माना कि कनाडा के आरोप गलत हैं और अमेरिका
माना कि कनाडा के तमाम आरोप गलत हैं लेकिन फिर क्या है जो दोनों देशों के मजबूत संबंध आज दांव पर लगे हैं ? बीते कुछ समय से कनाडा और भारत उलझे हुए लगते थे लेकिन अब यह उलझन से कहीं बड़ा मामला हो गया है। दोनों ने अपने छह-छह राजनयिक वापस भेज दिए हैं। वीसा के स्तर पर भी बड़े विवाद हैं और कहा जा सकता है कि दोनों देशों के लिए यह बेहद मुश्किल वक्त है जैसा भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने भी स्वीकारा है। कनाडा का आरोप है कि इन डिप्लोमेट्स ने हमारी धरती पर हमारे देश के नागरिक को मरवाने के लिए भारत सरकार की मदद की। दोनों देशों के सुरक्षा सलाहकारों ने इस मसले को सुलझाने के लिए सिंगापुर में एक बैठक भी की लेकिन बात नहीं बनी। कनाडा का दावा है कि उसने भारत को तमाम सबूत सौंपे और जांच में सहयोग के लिए कहा लेकिन भारत सरकार ने ऐसा नहीं किया। जवाब में भारत ने कहा है कि यह सरासर बेबुनियाद और झूठा इलज़ाम है। आमतौर पर मित्र देशों सरकारें एक दूसरे का सहयोग करती हैं जिसकी वजह से ही अपराधियों और आतंकियों का प्रत्यर्पण भी होता है। जनता को पता भी नहीं चलता और काम हो जाते हैं। दुश्मन देशों के साथ ज़रूर शोर मचता है, किरकिरी होती है। जैसे भारत पाकिस्तान से मुंबई के ताज होटल के मास्टर माइंड आतंकी हफ़ीज़ सईद को मांगता रह गया ,नहीं मिला। बोफोर्स दलाली खाने वाला क्वात्रोचि भी हमको नहीं मिला। मामला केवल कनाडा तक नहीं है। अमेरिका ने भी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश में भारत के अधिकारी का शामिल होना बता दिया है। भारत ने इस अधिकारी के लिए कहा है कि अब वह बर्खास्त कर दिया गया है और एक अन्य को गिरफ़्तार कर लिया है।
यह सच है कि कनाडा से हमें दिक्कत रही है क्योंकि यह देश खालिस्तान समर्थक आतंकवादियों को पनाह देता रहा है। यह भारत तब से कहता आया है ,जब पंजाब में निर्दोष नागरिक गोलियों से भून दिए जाते थे ,सैकड़ों जवान शहीद हो जाते थे, देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी इसी आतंक का शिकार हुईं। अब ऐसी कोई दिक्कत नहीं। पंजाब शांत है ,किसान ज़रूर परेशान हैं लेकिन यह हिस्सा अब काफी बेहतर हालात में है। फिर ऐसा क्या हुआ कि भारत को कनाडा के घर में घुस कर कथित एक्शन लेना पड़ा ? भारत कनाडाई के द्विपक्षीय संबंधों का लम्बा इतिहास है। अमेरिका से भी ज्यादा लगभग आठ लाख विद्यार्धी वहां हर साल पढ़ने जाते हैं। वहां की आबादी में पांच फ़ीसदी से ज़्यादा भारतीय हैं जिनमें दो फ़ीसदी सिख हैं। इनमें से बड़ी आबादी को खालिस्तान समर्थकों और इस विवाद में कोई दिलचस्पी नहीं है। वे चाहते हैं कि इसका जल्द से जल्द निपटारा हो। पहली बार इस मामले का ज़िक्र सितंबर 2023 में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो ने वहां की संसद में किया। ट्रुडो ने कहा कि कनाडाई नागरिक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत सरकार के एजेंट्स और हत्यारों के लिंक के पुख्ता सबूत मिले हैं। यह गंभीर आरोप थे जो यह भी साबित करते हैं कि भारत जिसे अलगाववादी मानता है , कनाडा उसे अपनी ज़मीन पर मारा गया अपना नागरिक। क्या यह कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो को अपना सिख वोटबैंक बनाए रखने का मामला है कि वे भारत से सीधे पंगा ले रहे हैं या फिर यह एक बड़ी अंतर्राष्ट्रीय घेराबंदी है जिसमें दुनिया के बड़े और कथित तौर पर विकसित देश शामिल हैं ? बेहतर होता कि भारत की संसद में भी इस पर त्वरित विमर्श होता। पक्ष -विपक्ष मिलकर कार्रवाई करते। जनता को भी विश्वास में लिया जाता लेकिन ऐसा नहीं हुआ और अब पानी सर के पार जाता हुआ दिख रहा है।
दूसरे मामले में जिस अलगाववादी और वकील गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साज़िश के सबूत अमेरिका ने भारत को दिए हैं उसके पास कनाडा और अमेरिका की दोहरी नागरिकता है। ये सबूत इतने प्रभावी बताए जा रहे हैं कि 'फाइव आईज़ देशों ने भी अपना समर्थन दे दिया है। कनाडा और अमेरिका के हम पर लगाए आरोपों के बाद फाइव आईज में आने वाले देशों कनाडा,अमेरिका,ब्रिटैन,ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैण्ड ने इक दूजे का साथ देने का ऐलान कर दिया है। यूं भी इनके बीच हुए करार के हिसाब से वे इंटेलिजेंस से जुड़ी सभी ख़ुफ़िया जानकरी साझा करते हैं। यह द्वितीय विश्वयुद्ध के समय बना संगठन है जो आज के दौर में भी साइबर और आतंक से जुड़े खतरों ,जासूसी से निपटने के लिए, एकदूसरे के साथ मिलकर काम करते हैं। क्या इसे इस तरह भी देखा जाना चाहिए कि अब चूंकि भारत रूस के नज़दीक आ रहा है ऐसे में ये ताकतवर देश अपना प्रभुत्व इन घटनाओं से ज़ाहिर कर रहे हैं। इस थ्योरी को मान भी लिया जाए तब भी भारत को अपने कमज़ोर पगमार्क क्यों रखने चाहिए। कनाडा के इस आरोप का भारत को कड़ा प्रतिउत्तर देना चाहिए क्योंकि उसने हमारे डिप्लोमेट्स से पूछताछ करनी चाही और जिसकी वजह से उन्हें मिली इम्युनिटी छिन गई। कोई भी देश एक राजदूत से पूछताछ नहीं कर सकता है।
ताज़ा घटनाक्रम यह है कि जिस पन्नू की हत्या की साज़िश के सबूत अमेरिका ने भारत को दिए थे उसके लिए भारत ने कहा है कि वह अधिकारी अब भारत सरकार का मुलाज़िम नहीं है। इस अधिकारी को सीसी-वन कोड का नाम दिया है जो एक भारतीय नागरिक निखिल गुप्ता के साथ पन्नू की हत्या की साज़िश में शामिल था। भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि ऐसा सबूतों के अध्ययन के बाद किया गया है। कहा जा सकता है कि इस मामले में तो भारत और अमेरिका के बीच युति बन गई है क्योंकि निखिल गुप्ता को अमेरिका ने चेक गणराज्य की राजधानी प्राग से गिरफ़्तार किया था। उसका कहना था कि पन्नू की हत्या के लिए भारतीय अधिकारी ने उसे एक 'हिटमैन' को नियुक्त करने के लिए कहा था। ताज़ा घटनाक्रम में रॉ अधिकारी विकाश यादव को भी दिल्ली में गिरफ्तार कर लिया गया है। अमेरिकी एफबीआई ने उसे भी 'वांटेड' करार दिया था। जिस लॉरेंस बिश्नोई गैंग की चर्चा भारत में है उसका सरगना गुजरात की जेल में है फिर भी इसके सदस्य पूरी दुनिया में आतंक मचाए हैं। यह भारत ,कनाडा अमेरिका सब जगह अपना आतंक फैला रहा है और चाक चौबंद व्यवस्था चुप है। सवालों का अंतहीन सिलसिला यहाँ से शुरू होता है। क्या बीते सत्तर-पचहत्तर सालों में हमने कभी भारत के लिए ऐसे आरोप सुने हैं ?आखिर कैसे यह गैंग भारत सरकार की जानकारी के बगैर विदेशों में हिंसक गतिविधियां चला रही है ?
फ़र्ज़ कीजिये कि कोई हमारे देश में हमारे नागरिक को किसी और देश के कहने पर हमला करे तो हमारी या सरकार की प्रतिक्रिया क्या होगी ? हम कैसे अपनी ज़मीन का इस्तेमाल हमारे ही नागरिक को ख़त्म करने के लिए होने दे सकते हैं। पाकिस्तान और उसकी ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई, हमारी ज़मीन का इस्तेमाल इस काम के लिए करती थी। क्या हैसियत रह जाती है, उसके बाद देश की। इज़राइल, रूस,अमेरिका जैसे देश दुसरे देशों में घुसकर अपने देश के दुश्मनों को मारते रहे हैं लेकिन यह अंतर्राष्ट्रीय कायदे कानून के साथ ही एक देश का नैतिक भी कम करते हैं । अमेरिका का पाकिस्तान में घुस कर आतंकी ओसमा बिन लादेन को मारा था। इसे रुतबे और ताकत से जोड़कर देखा गया। रूस पर भी इलज़ाम है कि उसने पूर्व जासूस सर्गेई स्क्रिपल की ब्रिटेन में ज़हर देकर हत्या की। इजराइल का तो एक लंबा सिलसिला है। भारत फ़ख़्र से कह सकता है कि उसका क़द ऊंचा रहा है। भारत,कनाडा, अमेरिका बड़ी लोकतांत्रिक शक्तियां हैं। मज़बूत द्विपक्षीय संबंध और व्यापार के साझेदार हैं। यह तनाव बरक़रार नहीं रहना चाहिए। बड़ी आबादी को असुरक्षित करने का बड़ा नुकसान होगा। अच्छा है भारत ने कनाडा की इस गतिविधि को बेहद ऊटपटांग और निरर्थक करार दे दिया है और कहा है कि यह अप्रत्यक्ष सूचनाओं पर आधारित अपमानजनक टिप्पणी है, देश भी ऐसा ही मानता है लेकिन अमेरिका, वहां ऐसा क्यों नहीं हो पाया ?
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