गुनाहों की माफ़ी मांगने का समय !

अच्छा है कि यह नया साल अपने गुनाहों की माफ़ी मांगने का शगुन लाया है, तभी तो उस प्रदेश के मुखिया ने अपनी ही जनता से माफ़ी मांग ली  है जो बीते 20 महीनों से चीत्कार कर रही है। राज्य जो जनजातीय संघर्ष में सैकड़ों जानों को ख़त्म होते और हज़ारों परिवारों को बेघर होता देख चुका है। शेष भारत भले ही अपने इस खूबसूरत हिस्से को उत्तर पूर्व की सात बहनों के नाम से जानता हो लेकिन यहां की बहनों को दंगाइयों क़ी भीड़ के साथ सड़कों पर निर्वस्त्र दौड़ते देख चुका हैं। इस हिंसा में चूक किसकी है, इसकी कोई ज़िम्मेदारी अब तक किसी की तय नहीं हुई है,कोई इस्तीफ़ा हमने नहीं देखा है लेकिन अच्छी बात है कि एक माफ़ीनामा आया है। मणिपुर हिंसा को लेकर मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने राज्य की जनता से माफी मांगी है। कहा कि 24 दुर्भाग्यपूर्ण समय था, हमें सब भूलकर आगे बढ़ना होगा। साल के आखरी दिन मणिपुर के मुख्यमंत्री ने कहा -मैं" बहुत अफ़सोस महसूस कर रहा हूं और राज्य के लोगों से कहना चाहता हूं कि जो कुछ भी पिछले 3 मई 2023 से आज तक हुआ, उसके लिए मैं माफी चाहता हूं। इस दौरान बहुत से लोग अपने प्रियजनों को खो बैठे, कई लोग  घर छोड़कर भागने को मजबूर हुए। मुझे सच में खेद है। मैं राज्य के सभी समुदायों  से अपील करता हूं कि जो हुआ सो हुआ,हमें अतीत की ग़लतियों को भूलना और माफ़ करना होगा और नई ज़िन्दगी शुरू करनी होगी और एक शांत मणिपुर बनाना होगा जहां  सभी 34 -35 समुदाय मिल-जुलकर रह सकें। 

जवाब में जो प्रतिक्रियाएं प्रदेश की जनता की आई हैं, उसे भी जान लेना चाहिए। वे कहते हैं -"जी हां, आपका माफ़ीनामा मरे हुए लोगों को ज़िंदा कर देगा ? आपने ही चीज़ों को बढ़ावा दिया। अच्छा होगा कि आप पद से उतर जाएं और शांति बहाल होने दें।"

"आपके हाथ मासूम लोगों के खून से रंगे हुए हैं श्रीमान वीरेन "

"मुख्यमंत्री ही ज़िम्मेदार हैं इस बेहद लंबे  और लंबित जनजातीय संघर्ष के लिए मणिपुर की जनता इसे कभी नहीं भूलेगी "

"घाव इतने गहरे हैं कि केवल सॉरी कह देने से नहीं भरेंगे ,लोगों का जीवन फिर से सामान्य करो।  "

"माफ़ी +सीएम पद से इस्तीफा दो +खुद को पुलिस के हवाले करो +हर क़त्ल का हिसाब दो और सौ साल तक जेल में रहो। "

"घड़ियाली आंसू। "

"बहुत देर हो गई "

अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं हैं कि ये दर्द से भरी प्रतिक्रियाएं हैं जो लोगों ने उस विडिओ  के नीचे लिखी हैं जो मुख्यमंत्री की माफी का है। लोकतंत्र में जनता की आवाज़ को सुना जाना चाहिए। लग रहा था कि मणिपुर अपने सामान्य दिनों में लौटने की कोशिश कर रहा है लेकिन तभी नवंबर में 22 लोगों को मार दिया गया। ये हमले शरणार्थी शिविरों पर जिरीबाम में किए गए थे। इसके बाद तो मणिपुर का सब्र जैसे बेक़ाबू हो गया। कई मंत्रियों, विधायकों के घरों पर हमले हुए जिसमें मुख्यमंत्री निवास भी शामिल था। इस घटना के बाद एनडीए के घटक दलों ने भी समर्थन वापस लेने की घोषणा कर दी।  मीज़ो नेशनल फ्रंट ,नेशनल पीपल पार्टी ने तो विरोध किया ही भारतीय जनता पार्टी के विधायकों का गुस्सा भी सतह पर आ गया। इस घटना ने नाकामी की सारी परतों को जैसे उधेड़ कर रख दिया था। नए साल के अंतिम दिन मंगलवार को जब इन हालात पर सीएम से  राजधानी इम्फाल की पत्रकारवार्ता में सवाल किये गए, तब उनका यह माफीनामा आया। साल 2002 में एन बीरेन सिंह(64) पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी में थे और विधायक बनें। बाद में इस पार्टी का विलय कांग्रेस में हो गया तब वे दोबारा मंत्री बने।फिर 2012 में उन्हें मंत्री पद नहीं मिला। साल 2016 में वे कांग्रेस छोड़ भाजपा में आ गए और 2017 से आज तक मुख्यमंत्री बने हुए हैं। इस अनुभवी नेता को धरातल की पूरी समझ है लेकिन वे मणिपुर को नहीं संभाल पाए। आरोप तो यह भी लगे कि इस जातीय संघर्ष में सीएम ने  आरामबाई तेंग्गोल संगठन का साथ दिया जो था तो एक सांस्कृतिक संगठन लेकिन इन दंगों  में उसने हथियार उठा लिए और सरकार का समर्थन उसे मिला। 

सीएम खुद मैती हैं और जब मैती ,कुकी जो और नागाओं में संघर्ष हो तो निरपेक्ष होने पर संदेह भी ख़ुद ब ख़ुद चला आता है। याद आता है वह दौर जब संघर्ष की स्थिति में हमारे संपादक घटनास्थल पर उन पत्रकारों को भेजा करते थे जो निरपेक्ष नज़र आएं। इसका ये मतलब नहीं था कि उन्हें शेष टीम से तटस्थता की उम्मीद नहीं थी बल्कि वे इस भाव को पुख्ता करना चाहते थे कि वे इसमें पार्टी नहीं है। मणिपुर को लेकर ऐसी कोई कोशिश केंद्र की नहीं रही। प्रधानमंत्री वहां गए भी नहीं हैं और ना चुप्पी तोड़ी है। बहुत संभव है कि उनके जाने से जनता में विश्वास पैदा होता और राजनीतिक स्थिरता को बल मिलता। यह हैरत और दुःख की बात है कि हर समस्या के हल का बल रखने वाली मोदी सरकार यहां भरोसा खो रही है जबकि सात साल से वहां उन्हीं के भरोसे का मुख्यमंत्री है। आख़िर ऐसा क्यों हुआ कि सोशल मीडिया खातों पर जो केवल मणिपुरी थे, वे अब मैतेई, कुकी और नागा हो गए हैं? क्यों ऐसा हुआ कि भीड़ जिन महिलाओं को निर्वस्त्र कर उनका जुलूस निकाल रही थी, उन्होंने अपने बयान  में कहा कि उन्हें ख़ुद पुलिस ने अपराधियों के हवाले किया था  ? मार्टिन लूथर किंग का एक कथन है -जो कुछ भी किसी को सीधे प्रभावित करता है ,वह दूसरों को भी अप्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित करता है। लिहाज़ा यह समझना भूल होगी कि यह केवल मणिपुर है,इससे समूचा उत्तर पूर्व और भारत प्रभावित होता है क्योंकि इस क्षेत्र से म्यांमार,बांग्लादेश,भूटान,चीन की अंतर्राष्ट्रीय सीमाएं लगती है। अब हुआ यह है कि आम जनता पर सख्ती बढ़ गई है। अब आधार से जुड़कर जन्म प्रमाण पत्र मिलेंगे जिसका हर पांच साल में नवीनीकरण ज़रूरी होगा क्योंकि मुख्यमंत्री का कहना है कि मणिपुर के कुछ ज़िलों में 420 फ़ीसदी मतदाता बढ़ गए हैं। जनता के लिए सख़्त हो जाना इस नई सियासत का नया चलन हो गया है। 

 मणिपुर से म्यांमार (बर्मा) की सीमा सटी हुई है,जनजातियों के आपसी रिश्तों की बागडोर भी जुड़ी है और आवाजाही भी रही। म्यांमार में सैनिक शासन के बाद वहां से काफ़ी लोग निकलकर सीमावर्ती देशों में बसे । अब सीमा सील है लेकिन अब भी 80 किलोमीटर का क्षेत्र बाकी है। अंग्रेज हुकूमत ने जब देश की सीमाएं खींची, कई गलतियां की या कहें कि उन्हें कोई मतलब भी नहीं था। मैतेई समुदाय को अंग्रेजों ने जनजाति माना था। इतने साल के बाद जब देश में आरक्षण का लाभ देखकर कुछ और भी समुदाय एसटी में  शामिल किये गए थे।वोटों की सियासत ने भी इसे बढ़ावा ही दिया। मार्च 2023 में मणिपुर उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से कहा था कि वह राज्य की आबादी में 53 प्रतिशत हिस्सा रखने वाले मैतई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के लिए चार हफ़्तों में केंद्र को सिफ़ारिश भेजे। इसके बाद जो हुआ सामने है। मणिपुर अपने खून रिसते ज़ख्मों पर मरहम रखने की उम्मीद कर रहा है। सरकारी आंकडों के ही मुताबिक इस हिंसा में 221 जानें ,60 हज़ार बेघरऔर एक हज़ार घायल हुए हैं। माफ़ी शुरूआत हो सकती है। साहित्य अकादमी पुरस्कार (1999 )विजेता लनचेनबा मीतै की मणिपुरी कविता 'द्वंद्व' जिसका अनुवाद सिद्धनाथ प्रसाद ने किया है ,इस तकलीफ़ को शब्द देती है। 

जबसे मुझे बोध हुआ

 तबसे मेरी इस काली लेखनी में

हे मां  तुम भरती आ रही हो निरंतर

लाल रंग की ही स्याही केवल

मैं कोशिश करता रहा अपने हित

मुड़े-तुड़े इस चीकट पन्ने पर

हरे रंग से लिखने की

इसी कारण है द्वंद्व

मेरे और मेरी लेखनी के मध्य

अनवरत एक-दूसरे से बाज़ी मारने का।


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