जैक डोर्सी ने तो केवल आरसी दिखाई है

 ट्विटर के संस्थापक और पूर्व सीईओ जैक डोर्सी के बयान  में  ऐसा कुछ भी नहीं है कि रोया-पीटा जाए, लेकिन सरकार के मंत्री हर तरफ से उन्हें घेरने में लगे हैं। जैक डोर्सी ने एक साक्षात्कार में कहा है कि भारत में किसान आंदोलन के दौरान सरकार ने उन्हें ट्विटर बंद करने की धमकी दी थी। डोर्सी के मुताबिक  भारत के कई पत्रकारों के अकाउंट बंद करने के लिए कहा गया जो सरकार के आलोचक थे,जबकि भारत एक लोकतांत्रिक देश है। जैक डोर्सी ने यह जवाब उस समय दिया जब भारत का कोई ज़िक्र सवाल में नहीं था। सवाल था कि दुनिया भर के ताकतवर लोग आपके पास आते हैं और कई तरह की मांग करते हैं। इन हालात से आप कैसे निकलते हैं? लगता है जैक डोर्सी के इस जवाब ने सरकार को दबाव में ला दिया है वर्ना एक साथ कई मंत्री यूं हमलावर नहीं होते । कहा जा सकता है कि जैक डोर्सी ने भी अपने कार्यकाल में शायद सर्वाधिक ताकतवर दबाव केवल तब ही महसूस किया हो। डोर्सी का यह बयान भले ही किसान आंदोलन के ढाई साल बाद आया हो, हिंदुस्तान के पत्रकारों व सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए यह सब अब आम है। जो सरकार से अलग राय रखते हैं, उन्हें दमन का सामना करना ही पड़ता है। ऐसा नहीं होता तो क्यों बीते सप्ताह ही एक मंत्री के कहने पर दो पत्रकारों की नौकरी चली जाती? पत्रकार ने मंत्री महोदया से उनके संसदीय क्षेत्र को लेकर सवाल क्या पूछ लिया, वे नाराज़ हो गईं। सवालों से मंत्रियों की सांस अटकती है। वे अपना रिकॉर्ड बस क्लीन रखना चाहते हैं । इतना क्लीन कि फिर धमकी देने से भी बाज़ नहीं आते। ट्विटर किनअप्रैल महीने में जारी ट्रांसपरेंसी रिपोर्ट कहती है कि ट्विटर से कॉन्टेंट हटाने की मांग के मामले में भारत दुनिया में सबसे आगे है। यूजर डेटा हासिल करने के लिए 85 देशों ने अपनी 16 हज़ार मांगें भेजी थीं जिसमें भारत के बाद अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी और जापान का नंबर है।


जैक डोर्सी का बयान हो या बीबीसी की फ़िल्म या फिर अडानी के कारोबार के खिलाफ आई हिंडेनबर्ग की रिपोर्ट आखिर देश की प्रतिष्ठा को यूं नुकसान क्यों पहुंच रहा है? क्यों जॉर्ज सोरस बोलने पर आमादा हो जाते हैं और क्यों इज़राइल के फिल्म निर्देशक 'द कश्मीर फाइल्स' फिल्म को सरकार का प्रोपेगेंडा बता जाते हैं? हमारे लोकतंत्र पर सवाल क्यों उठ रहे हैं? जिस तरह ऑस्ट्रेलियाई संसद में बीबीसी की फिल्म 'इंडिया: द मोदी क्वेश्चन' का प्रदर्शन किया गया, वैसे ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अमेरिका यात्रा से पहले एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वाच भी इस फिल्म का प्रदर्शन वाशिंगटन में करने जा  रहे हैं। एक देश के लिहाज से हम भारतीयों को सोचना चाहिए कि क्यों दुनिया भारत को इस नजरिए से देखने लगी है? भारत की गरीबी, खराब हाइजीन, ट्रैफिक हमेशा से चर्चा का विषय रहे हैं लेकिन अब लोकतंत्र को लेकर भी संशय खड़े हों रहे हैं। जिस तरह सरकार के मंत्री बयान के आते ही विरोध करने लगते हैं, वह किसी गली नुक्कड़ की लड़ाई सा आभास देता है। जैक डोर्सी की बात पर खेल मंत्री अनुराग ठाकुर भी बोले, कपिल मिश्रा भी, इलेक्ट्रॉनिक और तकनीक राज्य मंत्री चंद्रशेखर के साथ पूर्व कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद भी। तत्कालीन आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद कहते हैं'- "सच्चाई यह है कि डोर्सी को ट्विटर से हटा दिया गया है। इनके और साथियों द्वारा भारत के खिलाफ एजेंडा चलाने वालों को आशीर्वाद  मिलता था। पाकिस्तान के असत्यापित अकाउंट जो भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देते थे, उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं होती थी। महिलाओं के लिए गंदे ट्वीट के खिलाफ कोई शिकायत सेल वहां नहीं थी। किसान आंदोलन के समय कई अतिवादी लाल किले पर चढ़े थे कि नहीं, भारत का तिरंगा उतारा था कि नहीं? वहां प्रधानमंत्री झंडा फहराते हैं। कैपिटल हिल पर अमेरिका में जो हमला हुआ उसे वे सही मानते थे। उसको वे आज़ादी का प्रतीक मानते थे। ऐसा नहीं चलेगा। भारत का कानून उनको मानना पड़ेगा।"

दरअसल पूर्व मंत्री जो कह रहे हैं कि वह डोर्सी की इस बात को नहीं नकार पाता कि किसान आंदोलन के दौरान ट्विटर यूज़र्स पर दबाव बनाया गया था। सही है कि कानून सर्वोपरि है लेकिन अंतर्राष्ट्रीय महिला पहलवानों की शिकायत पर यह क्यों लागू नहीं होता? सारी दुनिया देख रही है कि यौन दुराचार के सारे सबूत महिला पहलवानों से मांगे जा रहे हैं और घटनाओं का सीन दोहराने के लिए जब पहलवान ले जाई जाती हैं, आरोपी ब्रजभूषण शरण सिंह उस समय घटनास्थल पर मौजूद होता है। हर सरकार को लगता है कि उसका हर कदम सही है लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि वह आलोचनाओं को जगह देने का माद्दा कितना रखती है। किसान आंदोलन के दौरान यह जगह नहीं मिली। किसानों को खालिस्तानी कहा गया। युवा पर्यावरण कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया गया। ग्रेटा थनबर्ग के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने जांच बैठाई। बंगलौर से एक युवती को गिरफ्तार कर दिल्ली लाया गया। यह बोलने वालों का दमन ही तो  था। दिल्ली सीमा पर में आंदोलनकारी किसानों की ख़बरें लिख रहे पत्रकारों को हिरासत में लिया गया। हाल ही में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने जिस लहजे में पत्रकार से बात की, वह क्या था? पत्रकार ने अमेठी संसदीय क्षेत्र की महत्वपूर्ण विधानसभा सीट जगदीशपुर के बारे में सवाल किया तो वे आक्रामक हो गईं और कहा कि तुम्हारे मालिक को फ़ोन कर दूंगी। तुम यूं मेरे क्षेत्र की जनता का अपमान नहीं कर सकते। अपनी नौकरी के लिए व्यथित चौकीदार का मंत्री महोदय की गाड़ी के आगे ख़ुदकुशी करने का प्रयास और उससे जुड़ा सवाल क्षेत्र की जनता का अपमान कैसे हो सकता है? पता नहीं फिर मंत्री का फ़ोन गया या नहीं, अख़बार की ओर से तुरंत ट्वीट आ गया कि ये दो पत्रकार हमारे स्थाई स्टाफ का हिस्सा नहीं हैं। जानना ज़रूरी है कि गाँवों और दूरस्थ क्षेत्रों से जो पत्रकार अखबार को खबर भेजते हैं वे स्ट्रिंगर कहे जाते हैं। पहले तो उन्हें सेंटीमीटर नाप-नाप कर थोड़ा पैसा मिलता था, अब तो उन्हें कैमरा और माइक भी थमा दिया जाता है कि "जाओ, बाइट लाओ।" काम के दबाव के साथ नौकरी जाने  की तलवार हमेशा लटकती  रहती  है।

यूं जैक डोर्सी, हिन्दुस्तान और विवाद नाता पुराना है। नवंबर 2018 में वे भारत की यात्रा पर थे। मोदी, राहुल गाँधी, शाहरुख़ खान आदि से मिले लेकिन विवाद से उनकी मुलाकात तब हुई जब वे भारतीय महिला पत्रकारों, लेखिकाओं और कार्यकर्ताओं से मिले। एक दलित एक्टिविस्ट संघपाली अरुणा ने उन्हें एक तख्ती यानी प्लेकार्ड दिया जिस पर लिखा था 'स्मैश ब्राह्मणीकल पेट्रिआर्की' यानी ब्राह्मणवादी पितृसत्ता को तोड़ दो।  इस प्लेकार्ड को तब के ट्वीटर सीईओ जैक डोर्सी  ने क्या थामा भारत में आलोचना का तूफान आ गया था और जवाब देने से बचने के लिए उन्हें विपश्यना शिविर जाना पड़ा। ट्वीटर पर खूब घमासान मचा था। कहा गया कि हिन्दुओं की भावनाओं को आहत किया गया है और यह ब्राह्मणों के प्रति नफरत और पूर्वाग्रह से ग्रस्त है। ब्राह्मण संगठन ने उनके खिलाफ मानहानि का मुकदमा भी दायर किया था। ब्राह्मणवादी पितृसत्ता शब्द  का इस्तेमाल वर्चस्व या आधिपत्य जमाने वाले के लिए किया जाता है। बमुश्किल यह विवाद ठंडा पड़ा जब ट्वीटर ने इस पूरे मामले पर अपनी माफी की मुद्रा अपना ली । वैसे जैक डोर्सी ऐसे मोर्चों का हिस्सा बनते हैं जहाँ सामाजिक बदलाव की गुंजाईश हो।
फिलहाल कांग्रेस ने जैक डोर्सी की ट्विटर बंद करने की धमकी वाली टिप्पणी को मुद्दा बना दिया है। कांग्रेस का कहना है कि राहुल गाँधी के अकाउंट को भी ट्विटर ने सरकार के दबाव में ही बंद किया था और जब ट्विटर को इस खबर के वॉल स्ट्रीट जर्नल में प्रकाशित होने की सूचना मिली तब अकॉउंट बहाल कर दिया गया और उसके बाद उनके फ़ॉलोअर्स की संख्या लगातार बढ़ रही है। जो भी हो, तब जैक डोर्सी थे और अब एलन मस्क ट्विटर के सीईओ हैं। मस्क भी कह चुके हैं कि भारत में उनके कर्मचारियों पर जेल जाने का खतरा है। सच्चाई है कि तीन करोड़ उपभोक्ताओं के साथ भारत तमाम माइक्रो ब्लॉगिंग साइट्स के लिए बड़ा बाज़ार है। राजनीतिक दलों को यह सुनिश्चित करना पड़ेगा कि ये मंच खुद भी ईमानदार हों और अभिव्यक्ति की आज़ादी का सब सम्मान करें। सरकार के पास ठोस तथ्य होने चाहिए ताकि वे भी इन्हें आरसी यानी शीशा दिखा सकें।



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