दुनिया को खरीदने चले कारोबारी नेता
लगता है कारोबारी से नेता बने राष्ट्राध्यक्ष अपनी दूसरी पारी में दुनिया को खरीदने की चाह में निकल पड़े हैं। अभी डोनाल्ड ट्रम्प को अमेरिकी राष्ट्रपति का पद संभालने में एक सप्ताह से भी ज़्यादा का समय बाक़ी है लेकिन उनके बातें भरी गगरी की तरह छलक-छलक जा रही हैं। उनकी ताज़ातरीन बयानबाज़ी ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। खासकर यूरोप और कनाडा पर तो ट्रम्प जैसे भरी सर्दी में भीषण बर्फ़ीला तूफ़ान ला रहे हैं। पहले मैक्सिको फिर कनाडा को अपना 51 वां राज्य बनाने का मंसूबा उन्होंने जगज़ाहिर कर दिया है। इसे कुछ इस तरह भी समझा जा सकता है कि अपने अच्छे संबंधों के दौर में भारत बांग्लादेश के लिए यह कह देता कि उसे भारत का 29 वां राज्य बन जाना चाहिए क्योंकि वहां से घुसपैठ ज़्यादा हो रही है जो उसकी सुरक्षा के लिए खतरा है और समूचे दक्षिण एशिया की शांति और तरक़्क़ी के लिए ऐसा होना बहुत अच्छा है। अपनी तमाम मदद और सरंक्षण के बावजूद भारत के किसी प्रधानमंत्री ने कभी बांग्लादेश के लिए ऐसा कोई जुमला नहीं कहा क्योंकि जिस विस्तारवादी नीति के कारण चीन पूरी दुनिया के निशाने पर रहा है, वही रवैया अब ट्रंप का नज़र आ रहा है। कभी लड़ाई से तो कभी बातों से संयुक्त राज्य अमेरिका इस रवैये को जारी रखे हुए है। एक समयअलास्का को भी उन्होंने रूस से ख़रीदा था। ट्रंप के क़रीबी सलाहकार और कारोबारी इलोन मस्क ने भी जर्मनी के एक अख़बार में एक लेख लिख दिया कि मुल्क की प्रगति के लिए अब दक्षिणपंथी पार्टी को जीतना चाहिए। बेचारी संपादक को फिर इस्तीफा देना पड़ा। ट्रंप यहीं नहीं रुके हैं दुनिया के सबसे बड़े द्वीप ग्रीनलैंड को भी खरीदने की इच्छा उन्होंने दोहरा दी है। आखिर क्या वजह है कि ये ट्रम्प-मस्क की जोड़ी यूं यूरोपीय संघ के देशों और कनाडा को घेरती जा रही है और कैसा है ग्रीनलैंड ?
वियतनाम,इराक़,अफ़ग़ानिस्तान आदि देशों में शांति बहाली के नाम पर सैनिक दख़ल के बाद हाल ही में इजराइल के साथ अमेरिकी गलबहियां से हुई तबाही को पूरी दुनिया ने देखा है और देख रही है। फिर अब यूरोप और कनाडा को क्यों छेड़ा जा रहा है ? इस बर्फ़ीले ग्रीनलैंड को ख़रीदने की मंशा के बाद दुनिया जैसे हतप्रभ है। आख़िर यहां कौन शांति भंग करने आ रहा है ? वैसे इसे खरीदने के प्रयास 1867 और फिर द्वितीय वुश्व युद्ध के बाद भी अमेरिका ने किये हैं। 2019 में भी ट्रंप ग्रीनलैंड को खरीदने की बात कह चुके हैं और इस बार तो उन्होंने 'मेक अमेरिका ग्रेट अगेन' की तर्ज़ पर 'मेक ग्रीनलैंड ग्रेट अगेन' का नारा दे दिया है और कहा है कि जब यह हमारे देश का हिस्सा होगा तब हम इसे पूरी सुरक्षा देंगे और ख़ुशियों से भर देंगे। ट्रंप की इस ख़्वाहिश को हवा कहां से मिली है यह जानने से पहले दुनिया के इस सबसे बड़े और बेहद अद्वितीय द्वीप के बारे में भी जान लेना चाहिए जो सदियों तक दुनिया के लिए किसी निर्जन स्थान की तरह ही रहा। बेहद ठंडा है और दिसंबर 1991की एक रात में इसका तापमान -69.6 तक जा चुका है। सांताक्लॉज़ की घनी सफ़ेद दाढ़ी के पीछे दिखाई देती बर्फ़ और उनकी स्लेज को लेकर दौड़ते कुत्तों का दृश्य क्रिसमस पर जिस तरह साकार होता है, दरअसल वह इसी ग्रीनलैंड का है। जीवन के लिए मछलियां और सील ही उनका आधार है। इन कुत्तों की भूख सामान्य डॉग फ़ूड से नहीं मिटती,इन्हें सील मछली खिलानी पड़ती है। सील ही मानव जीवन का भी आधार रही है जो उन्हें भीषण सर्दियों में भी ज़िंदा रखती है। यहाँ के निवासी अपने अनुभव में लिखते हैं कि सील मछली में ही तमाम तरह के गोश्त और सब्ज़ियों का स्वाद और पौष्टिकता है। माइनस पंद्रह में यहां बच्चे आराम से खेलते हैं। इनका अपना संगीत है लेकिन गिटार के तार पर अक्सर ठंड आकर जम जाती है।
साइज और आइस दोनों ही ग्रीनलैंड क़ी पहचान है और यह पृथ्वी से अलग एक ग्रह मालूम होता है। औसत आयु यूरोपीय देशों की तुलना में दस साल कम है और हर सात दिन में एक ख़ुदकुशी देखी गई है जिसे विशेषज्ञ सख्त जीवन शैली से जोड़ते हैं। ग्रीनलैंड की आबादी 57 हज़ार है और आबादी का घनत्व इतना कम है कि औसतन एक किलोमीटर में केवल दशमलव शून्य तीन लोग ही रहते हैं। इसी ने डेनमार्क को दुनियाके बारहवें सबसे बड़े देश का दर्जा दिया है। डेनिश साम्राज्य के तहत ही ग्रीनलैंड है लेकिन उसकी अपनी सरकार है और वह स्वतंत्र है। डेनमार्क के अधीन रहकर भी ग्रीनलैंड एक स्वतंत्र द्वीप है जहां ज़िन्दगी बहुत मुश्किल है और कभी-कभी तापमान माइनस पचास भी चला जाता है। सत्रहवीं सदी में जब ग्रीनलैंड को डेनमार्क और नॉर्वे के नाविकों ने खोजा तब ही वहां ईसाई धर्म की नींव भी पड़ी। तब तक स्थानीय देवताओं की ही आराधना होती थी जिसका असर अब भी वहां की ज़िन्दगी पर हैं। साल 1814 में जब नॉर्वे, डेनमार्क से अलग हुआ तब ग्रीनलैंड का स्वामित्व डेनमार्क को मिला। 2009 में जनमत संग्रह के बाद ग्रीनलैंड डेनमार्क से अलग हो गया और अब पूरी तरह आज़ाद होने की सुगबुगाहट भी वहां के प्रधानमंत्री में देखी जा सकती है जिसे अमेरिका ने भांप लिया है। उसे रूस और चीन का दबदबा कम करना है जो अमेरिका और ग्रीनलैंड के बीच के समुद्री रास्ते पर पकड़ कर सकते हैं। दुनिया के उत्तरी छोर पर बसा ग्रीनलैंड रूस और अमेरिका के बीचोबीच बसा हुआ है।इसकी राजधानी नूक के स्थानीय भाषा में मांयने टोपी है। अब जब ग्लोबल वार्मिंग की वजह से ध्रुवों की बर्फ पिघल रही है ग्रीनलैंड की राह आसान हो रही है और यहां कई धातुओं के होने के संकेत मिल चुके हैं जो ऊर्जा और इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए ज़रूरी है। अमेरिका की निगाह यहां भी है। तब क्या ग्रीनलैंड भी यही चाहता है ?
ग्रीनलैंड के चुने हुए प्रधानमंत्री बोर्प एगड़ ने कहा है कि ग्रीनलैंड सेल के लिए नहीं है और न कभी होगा,हमें अपने आज़ादी के लिए संघर्ष को कभी नहीं भूलना चाहिए। इधर ट्रंप के बेटे ने अपनी हाल की ग्रीनलैंड यात्रा के दौरान दोहरा दिया है कि यह अद्वितीय है और अमेरिका की सरपरस्ती में यह बेहद ख़ुशहाल हो जाएगा। दिलचस्प है कि महाभारत ग्रन्थ से लेकर दुनिया की तमाम लोक कथाएं पुत्रमोह के नुकसान को समझाती आ रही हैं। यहां तो सत्ता और ताकत भी शामिल है। वह देश खरीदने चल पड़ता है। इसके पहले अलास्का को भी रूस से अमेरिका ने 1867 में ख़रीदा (7.2 मिलियन डॉलर )था जो बाद में सोने,तेल और लकड़ी का भंडार साबित हुआ और आज संयुक्त राज्य अमेरिका का प्रमुख सैन्य अड्डा है। कुछ ऐसी ही उम्मीद ग्रीनलैंड से भी हो लेकिन यूरोपीय संघ के देशों ने कड़ा जवाब देते हुए कहा है कि संघ किसी और देश को अपनी सीमाएं तय करने नहीं देगा। उधर डेनमार्क ने भी कह दिया है कि ग्रीनलैंड चाहे तो आज़ाद हो सकता है लेकिन अमेरिका का राज्य बिलकुल नहीं बनेगा। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो अब इस्तीफ़ा दे चुके हैं लेकिन ट्रंप द्वारा अपना गवर्नर कहने पर कनाडा ने सख़्त एतराज़ जताया है। ख़रीदारों को दौलत के बदले अब देश चाहिए। पहले विश्व युद्ध के बाद शांति का हवाला देते हुए ऐसा किया और अब अपनी शक्ति के प्रदर्शन के लिए वे टैरिफ बढ़ाने की धमकी देते हैं। इस सिलसिले को यहीं रुकना चाहिए।
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