। उनके मूर्खतापूर्ण बयानों पर रिएक्ट करने की ज़रूरत नहीं है लेकिन समस्या यह है कि उनके भारत विरोधी बयानों का बेजा इस्तेमाल भारत विरोधी ताकतें भारत की छवि ख़राब करने के लिए करती हैं।" बात सीधी और सरल है कि देश  विरोधी बात करने पर क्या कानून मंत्री उन्हें गिरफ्तार करेंगे क्या राहुल गाँधी ने जो भी लंदन में कहा कि पश्चिम के देश भारत में जो हो रहा है, उस तरफ से आंख मूंद कर नहीं बैठ सकते सही वक्तव्य है? 

अपनी हाल ही में संपन्न ब्रिटैन यात्रा के दौरान राहुल गाँधी ने कैंब्रिज,वहां की संसद,साक्षात्कारों के ज़रिये कई बातें कहीं। उन्होंने चीन, भारतीय संघ और भारत में घटते लोकतंत्र को रेखांकित करते हुए  पश्चिम के देशों से कह  दिया कि वे आंख मूंद कर बैठे हुए हैं। इस बयान पर  भारत में भारतीय जनता पार्टी के नेता खूब हमलावर हो रहे हैं। उनका कहना है कि राहुल गांधी विपक्ष की धरती पर भारत का अपमान कर रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष और सोनिया गांधी को इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए। दरअसल जवाब तो इस तर्क के साथ आना चाहिए कि जो राहुल गांधी कह रहे हैं, गलत कह रहे हैं। क्या कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विदेशी धरती पर( शंघाई की बैठक में) ऐसा नहीं कहा कि पहले भारतीयों को शर्म आती थी,अपने को भारतीय कहने में लेकिन आज उसका सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। क्या सियोल (दक्षिण कोरिया )में प्रवासी भारतियों को संबोधित करते हुए ऐसा नहीं कहा कि पता नहीं पिछले जन्म में क्या पाप किया था कि भारत में जन्म हुआ ? क्या ऐसा  कहने से विदेशी सरजमीं पर भारत का मान बढ़ जाता है जब वे कहते हैं  इसके पहले की सरकारों का कचरा हमें झेलना पड़ रहा है? बर्लिन में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का नाम लिए बगैर उन्होंने लाभार्थी योजनाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि अब किसी प्रधानमंत्री को यह नहीं कहना पड़ेगा कि 'मैं दिल्ली से एक रुपया भेजता हूं और नीचे पंद्रह पैसे पहुंचते है।’फिर उन्होंने अपने एक हाथ के पंजे को फैलाकर उसे दूसरे हाथ की अंगुलियों से घिसते हुए पूछा कि वह कौनसा पंजा था जो 85 पैसे घिस लेता था? इसी तर्ज पर उन्होंने कभी एक बात राजस्थान की सभा में भी कही थी कि वह कौनसी कांग्रेस की विधवा थी जो पेंशन का पैसा खा जाती थी? ह्यूस्टन,अमेरिका में 'अब की बार ट्रंप सरकार' के नारे भी प्रधानमंत्री ने मौजूद जन समूह से लगवाए थे। क्या यह सब विदेशी धरती पर भारत का सम्मान बढ़ाने के लिए किया गया था? यह किसी देश के आतंरिक मामलों में दख़ल नहीं था। दरअसल अभिवयक्ति की आज़ादी के हिसाब से देखा जाए तो दोनों ने ही अपनी बात कही है। किसी को किसी भी कटघरे में खड़े करनेकी बजाय स्वस्थ बहस होनी चाहिए यही लोकतंत्र का मूल आधार भी है। 

 अगर राहुल गाँधी अपने देश के लोकतंत्र को बचाने के लिए सशक्त देशों द्वारा  नज़र अंदाज़ करने की बात कह रहे हैं तो उन्हें भी अपना मंतव्य स्पष्ट करना चाहिए क्योंकि उनकी बात  की आलोचना में उनकी पार्टी के पुराने बाग़ी भी मुखर हो चले हैं। राजस्थान में एक समय सचिन पायलट  के समर्थन में  बाग़ी हो गए मंत्री विश्वेन्द्र सिंह के बेटे अनिरुद्ध सिंह ने अपने ट्वीट में कहा है -"वे झक्की हो चुके हैं जो अपने ही देश को दूसरे देश की संसद में अपमानित करते हैं या शायद वे इटली को अपना देश मानते हैं। " उन्होंने दूसरा ट्वीट राहुल गांधी की उस टिप्पणी पर किया कि भारतीय जनता पार्टी हमेशा सत्ता में नहीं रहेगी। "क्या यह बकवास वे अपने देश में नहीं कर सकते थे या जेनेटिकली उन्हें यूरोप की मिटटी ही पसंद है।" बहरहाल सचिन पायलट के कट्टर समर्थक अनिरुद्ध सिंह का विवाद से नाता नया नहीं है। मई 2021 में वे अपने पिता विश्वेन्द्र सिंह के लिए कह चुके हैं कि वे अपने पिता से छह हफ़्तों से बात नहीं कर रहे हैं क्योंकि उन्होंने मेरी मां  के ख़िलाफ़ हिंसा का सहारा लिया। यह सच है कि  मंत्री विश्वेन्द्र सिंह पहले खुलकर सचिन पायलट के समर्थन में आ गए थे लेकिन मामला शांत होने के बाद उनकी दोबारा दोस्ती अशोक गहलोत से हो गई और वे अब भी राजस्थान के पर्यटन मंत्री हैं । गांधी की आलोचना हो रही है तो प्रधानमंत्री की बातें कैसे उचित ठहराई जा सकती हैं, क्या इसलिए कि वे पीएम हैं ? तब राहुल गांधी भी विपक्ष के नेता हैं उनकी पार्टी वर्षों तक शासन में रही है। इस वक्त भी बारह करोड़ वोट उनकी पार्टी को मिलते हैं। पीएम विदेश में पिछली सरकारों की आलोचना कर अपनी सरकार के लिए वाहवाही लूटना चाहते हैं तो राहुल गांधी अपने ज़ख़्म दिखाकर हमदर्दी की तलाश में हैं । अतीत में ऐसा किसी राष्ट्रध्यक्ष ने किया हो ऐसे उदाहरण न के बराबर मिलते हैं। ऐसे ज़रूर मिलते हैं कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने युवा और प्रखर अटल बिहारी वाजपेयी का  अमेरिका में खास ध्यान रखे जाने की पहल की थी। ऐसा भी नहीं है  कि किसी दूसरे देश के शासनाध्यक्षों ने हमारे देश में आकर यूं अपनी घरेलू राजनीति पर टीका-टिप्पणी की हो। पीएम ने यदि अपनी यात्राओं में भारत के लोकतंत्र को मज़बूती से पेश किया होता तो आज राहुल गांधी ऐसा बिल्कुल नहीं कर पाते। देश बड़ा है ,सरकारें आती-जाती हैं। यह जोड़ने वाली कड़ी सिरे से गायब है। ऐसा क्यों होना चाहिए कि विदेश की धरती पर  पूर्व प्रधानमंत्रियों और उनके दल को किसी शत्रु की तरह रखा जाए । राहुल गांधी भी परिवार के उस सदस्य की भूमिका में दिखाई पड़ रहे हैं जिनकी घर में सुनी नहीं जा रही, उनसे कहा जा रहा है कि थोड़ा अन्याय सह लो लेकिन घर की बात घर में रहने दो। यह भारतीय जनता पार्टी को भी समझना होगा कि उसके मुखिया देश के मुखिया हैं। किसी की आवाज़ घर में इस क़दर न दबाई जाए कि उसे बाहर निकलकर आवाज़ बुलंद करनी पड़े। क्रिया की प्रतिक्रिया होती ही है। 

कैंब्रिज में राहुल गांधी के व्याख्यान में से चीन को लेकर कही गई बात की भी आलोचना हो रही है। उन्होंने अमेरिका और चीन की तुलना करते हुए कहा था कि अमेरिका में दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से आए लोगों के अधिकार मज़बूत लोकतंत्र के दायरे में सुरक्षित हैं जबकि चीन की अर्थव्यवस्था उत्पादन से जुड़ी है। सच्चाई है कि चीन ने अपने उत्पादन से पूरी दुनिया पर छाप छोड़ी है। देश में हरेक को काम मिलने पर ज़ोर भी वहां की सरकार का होता है। इसके बारे में कहा जा रहा है कि यह चीन के समर्थन में कही गई बात है जबकि चीन को लेकर राहुल गांधी  हमेशा कहते रहे हैं कि चीन हमारी ज़मीन पर कब्जा कर चुका है और प्रधानमंत्री कहते हैं कि ना कोई घुसा था और ना कोई घुसा हुआ है। हमारे विदेश मंत्री यह कहते हैं कि चीन हमसे बड़ी ताकत है। हम कैसे उनसे लड़ सकते हैं। राहुल गांधी ने  कहा -'' भाजपा और आरएसएस की विचारधारा में जो  मूल तत्व है,वह है कायरता। अगर वो मुझसे कमजोर है तो मैं अपने चार-पांच मित्रों के साथ उसे पीट दूंगाऔर अगर वो स्ट्रॉन्ग  है तो फिर वो भाग जाते हैं ।" चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के सम्मान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं कह चुके हैं कि 1962 के बाद ऐसा स्वागत कभी चीन के राष्टाध्यक्ष का नहीं हुआ। अक्टूबर 2019 में जब शी भारत आए थे तब दोनों ने एक साथ झूला भी  झूला था।

राहुल गांधी अपने वजूद और लोकतंत्र को बचाने के लिए निकले हुए हैं यह उनकी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान भी  नज़रआया था। लोकसभा में माइक का बंद कर दिया जाना, उनकी पार्टी सहित कई  विपक्षी दलों पर ईडी,आईटी के छापे और सीबीआई की जांच के अलावा संवैधानिक इकाइयों को कमजोर किए जाने के ज़ख्म अब वे दुनिया को दिखाना चाहते हैं। वे साफ कहते हैं कि भारत में संवाद को ख़त्म किया जा रहा है। जैसे मैं कैंब्रिज में बोल पा रहा हूं वैसे मुझे भारत के  विश्वविद्यालयों में नहीं बोलने दिया जाता। पक्ष हो या विपक्ष देशहित दोनों के लिए सर्वोपरि होना चाहिए। चौराहे की चर्चा बनाने की कोशिश किसी की नहीं होना चाहिए। दोनों ही पक्षों को मर्यादा नहीं लांघनी चाहिए। छवि जब बिगड़ती है तो इस भूल सुधार का समय भी नहीं देती। देश की जनता अपेक्षा करती है कि ये दोनों पक्ष आपस में बात करें। लोकतंत्र किसी एक व्यक्ति एक पार्टी तक सीमित नहीं है। किसी एक जगह लोकतंत्र का कमजोर होना पूरी दुनिया के लोकतंत्र पर असर है। हाल ही में स्वीडन स्थित वी डेम (वेरायटीज़ ऑफ़ डेमोक्रेसी ) की 179 देशों की सूचि में 93 नंबर पर है। उदार लोकतांत्रिक इंडेक्स  (लिबरल डेमोक्रेटिक इंडेक्स )में भारत श्रीलंका (88 ) नेपाल (71)भूटान (65 ) से भी फिसड्डी साबित हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया की 72 फीसदी आबादी निरंकुश शासन व्यवस्था की शिकार हैं। क्या यह हम सबकी चिंता का विषय नहीं होना चाहिए ?









 






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