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देश के बाहर देश के लिए उठे दो बड़े क़द

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हम अक्सर नेताओं के भाषण सुनते हैं। लगभग सबका यही दावा होता है कि हम जो कह रहे हैं वही जनता के हित में है। ये अवसर मिलते ही हर मुद्दे पर बोलते हैं फिर चाहे उस मुद्दे पर इनका ज्ञान लगभग शून्य ही क्यों ना हो। ऐसे में देखा गया है कि विशेषज्ञ और बड़े पदों पर बैठे बुद्धिमान और ज़िम्मेदार दिमाग ज़्यादातर चुप्पी साध लेते हैं क्योंकि वे जब भी बोलते हैं सत्ता के पिट्ठू या तो समझ नहीं पाते या फिर उन्हें इस तरह घेरते हैं जैसे उन्होंने कोई देश विरोधी बात कह दी हो, गुनाह कर दिया हो। वही घिसे-पिटे चेहरे टीवी चैनलों पर आकर उन्हें दोषी ठहराने लगते हैं। कई गंभीर मुद्दे यहां 'ऐलिस इन वंडरलैंड' की तरह खो जाते हैं। सियासी दलों को भले ही तुरंत लाभ मिल जाता है लेकिन देशहित में कोई सार्थक विचार कभी आगे नहीं बढ़ पाते। शायद यही वजह है कि विशेषज्ञ देश के भीतर कुछ बोलने में हिचकते हैं लेकिन जब अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर बोलने का अवसर मिलता है तो वे बेहद सधे हुए ढंग से अपनी बात रखते हैं क्योंकि  बड़े मंचों पर आप केवल 'पॉलिटिकली मोटिवेटेड' नहीं हो सकते,वहां आप अपने विषय के विशेषज्ञ हैं । इस सप्ताह देश के दो...