मोहन भागवत का बयान: विवाद से विश्वास की ओर ?
जाते-जाते यह साल देश के कई नवरत्नों को हमसे छीन कर ले गया। बीता सप्ताह तो जैसे बहुत भारी रहा और देश का दिल कहे जाने वाले डॉ. मनमोहन सिंह,श्याम बेनेगल और उस्ताद ज़ाकिर हुसैन को हमसे दूर कर गया। देश ने भले ही उच्च कोटि के कला साधक, सद्भावी राजनीति की शिखर आर्थिक सोच रखने वाले विनम्र इंसान को खो दिया है लेकिन उम्मीद की किरण भी साल के इसी अंत से आ रही है क्योंकि जाते-जाते यह साल सार्थक बहस को जन्म देते हुए जा रहा है। दरअसल बहस है तो पुरानी लेकिन अब की बार उस जगह से आई है जहां से इसकी अपेक्षा तो थी लेकिन आशा नहीं थी। यूं तो मीडिया की तमाम बहसें, विचार यहां तक की ख़बरें भी इस तरह के संकेत देते हैं कि सरकार से असहमत हो जाना गुनहगार हो जाना है , देशद्रोही हो जाना है। यह आम चलन हो गया है कि उन लोगों को नवाज़ना है जो यह स्थापित करते हैं कि हम सदियों से दबे हिन्दू समाज की खोई अस्मिता वापस दिलाएंगे यह समय उसके जागरण का स्वर्णकाल है। ऐसे में इतिहास में जो भी भूल या जानबूझकर किए गए कृत्य हैं , उन्हें फिर लौटाना है। वे 'सभ्यतागत न्याय' की बात करते हैं। जुनून की हद तक यही संदेश भेजने में समूचा तंत्र सक्रिय है। इसके मुकाबले हर संगठन, दल की आवाज़ जैसे सोई हुई मालूम होती है । एक सिलसिला- सा है कि विवाद उठाओ और फेमस हो जाओ।
बीते गुरुवार को पुणे में 'हिंदू सेवा महोत्सव' के उद्घाटन के मौके पर बोलते हुए मोहन भागवत ने इसी माहौल पर चिंता जाहिर करते हुए दोबारा मंदिर-मस्जिद चैप्टर को बंद करने की बात कही। मोहन भागवत ने कहा - "राम मंदिर के साथ हिंदुओं की श्रद्धा है लेकिन राम मंदिर निर्माण के बाद कुछ लोगों को लगता है कि वो नई जगहों पर इसी तरह के मुद्दों को उठाकर हिंदुओं के नेता बन सकते हैं, ये स्वीकार्य नहीं है। "उन्होंने कहा, "तिरस्कार और शत्रुता के लिए हर रोज नए प्रकरण निकालना ठीक नहीं है और ऐसा नहीं चल सकता। " किसी भी देशवासी को यह बात उम्मीद से भरी लग सकती है क्योंकि वह थक चुका है ऐसे हालात से। भारतीय जनता पार्टी के कट्टर समर्थक भी अब कहने लगे हैं कि बहुत हुआ, यह नफ़रत का माहौल देश में विकास की संभावनाओं को रोकता है। कौन वहां अपना धन व्यापार और उद्योगों के लिए निवेश करना चाहेगा जहां लोगों का आपसी भरोसा ही हिला हुआ हो। पुलिस और संगीनों के साए में किस शहर ,राज्य और देश ने प्रगति की है ? ऐसी सोच ही संभवतः संघ प्रमुख तक पहुंची होगी जो वे ऐसा कहने के लिए प्रवृत्त हुए लेकिन जिन्हें केवल अजेंडे से मोहब्बत है उन्होंने प्रतिरोध शुरू कर दिया है। यूं संघचालक का भाषण बहुत विमर्श और रणनीति के साथ तैयार होता है। ज़ाहिर है कि फ़िलहाल जो देश में चल रहा है ,संघ उसे पसंद नहीं कर रहा है। स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा कि "हिंदू धर्म की व्यवस्था के लिए वो ठेकेदार नहीं हैं। हिंदू धर्म की व्यवस्था, हिंदू धर्म के आचार्यों के हाथ में हैं। वो किसी एक संगठन के प्रमुख बन सकते हैं। हमारे नहीं हैं। संपूर्ण भारत के वो प्रतिनिधि नहीं हैं।"
ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद अपना क्रोध कुछ यूं प्रकट करते हैं - "जो लोग आज कह रहे हैं कि हर जगह नहीं खोजना चाहिए, इन्हीं लोगों ने तो बात बढ़ाई है और बढ़ाकर सत्ता हासिल कर ली। अब सत्ता में बैठने के बाद कठिनाई हो रही है।" क्या वाक़ई इस नफ़रत और भेदभाव के बाद सत्ता में बने रहना मुश्किल हो रहा है जिसकी इसी साल हुए लोकसभा चुनावों में झलक भी मिली। फिर संघ के मुखपत्र ऑब्ज़र्वर क्यों इसे स्वीकार नहीं कर पा रहे ? उसमें संभल पर प्रकाशित आमुख कथा ( कवर स्टोरी) में लिखा है कि यह हिन्दू समुदाय को सभ्यतागत न्याय दिलाएगा। ज़ोर था कि इतिहास के इन तथ्यों को खोजा जाना चाहिए। बावजूद इसके कि जब देश में प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 क़ानून है। इस एक्ट की धारा-दो कहती है कि 15 अगस्त 1947 में मौजूद किसी धार्मिक स्थल में बदलाव के विषय में यदि कोई याचिका कोर्ट में विचारार्थ भी है तो उसे बंद कर दिया जाएगा। अधिनियम की धारा तीन के अनुसार किसी भी धार्मिक स्थल को पूरी तरह या आंशिक रूप से भी किसी दूसरे धर्म में बदलने की अनुमति नहीं है। इसके साथ ही यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि एक धर्म के पूजा स्थल को दूसरे धर्म के रूप में ना बदला जाए या फिर एक ही धर्म के अलग खंड में भी ना बदला जाए।संभल को सुनियोजित तरीके से पाइपलाइन में डाला गया है। इस पूरे हिसाब-किताब को कांग्रेस से निकाले गए आचार्य प्रमोद कृष्णन देख रहे हैं। उनका कहना है कि संभल की जामा मस्जिद का निर्माण बाबर ने मंदिर तोड़ कर करवाया था और यह वही जगह है जहां विष्णु के ग्यारहवें अवतार कल्कि का जन्म होने वाला है। अब यहां संभल में मकर संक्रांति पर 14 जनवरी 2025 को कल्कि मंदिर का निर्माण शुरू हो जाएगा। कृष्णन कल्कि धाम निर्माण ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं और कहते हैं "जब से मोदी यहां आए हैं. तब से संभल में चमत्कार पर चमत्कार हो रहे हैं, नई-नई खोज हो रही हैं ऐसा लगता है भगवान का अवतार जल्द होगा।" पार्टी की लाइन साफ़ है क्योंकि उसे लगता है यह तरीका उसके वोट बैंक में बढ़ोत्तरी करता है। गहराई में देखें तो राजनीति के लिहाज़ से पार्टी संभल क्षेत्र में कमज़ोर है। संभल संसदीय सीट समाजवादी पार्टी के हक़ में जाती रही है या फिर बहुजन समाज पार्टी के। विधानसभा के नतीजे भी पार्टी के लिए दुखदाई रहे थे। 2022 में संभल की पांच विधानसभा सीट में से चार पर सपा जीती और एक आरक्षित सीट भाजपा को मिली । यहां से जीतीं गुलाब देवी को योगी मंत्रिमंडल में भी जगह मिली जो बताता है कि पार्टी क्षेत्र को लेकर गंभीर है। बीते माह संभल के मंदिर-मस्जिद विवाद ने पांच व्यक्तियों की जान ले ली थी। शायद यही सब देख कर संघ प्रमुख ने अपनी बात कही हो। देश ने उनके कहे को बहुत सकारात्मकता और उम्मीद से लिया है ,जैसे उसे इसकी प्रतीक्षा थी। नागपुर में भी साल 2022 में मोहन भागवत ने कहा था, "इतिहास वो है जिसे हम बदल नहीं सकते. इसे न आज के हिंदुओं ने बनाया है और न ही आज के मुसलमानों ने। ये उस समय घटा…हर मस्जिद में शिवलिंग क्यों देखना…अब हमको कोई आंदोलन करना नहीं है। " उनकी बात पर ज़रा भी गौर नहीं हुआ।
फिलहाल अच्छी बात यह है कि ऑब्ज़र्वर के सम्पादकीय लेखक ने अपना बयान जारी कर कहा है कि वे सामाजिक समरसता में यकीन रखते हैं और पूरी तरह से भागवत के बयान के साथ हैं। यह कुछ ऐसा है जैसे खुले आसमान में एक पंछी अपने घरोंदे के लिए तिनका लेकर उड़ा जा रहा हो। यह तहज़ीब की ओर जाती हुई उड़ान भी हो सकती है। यही समावेशी संस्कृति है जहां उस्ताद ज़ाकिर हुसैन के पिता अल्ला रक्खा कहते हैं कि वे भगवान गणेश और सरस्वती के उपासक हैं, बनारस के शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खान ने इस लेखिका को एक साक्षात्कार में बताया था कि वाराणसी में एक तरफ बालाजी का मंदिर, दूसरी ओर देवी का मंदिर और बीच में गंगा मां बहती है। अपने मामू अली खां के साथ रियाज करते हुए दिन कब शाम में ढल जाता, पता ही नहीं चलता था। उन्होंने गंगा के लिए कई न्योते ठुकरा दिए। .. और आख़िर में बनारस के लिए ही मिर्ज़ा ग़ालिब की बात- ''बनारस शहर के क्या कहने |अगर मैं इसे दुनिया के दिल का नुक़्ता (बिंदु) कहूं तो दुरुस्त है। इसकी आबादी और इसके अतराफ़ के क्या कहने। अगर हरियाली और फ़ूलों के ज़ोर की वजह से मैं इसे ज़मीन पर जन्नत कहूं तो बजा है। इसकी हवा मुर्दों के बदन में रूह फूंक देती है। कौन नहीं जनता कि इन दिनों वाराणसी और देश की विरासत का सबसे बड़े झंडाबरदार कौन हैं ।
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