यह पेंडेमिक नहीं इन्फोडेमिक है

 यह पेंडेमिक नहीं इन्फोडेमिक है। यह  ज़्यादा नुकसान कर रहा है। महामारी को सूचनामारी क्यों बनाया जा रहा है ?

हम संकट से विध्वंस की ओर कूच कर गए हैं। ऐसा कोविड -19 की वजह से हो रहा है। क्या सचमुच इस विध्वंस का सारा दोष इस वायरस पर ही मढ़ दिया जाना चाहिए ? अगर जो यह कोढ़ है तो सूचना तंत्र की बाढ़ और अव्यवस्था ने इसमें खाज का काम नहीं  किया है? खौफ ऐसा है कि कोविड जान ले इससे पहले हम फंदों पर झूल रहे हैं ,पटरियों पर लेट रहे हैं ,छत से कूद रहे हैं। अपनों को ख़त्म भी कर रहे हैं। बीते रविवार को राजस्थान के कोटा जिले में दादा-दादी इसलिए ट्रैन के नीचे आ गए क्योंकि उन्हें डर था कि उनका पोता भी कोरोना संक्रमित न हो जाए। उनकी रिपोर्ट कोरोना पॉजेटिव आई थी। दोनों ने अपने पोते को बचाने के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी। इस वायरस का व्यवहार देखा जाए तो तथ्य यही है कि यह बच्चों को कम प्रभावित करता है और जो बच्चे संक्रमित हो भी जाएं तो यह उनके लिए जानलेवा नहीं है। कोरोना के  डर और व्यवस्था से  उपजी निराशा ने लोगों को कोरोना से पहले ही अपनी जान लेने पर मजबूर कर दिया है। सोचकर ही रूह कांपती है कि महामारी से पहले ही हम हार रहे हैं। सोमवार को रेवाड़ी में एक रिटायर्ड एसडीओ ने छत से कूदकर जान दे दी। कोरोना पोजेटिव आने के बाद उन्हें रेवाड़ी के ही अस्पताल के आइसोलेशन वार्ड  में रखा गया था।  वायरस से भय और निराशा का यह वायरल विडिओ जाने कितने लोगों में दहशत भर रहा है।इससे पहले एक युवक ने पहले पत्नी, बच्चे और फिर खुद  का जीवन समाप्त कर लिया क्योंकि पत्नी ब्याह में मायके जाना चाहती थी।  यह खौफ कोरोना से ज्यादा तेजी से फ़ैल रहा है इसीलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे इन्फोडेमिक भी कहा है। 

इन्फोडेमिक पर चर्चा से पहले यहां यह बताना ज़रूरी है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री लगातार जनता से संवाद तो कर रहे हैं लेकिन इस बार यानी दूसरी लहर में जनता ने उनकी निराशा को भी पढ़ा  है। वे कहते हैं कि इस बार 80 फीसदी को ऑक्सीजन की ज़रूरत पड़ रही है पिछली बार 20 को पड़ रही थी ,आज लगभग डेढ़ सौ मौतें प्रतिदिन हो रही हैं, पिछली बार यह संख्या  पूरे साल शून्य से बीस ही थी। वे यह भी कहते हैं कि हालात हृदय विदारक हैं ,जीवन रक्षक दवाइयां और ऑक्सीजन की कमी पड़ रही है जिसका कि प्रबंधन केंद्र सरकार द्वारा  किया जाता है। हमें गृहमंत्री से ऑक्सीजन की मांग फोन पर करनी पड़ती है। उधर निजी अस्पताल साफ़ कह रहे हैं कि ऑक्सीजन लाइये हम भर्ती कर लेंगे। ऑक्सीजन व्यवस्था इस कदर हांफ रही है कि अलवर के एक अस्पताल ने गेट पर ही बोर्ड लटका दिया कि प्रशासन की तरफ से ऑक्सीजन सप्लाई में निरंतर हो रही कमी के कारण हमारा अस्पताल कोविड -19 के मरीजों का इलाज नहीं कर पा रहा  है। 

अव्यवस्था,अभाव और भय ने नागरिकों को जीते जी मार दिया है। कोई कह रहा है ऑक्सीजन नापते रहो ,कोई स्टीम लेने की बात करता है तो कोई पेट  के बल लेट कर ऑक्सीजन बढ़ाने की ,कोई काढ़ा पीने की. कोई कहता है केवल पैरासिटोमोल और विटामिन से ही दुरुस्त  हो जाओगे। कोई कहता है रेमडेसवीर प्रभावी है, कोई कहता है यह WHO से स्वीकृत ही नहीं है।कोई कहता है वैक्सीन जरूरी है कोई कहता है रक्त का  थक्का  जमा देती है।  महामारी को सूचनामारी क्यों बनाना? महामारी के बीच सूचना की ऐसी महामारी मानव सेहत  के साथ न केवल अभूतपूर्व है बल्कि खिलवाड़ है,जानलेवा है। शायद यही कारण है कि  WHO ने इसे  इन्फोडेमिक भी कहा है। यह शब्द इंफोर्मेशन और पंडेमिक से मिलकर बना है।  इन्फोडेमिक यानी ऐसी भ्रामक सूचनाओं का प्रचार प्रसार जो उसके सुलझने से पहले ही हालात को और गंभीर और भयावह बना देता  है। इससे इतना ज्यादा कंफ्यूजन और खुद को खतरे में डालने वाला व्यवहार बढ़ रहा जो सेहत पर खराब असर  डाल रहा  है। अफवाह और डर जंगल की आग से भी तेज फ़ैल रहे हैं। कोरोना के सन्दर्भ में सोशल मीडिया और इंटरनेट के जरिये यही हो रहा है । तो फिर क्या हो ?

विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO ने इससे लड़ने के लिए इन्फोडेमिक मैनेजमेंट की स्थापना की है  जिसका मकसद इस आपात स्थिति में सही जानकारी देना है। पहला लोगों की तकलीफ और उनके सवालों को सुनना।दूसरा  खतरनाक व्यवहार  का अध्ययन  और विशषज्ञों की बात  का प्रचार।तीसरा गलत सूचना से मुक्ति दिलाना और चौथा कम्युनिटीज को सकारात्मक प्रभाव देने  के लिए तैयार करना। इन्फोडेमिक मैनेजमेंट कारगर होने में वक्त लग  सकता है तब तक  हमारा फर्ज यही हो कि बीमारी से भी और उससे  पहले भी कोई न मरे। अफसोस मौत  बीमारी से पहले आ रही है जबकि 85 फीसदी मरीज सामान्य इलाज से ठीक हो रहे हैं। इस दुष्प्रचार को समझिये ,कमज़ोर मत पड़िए।संकट से समाधान की ओर चलिए विध्वंस की ओर नहीं।  कफ़स को उदास मत होने दीजिये,मौसम का कारोबार पहले की तरह चलने दीजिये।  फैज अहमद फैज का शेर है  

कफ़स उदास है यारो सबा से कुछ तो कहो 

कहीं तो बहर-ए-ख़ुदा आज ज़िक्र-ए-यार चले। 

टिप्पणियाँ

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