आने वाली पीढ़ियों को भूत का बंदी न बनाएं


"भारतीय होने के नाते हमारी साधन संपत्ति क्या है ? हमारे मानव जिनमें से एक तिहाई युवा हैं। ये ही हमारी वास्तविक शक्ति हैं। यदि हम उनमें उत्साह भर दें और उनकी साहसिक आत्मा को झिंझोड़ दें तो सोता मानव जाग्रत हो जाएगा और हम सारे विश्व पर विजय पा लेंगे।" यह बात पचपन साल पहले कही थी हमारे महान वैज्ञानिक डॉ सी.वी. रमन ने जिनके 'रमन इफ़ेक्ट'  की वजह से दुनिया ने उन्हें नोबेल पुरस्कार और देश  ने उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया था। वैज्ञानिक रमन 1970  में  दुनिया से  चले गए लेकिन क्या हम अपने देश के महान वैज्ञानिकों की दिखाई रौशनी में युवाओं का भविष्य देखने की कोशिश कर रहे हैं ? इन दिनों जो देश के बहुसंख्य युवा के साथ हो रहा है क्या वह किसी भी नज़रिए से हमारी वैज्ञानिक सोच को दर्शाता है? 

सोच और समझ का तो ऐसा तंत्र कोरोना काल में विकसित किया गया कि अबोध आबादी को लगा कि वायरस उन पर किसी चील की तरह झपट्टा मारेगा। उन्होंने अपने दरवाजे तक पर आना बंद कर दिया था । मकसद यही कि हम एक ऐसी चेतनाशून्य भीड़ में बदल जाएं जो बताई लीक पर चलती जाए। भारत की आध्यात्मिक आस्था जो किसी काल में मानव को हर अभाव और तकलीफ में हंसते हुए जीवन जीने का मंत्र देती थी, वह अब कहीं खो गई है। उसकी जगह ले ली है नफ़रत ने, ख़ुद को बेहतर साबित करने की होड़ ने और ऐसी बहस ने कि हम तो सर्वश्रेष्ठ थे लेकिन  आक्रमणकारियों ने हमें लूटा बरबाद किया। नेताओं ने फ़रमान दे दिया है कि अब जो भी हो हम अपना अतीत लौटाएंगे फिर चाहे इसके लिए देश की वर्तमान सरंचना ही क्यों न ढहानी पड़े।  इन हालात को  समझते हुए हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने जो टिप्पणी की है वह आज़ाद भारत के अमृत काल में किसी अमृत वाणी से कम नहीं मालूम होती है। 

 सर्वोच्च न्यायालय ने एक भाजपा नेता और वकील की याचिका  को ख़ारिज करने से पहले टिप्पणी की कि वे  इन मुद्दों को जीवित रख ,देश को उबाल पर लाना चाहते हैं। किसी भी देश के अतीत ,वर्तमान और भविष्य को  इस हद तक परेशान नहीं करना चाहिए कि आने वाली पीढ़ियां अतीत की बंदी बन जाएं। याचिका देश के एक हज़ार जगहों के नाम बदलने के लिए लगाई  गई थी। वकील का दावा था कि वे नाम आक्रांताओं के नाम पर रखे गए हैं तब जस्टिस बी वी नागरत्ना ने पूछा कि देश में कोई और समस्या नहीं है जो हम इन पुरानी चीज़ों के पीछे पड़े हुए हैं। वकील का तर्क था कि हमारे पास लोदी,गौरी , ग़ज़नी के नाम पर सड़कें हैं लेकिन पांडवों के नाम पर एक भी सड़क नहीं जबकि आज की दिल्ली यानी इंद्रप्रस्थ का निर्माण युधिष्ठिर ने किया था। अक्सर देखा गया है कि बहस करने वाले पौराणिक कथाओं और इतिहास के फर्क को मिटा देते हैं। महाभारत के पात्र उसका दर्शन इसलिए सबकी ज़ुबां पर  है क्योंकि यह महाकाव्य है, इतिहास नहीं। इसकी कथाओं ने मनुष्य की आत्मा को छुआ है जबकि इतिहास दौर विशेष में दर्ज़ हुई घटनाओं का सिलसिलेवार ब्यौरा है। तब की इमारतें,शिलालेख उसकाल खंड के हस्ताक्षर हैं । जैसे हड्डपा और मुअन जो दड़ो की खुदाई ने पांच हज़ार साल पहले की विकसित सिंधु घाटी सभ्यता से पर्दा उठा दिया था तब पूरी दुनिया चमत्कृत होकर रह गई थी कि भवन निर्माण में यह सभ्यता यूनानी और मिस्र की सभ्यताओं से भी आगे थी। सिंधु घाटी की सभ्यता से बड़े हवन कुंड मिलते हैं लेकिन मंदिरों का कोई आभास नहीं मिलता। कुतर्की यहाँ भी नाराज़ हो सकते हैं कि आप  ऐसा कैसे कह सकते हैं कि कोई मंदिर नहीं थे ? 

देश आए दिन ऐसी बहसों में उलझा दिया जाता है। यह वाक़ई दुःख के साथ हैरान करने वाला है कि एक मज़बूत लोकतंत्र की सबसे ऊंची अदालत को ऐसी  टिप्प्णी करने की ज़रुरत पड़ रही है। जस्टिस जोसेफ और जस्टिस नागरत्ना ने पूछा कि इतिहास से आक्रमण को कैसे दूर किया जा सकता है ?हम पर कई बार आक्रमण हो चुका है। क्या पहले हुई चीज़ों को दूर करने के बजाय हमारे देश में कोई और समस्याएं नहीं हैं ? हमें इस तरह की याचिकाओं के ज़रिये समाज को नहीं तोड़ना चाहिए ,कृपया देश को ध्यान में रखें किसी धर्म को नहीं। जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि हिन्दू धर्म जीवन का एक तरीका है  इसमें कोई कट्टरता नहीं है। जस्टिस जोसेफ ने कहा कि "केरल में हिन्दू राजाओं ने चर्चों के लिए ज़मीन दान में दी है यह भारत का इतिहास है कृपया इसे समझें। " दरअसल पीठ ने जो कहा वह कई भारतवासियों की आवाज़ बनकर सामने आ गया है जिसे लग रहा था कि उसकी आवाज़ अकेली है और थकने लगी है। 

जस्टिस बी.वी.नागरत्ना वही एकमात्र जज हैं जो पांच जजों की खंडपीठ के नोटबंदी के फैसले पर असहमत थीं। उनका सवाल था कि रिज़र्व बोर्ड ऑफ़  इंडिया  उस वक्त क्या कर रहा था?  जस्टिस नागरत्ना ने यह भी दर्ज़ किया  कि नोटबंदी का पहला कदम केंद्र की तरफ से था और बाद में आरबीआई से सहमति मांगी गईं।आरबीआई बार-बार लिखता है कि जैसा सरकार ने चाहा या सुझाव दिया। इसका मतलब आरबीआई ने खुद अपने विवेक का कोई उपयोग नहीं किया और केवल 24 घंटे में नोटबंदी को लागू कर दिया गया। उन्होंने यह भी लिखा कि नोटबंदी संसद में कानून बनाकर की जानी चाहिए थी, न कि सिर्फ एक नोटिफिकेशन से। फ़ैसला अवैध है। जस्टिस नागरत्ना की ये व्याख्याएं उम्मीद जताती हैं लेकिन सवाल फिर वही है कि जनता जिन्हें चुनकर भेज रही है वे क्यों नाकाम हो रहे हैं। 

बात इतिहास की करें तो जब गोरे अपनी ईस्ट इण्डिया कंपनी को लेकर आए तो उन्हें पहले पहल व्यापार करना था। कारोबार का पहल उसूल है बड़ी आवाम को अपना ख़रीददार बनाना।भारत आते ही उन्होंने कहा यहाँ दो राष्ट्र हैं, हिन्दू राष्ट्र और मुस्लिम राष्ट्र। ऐसा कहते -कहते वे कारोबार से कहीं आगे निकल गए । उन्होंने हमें ग़ुलाम बना लिया हम । उनके ही कहने पर अपनों पर गोलियां दागने लगे। इतिहासकार रोमिला थापर एक साक्षात्कार में कहती हैं -" अंग्रेज़ जब आए तब उन्होंने पहला सवाल किया आपका इतिहास कहाँ है जैसी चीन या ग्रीस के इतिहासकारों का  है? सबसे पहले उन्होंने कहा कि हम आपका इतिहास लिखेंगे। इतिहासकार जेम्स मिल ने ही सबसे पहले अपनी किताब 'द हिस्ट्री ऑफ़ ब्रिटिश इंडिया (1817  ) ' कहा कि यहाँ दो राष्ट्र हैं हिन्दू राष्ट्र और मुस्लिम राष्ट्र और ये दोनों हमेशा लड़ते रहते हैं। और यही बयान सभी अंग्रेज़ इतिहासकार लगातार दोहराते चले गए और फिर यही भारतीय मध्यम वर्ग का भी सच हो गया। यही इतिहासकारों की बुनियाद  बन गया । लगभग पचास साल पहले इस बात पर गहन विचार हुआ कि यह जो उनका लिखा इतिहास लेकर हम चल रहे हैं सही भी है या नहीं और तब पता चला की इतिहासकार मिल पूरी तरह गलत थे। " 


ज़ाहिर है यह नरेटिव जो गोरी हुकूमत ने बताया था आज की हुकूमत को भी रास आ गया। वह इसी थ्योरी पर चल रही है जबकि विभाजन की सबसे बड़ी त्रासदी हमारा देश हमारी पीढ़ियां भुगत चुकी हैं। हम इस दलदल में और क्यों धसना चाहते हैं ?क्यों हम विकास की नई गाथाएं नहीं लिख रहे ? हमारे पास पूरी आज़ादी है कि हम वर्तमान को अपने हिसाब से लिखें। हमारे अपने चुने हुए नेताअंग्रेजों की तरह व्यवहार क्यों कर रहे हैं ? उन्हें  तो देश को लूटकर ब्रिटैन को धनवान बनाना था ,इन्हें किसे बनाना है ? क्यों सुप्रीम कोर्ट को यह दायित्व याद दिलाना पड़ता है ?इस बार तो यह याचिका ख़ारिज हो गई जो अगली बार नहीं हो पाई तो ? अगली बार नई पीढ़ी अपने अतीत की बंदी बना दी  गई तो ?अगली बार कोई देश को उबाल पर रखने में कोई कामयाब हो गया तो ?

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