क्या अब संसद में दो विपक्ष हो गए हैं

 संसद में जो इन दिनों चल रहा है, वह देश के लिए किसी कार्यवाही का तो नहीं , व्यवधान का नज़ारा अवश्य प्रस्तुत  कर रहा है। सत्ता पक्ष जैसे विपक्ष की भूमिका में उतर आया है। उसने वही चोला पहन लिया है जो 2014 से पहले पहन रखा था। पक्ष और विपक्ष की बजाय देश को दो-दो विपक्ष दिखाई दे रहे हैं। अब ये दो विपक्ष मिलकर देशहित में कौन से निर्णय लेंगे यही जनता जानना चाहती है। संसद जहां चुने हुए नुमाइंदे विचार विमर्श करते हैं , सवाल-जवाब करते हैं, वहां सिर्फ शोरगुल है। फिर उसके बाद संसद ठप हो जाती है। एक पक्ष कहता है राहुल गांधी को माफ़ी मांगनी चाहिए और दूसरा अडानी समूह की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की मांग करता  है। देश मजबूर है इनका तमाशा देखने के लिए और दुनिया शायद यह भी समझने की कोशिश कर रही है कि जिस  राहुल गांधी पर लोकतंत्र के कमजोर होने वाली बात कहने के लिए माफी मांगने का दबाव है वहां भला बोलने की आज़ादी आखिर है कितनी ।

क्या ये हंगामा इसलिए है कि अमेरिका स्थित रिसर्च फर्म हिन्डनबर्ग  की अडानी समूह को लेकर आई रिपोर्ट सरकार को किसी फांस की तरह चुभ रही है। निकालते हैं तो रिश्तों का खुलासा हो जाएगा और भीतर है तो दर्द का शोर मचेगा। कुछ दिन पहले केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस को लेकर भी कहा था कि यह व्यक्ति भारत की स्वतंत्रता पर हमला कर रहा है और भारत के लोकतंत्र को हिलाने का प्रयास कर रहा है। यह भारत के लोकतंत्र में दखल है। जॉर्ज सोरस ने म्यूनिख सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस में कहा था कि अडानी के मामले में भारत के प्रधानमंत्री अभी चुप हैं लेकिन उन्हें भारतीय संसद में और विदेशी निवेशकों के सवालों के जवाब देने होंगे। अब की बार स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी पर  निशाना साधा  है ।वही तेवर,वही आक्रामक मुद्रा जो पिछले महीने जॉर्ज सोरस के खिलाफ थी। बुधवार को केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा _" राहुल गांधी ने एक ऐसे देश में जाकर विदेशी ताकतों का आह्वान किया,जिसका इतिहास भारत को गुलाम बनाने का रहा है। आज हर भारतीय नागरिक संसद से माफ़ी मांगने की बात कर रहा है। संसद केवल सांसदों का जमावड़ा नहीं है बल्कि भारतीय जनता का सामूहिक स्वर  है और भारतीयों की इच्छाशक्ति की संवैधानिक प्रतिच्छाया है।" तब ये  सांसद किसकी प्रतिच्छाया हैं जो पिछले डेढ़  महीने से हिंडनबर्ग रिपोर्ट की जांच की मांग कर रहे हैं । क्या ये देश की जनता की आवाज़ नहीं? क्या सरकारों को कभी ये खयाल आता है कि वे जो बोल रहे हैं वह किस कदर एकतरफा है। यहाँ भाषा का अलंकार तो है लेकिन आत्मा सिरे से गायब है।

बुधवार को ही एक ओर अभूतपपूर्व काम हुआ। अठारह दलों के साथ विपक्ष सड़क पर था। ये सभी सदस्य कांग्रेस अध्यक्ष के साथ प्रवर्तन निदेशालय (ईडी)के दफ्तर की ओर कूच कर रहे थे कि उन्हें रोक दिया गया। ये वहां अडानी मामले में शिकायत और जांच की अर्जी देना चाहते थे। बजट सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष की चुटकी लेते हुए कहा था कि ईडी ने इन्हें एक कर दिया है। दिलचस्प है कि अब अडानी के मामले में विपक्ष एक होकर ईडी के पास शिकायत लेकर जा रहा है। विपक्षी नेताओं का तर्क है कि ईडी विपक्ष के ख़िलाफ़ फ़र्ज़ी मामलों में जांच करता है। उनके 95 फ़ीसदी मामलों में टारगेट विपक्ष है जबकि अडानी मसला देश की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है वहां कोई जांच नहीं हो रही है। सवाल यही उठता है कि जब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए  याचिकाएं स्वीकार ली गई हैं तब विपक्ष ऐसा दबाव क्यों बना रहा है ? तर्क दिया जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट  केवल सेबी और अन्य जांच एजेंसियों की भूमिका पर सुनवाई करेगा कि वे  निवेशकों के हितों की रक्षा में कैसे नाकाम रही। सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई  से पहले ही सरकार ने यह कोशिश भी की थी कि सदस्यों के नाम बंद लिफ़ाफ़ों में हो लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इंकार कर दिया था । 

अडाणी समूह के कामकाज के संदिग्ध तरीकों का खुलासा अब देश के अख़बार भी कर रहे हैं। हिंडेनबर्ग की इस रिपोर्ट 'अडानी ग्रुप : हाउ वर्ल्ड्स थर्ड रिचेस्ट मैन इज़ पुलिंग द लार्जेस्ट कॉन इन कॉर्पोरेट हिस्ट्री' में मॉरीशस स्थित एक कंपनी को संदिग्ध माना था। अब एक बड़े अखबार ने अपनी खोजी रपट में लिखा है कि  कंपनी का नाम इलारा कैपिटल है और इसने इलारा इंडिया ओपोर्चुनिटीज़ फंड (इलारा आईओएफ )के ज़रिये अपने कुल कैपिटल का 96 प्रतिशत निवेश अडानी समूह में किया है। यह राशि जो कि नौ हज़ार करोड़ के करीब है इसने अडानी की तीन कंपनियों में निवेश किया है। इस कंपनी ने अडानी समूह की रक्षा से जुड़ी बंगलौर स्थित कंपनी अल्फ़ा डिज़ाइन टेक्नोलॉजी प्राइवेट(एडीटीपीएल ) लिमिटेड के तहत देश की रक्षा में शामिल मिसाइल और रडार के काम का ज़िम्मा लिया है। यह कंपनी इसरो और डीआरडीओ के साथ मिलकर काम करती है। ज़ाहिर है देश के रक्षा संबंधी काम में विदेशी कंपनी इलारा आईओ एफ का निवेश है। निवेश कानूनन हो सकता है लेकिन 96 प्रतिशत निवेश केवल अडाणी समूह में सवाल खड़े करता है। इस कंपनी को हिन्डनबर्ग ने भी फर्जी श्रेणी में रखा है और सुप्रीम कोर्ट की जांच में भी पड़ताल के लिए यह कंपनी आधार बनी है। हिंडनबर्ग को दिए अपने चार सौ पेज की रिपोर्ट में एक सवाल के जवाब  में अडानी समूह वसाका प्रमोटर्स नाम की एक कंपनी का जिक्र करते हैं जो इलारा की मालिक है और उसका एडीटीपीएल में लगभग 57 फ़ीसदी हिस्सा है। अख़बार का कहना है कि इस मामले रक्षा मंत्रालय ने टिप्पणी करने से इंकार किया। 

इस पोलपट्टी के बाद क्या प्रधनमंत्री को देश की जनता को जवाब नहीं देना चाहिए ? यह चिर ख़ामोशी क्यों ? आखिर क्यों जेपीसी की मांग पर संसद ही अवरुद्ध कर दी जाती है ? संसद को चलाने की ज़िम्मेदारी सरकार की है लेकिन दोनों संसद सत्रों में देखा गया कि सरकार इस ज़िम्मेदारी को पूरा नहीं कर रही है। यहाँ तक कि राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव में  प्रधानमंत्री ने अपना पूरा भाषण शोर के बीच दिया।  यह सोची-समझी रणनीति का हिस्सा ही मालूम होता था कि अडानी मुद्दे पर जब भी कोई सदस्य बोले, उसे बोलने नहीं दिया जाए। राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे के अडानी से जुड़े सीधे सवालों को रिकॉर्ड से ही हटा दिया गया । राहुल गांधी के सवालों में एक सीधा सवाल यह था कि ये शैल कंपनियां कौन चला रहा है और इससे देश की सुरक्षा को खतरा हो सकता है क्योंकि अडानी के पास देश के बंदरगाह और हवाई अड्डे हैं। अब जब रक्षा से जुड़ी कंपनियों के भी आधार विदेश में हैं तो सरकार को जवाब देना चाहिए और जो जवाब नहीं देना है तब जेपीसी की मांग पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। सरकार को डर किस बात का है। सबसे बड़ा दल उन्हीं का  है तो समिति में सदस्य भी उन्हीं के होंगे। कांग्रेस एक छोटा दल है लेकिन राहुल गांधी के लंदन दौरे के बाद भाजपा यह मानने को तैयार नहीं। वह माफ़ी पर अड़ी है। माफ़ी बनाम अडानी में संसद को उलझा दिया गया है। हिंडनबर्ग रिपोर्ट ,बीबीसी डॉक्युमेंट्री और राहुल गांधी का बयान सबमें सरकार को विदेशी साज़िश नज़र आती है तो फिर इससे लड़ने की ताकत भी तो संसद में ही तैयार होगी। संसद में केवल शोर क्यों है ? कवि प्रदीप  का लिखा और मोहम्मद रफ़ी का गाया जाग्रति फिल्म का  एक  गीत है - हम लाए हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के .. इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल  के.. ये ही बच्चे अब बड़े हो गए हैं। संसद में भी हैं लेकिन अब भी बच्चों की तरह शोर मचा रहे हैं।  






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