महाचुनाव : सुनामी में भी जलते रहे दीए
फ़र्ज़ कीजिये कि महाराष्ट्र के चुनावी नतीजे ज़रा उलट होते यानी महा विकास आघाड़ी (कांग्रेस प्लस ) को बहुमत होता तब चुनावी विश्लेषक क्या कह रहे होते ? वे कह रहे होते कि भारतीय जनता पार्टी की तोड़-फोड़ की राजनीति को जनता ने पसंद नहीं किया,पहले उद्धव ठाकरे की शिवसेना को तोड़ा,फिर भी दिल नहीं भरा तब शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को भी तोड़ा ,ईडी, सीबीआई ,आईटी सबकी तलवार नेताओं पर लटकी थी।राज्य में किसानों की एक नहीं सुनी गई और जनता ने 'बटेंगे तो कटेंगे' और 'एक हैं तो सेफ हैं' का कोई असर नहीं लिया। वे कह रहे होते कि महाराष्ट्र के तमाम प्रोजेक्ट गुजरात को दिए जा रहे थे, इससे भी जनता नाराज़ थी और सरकार की 'माझी लाडकी बहीण योजना' भी कोई कमाल नहीं कर सकी क्योंकि यह ठीक चुनाव से पहले शुरू की गई थी। जनता महंगाई, बेरोज़गारी से परेशान थी इसलिए महायुति गठबंधन जिसमें सत्ताधारी भाजपा ,शरद पवार से टूटी हुई एनसीपी और उद्धव ठाकरे से टूटी हुई शिवसेना थी, हार गया। कहा जाता कि जनता अपनों से गद्दारी को पसंद नहीं करती, इसीलिए ऐसे चुनावी नतीजे मिले। यह भी कि अदाणी से जुड़े प्रोजेक्ट धारावी को रद्द करने का ऐलान भी उद्धव ठाकरे को नहीं बचा सका। तब क्या यह माना जाए कि इन सब मुद्दों को ठेंगा बता कर जनता ने अपना पूरा भरोसा महायुति में जता दिया और जिता दिया। ज़ाहिर है हार के बाद इन मुद्दों के कोई मायने नहीं है। महायुति की आंधी में महा विकास उड़ गया है और अतीत में जो भी हुआ उस जनता ने भी अपनी मुहर लगा दी है। आप करते रहिये विलाप कि जनादेश हाईजैक कर लिया गया था ,जनता ने एकनाथ शिंदे ,अजित पवार में भी नए सिरे से अपनी आस्था जता दी है। फिर भी इस सुनामी में कुछ दीप हैं जो टिमटिमा रहे हैं ।
वह चुनावी इंजीनियरिंग जबरदस्त थी जब भाजपा ने शिवसेना में से शिंदे सेना और शरद पवार की एनसीपी से अजित एनसीपी को तोड़ा। अखंड शिवसेना और अखंड एनसीपी के वोट शेयर को देखा जाए तो ये कुल 33 फ़ीसदी से भी ज़्यादा है और कुल 110 सीटें दोनों को मिली हैं। भाजपा,शिंदे सेना ,और अजित एनसीपी का स्ट्राइक रेट भी जबरदस्त रहा है। सत्तर से नब्बे फ़ीसदी का स्ट्राइक रेट बहुत ही दुर्लभ है। भाजपा ने सन 2014 की वेव में 122 सीटें जीतीं थी जो इस बार बढ़कर 132 हो गई हैं । लगता है जैसे चुनावी नाप-तौल के तमाम पुराने पैमाने को फैंकने का समय आ गया है। कांग्रेस प्लस का कोई दांव पेंच यहां नहीं चला। शरद पवार (10सीट )और उद्धव ठाकरे (20 सीट )की राजनीति का तो जैसे अस्त होने का समय है। ठीक पांच महीने पहले हुए लोकसभा चुनावों में इसी उद्धव सेना को नौ और शरद एनसीपी को आठ सीटें महाराष्ट्र की जनता ने दी थी। लोकसभा चुनाव में तो कांग्रेस का स्ट्राइक रेट भी 76 प्रतिशत के पार था जो विधानसभा चुनावों में 16 हो गया। तब संविधान पर ख़तरा ,जातीय जनगणना और अदाणी के मुद्दे असरदार हुए थे। कांग्रेस और उसके घटक दुविधा और अति आत्मविश्वास में भूल गए कि यह राज्य का चुनाव है। अब तो सीधे पूंजी का खातों में जाना मायने रखता है। मध्यप्रदेश की लाड़ली बहन योजना ने भी भाजपा के लिए ऐसा ही कमाल किया था और इस बार महाराष्ट्र और झारखंड ने।
शिंदे सरकार की 'माझी लाडकी बहीण योजना' और हेमंत सोरेन की 'मईया सम्मान योजना' ने महिलाओं को खूब जोड़ा और दोनों ही कामयाब रहे। बीते पांच महीनों में महाराष्ट्र में ढाई करोड़ महिलाओं के खातों में साढ़े सात हज़ार रुपए डाले गए। सोरेन सरकार ने 18 से 50 साल की 57 लाख महिलाओं को चौथी क़िस्त दी। सोरेन का जेल जाना भी हमदर्दी का कारण रहा। क्या दिल्ली चुनाव केजरीवाल के हक़ में भी ऐसी ही पटकथा लिखेगा? बहरहाल सोरेन ने अपने जेल अनुभवों के बाद कहा था कि वे हर ज़िले में ना सिर्फ लॉ कॉलेज खोलेंगे बल्कि स्थानीय भाषा में ही उनकी पढ़ाई भी कराएंगे क्योंकि जेल में सत्तर फ़ीसदी से भी ज़्यादा विचाराधीन कैदी हैं। वे जिन पर आरोप सिद्ध ही नहीं हुआ है। उन्हें पता ही नहीं होता कि उनका अपराध क्या है, क़ानूनी भाषा ही उनकी समझ में नहीं आती तब कैसे वे अन्याय से लड़ सकते हैं। सोरेन को एक ज़मीन घोटाले में गिरफ़्तार किया गया था लेकिन इस घोटाले का कोई ज़िक्र किसी चुनावी सभा में भजपा ने नहीं गया। सोरेन ज़रूर चुनौती देते रहे कि रांची में मेरे नाम की ज़मीन का कागज़ पटक कर दिखाएं। अगर ऐसा हुआ तो मैं राजनीति छोड़ दूंगा, राजनीति क्या मैं झारखंड ही छोड़ दूंगा। वैसे भाजपा को यह भी लगता था कि झारखंड से आदिवासी राष्ट्रपति चुने जाने के बाद जनता में पार्टी की स्वीकार्यता बढ़ेगी। इस बारे में भी सोरेन ने अपने इंटरव्यू में कहा कि भाजपा आदिवासी राष्ट्रपति को टोकन की तरह इस्तेमाल जरूर करती है लेकिन आदिवासियों से वैसा व्यवहार नहीं करती। जेल के दौरान उनकी पत्नी कल्पना सोरेन सक्रिय हुईं और पार्टी का लोकप्रिय चेहरा बनने लगीं। वे इस बार जबरदस्त जीत के साथ विधायक बनी हैं। जेल जाने से पहले मोर्चा ने जिन चम्पई सोरेन को सीएम बनाया था, बाद में वे भी भाजपा के हो गए। झारखंड में ऐसा पहली बार है कि कोई सरकार दूसरी बार चुनकर आई है।
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