संकल्प और गौरव के झंडाबरदारों में से एक को चुनेगा राजस्थान
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सचिन पायलट कोटा संभाग में जनता के बीच |
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जयपुर में मुख्यमंत्री राजे पुनर्जीवित द्रव्यवती नदी जनता को सौपतीं हुईं |
-सत्ताधारी भाजपा गौरव यात्रा निकाली तो कांग्रेस संकल्प रैली के साथ मैदान में
-वसुंधरा राजे सिंधिया के सामने हैं अशोक गेहलोत और सचिन पायलट
-अमित शाह एक पखवाड़े में पांच बार तो राहुल गाँधी तीन बारआ चुके हैं राजस्थान
-यहाँ एक बार कांग्रेस और एक बार भाजपा के जीतने का है चलन
-कांग्रेस को एंटी इंकम्बेंसी से है जबरदस्त उम्मीद भाजपा संगठन भरोसे
-भाजपा के विज्ञापनों से लदे है अख़बार के तो कांग्रेस मांग रही जनता से पैसा
-ग्रामीण इलाकों में राफेल या मंदिर कोई मुद्दा नहीं ,शहरों में हो रही इन पर बात
-रोडवेज कर्मचारियों की लंबी हड़ताल से सरकार के खिलाफ है गुस्सा
-आप, बहुजन, समाजवादी और कम्युनिस्ट मिलकर भी बड़ी ताकत नहीं
राजस्थान की 200 विधानसभा सीटों पर चुनाव के लिए तारीख की घोषणा हो चुकी है। यहां 7 दिसंबर को चुनाव हैं। तारीख़ के साथ जो ज़ाहिर हो रहा है वह है बड़े राजनीतिक दलों का जनता को ना समझ पाना । वे अब भी चुनाव लड़ने के पारम्परिक और जातीय गणित में उलझे हैं, जबकि जनता उनसे वयस्क होने की उम्मीद लगाए बैठी है। ये नेता चुनावी उत्सव के दौरान जात -पात का नाटक रचने में पूरी तरह जुट जाते हैं ,टिकट का चक्रव्यूह भी ऐसे ही रचा जाता है। मीडिया उन्हें छाप देता है या फिर दिखा देता है और कथित तौर पर माहौल तैयार हो जाता है। फिर भी सच यही है कि प्रत्याशी से ज़्यादा दलों को तरजीह है। दल में जाति-धर्म के नाम पर वैमनस्य फैलाने का समर्थक राजस्थान का वोटर नहीं है। वह शांतिप्रिय है ,तोड़-फोड़ और विभाजन नहीं चाहता। उसे अब भी सरकारों से बुनियादी सुविधाओं की ही आस है।
मेवात में मॉब लिंचिंग
भाजपा और वसुंधरा राजे ने यहाँ पहले भी राज किया है लेकिन इस बार के उनके कार्यकाल में नए दाग लगे हैं। हिस्ट्री शीटर आनंद पाल सिंह की पुलिस मुठभेड़ में मौत फिर कई दिनों तक उसके शव का अंतिम संस्कार ना हो पाना भाजपा से बड़े असंतोष का कारण रहा है। इस मुठभेड़ ने प्रदेश की फ़िज़ा को कई दिनों तक बिगाड़े रखा। सवाल उठाए गए कि शिक्षक बनने की चाहत रखने वाला युवा गैंगस्टर कैसे बना और व्यवस्था को उससे बरी नहीं किया जा सकता। फिर मेवात यानी अलवर के शांत इलाके में पहलू खान की मॉब लिंचिंग भी सवालों में है। प्रतापगढ़ में एक एक्टिविस्ट की मौत को भले ही दिल का दौरा बताकर सामान्य मौत बताने की कोशिश की गई लेकिन उस समय खेतों में शौच को जा रही उसके परिवार की महिलाओं की निगम कर्मचारियों द्वारा तस्वीरें लेना गलत था । यह भयावह तस्वीर थी कि स्वच्छता अभियान के दबाव में ऐसे घिनौने तरीके अपनाए गए हों और किसी की जान चली जाए । मॉर्निंग फॉलोअप के नाम पर यह ज़्यादती थी यह । अकबर खान की भी हत्या हुई। वह हरियाणा से अलवर आया था ,अपने डेरी व्यवसाय को बढ़ाने के लिए। अपने साथी के साथ दो गाय खरीदकर जा रहा था कि भीड़ में यह सूचना फ़ैल गई कि वो गाय चुराकर भाग रहे हैं। भीड़ ने घेरकर अकबर की हत्या कर दी। गौ तस्करी के ऐसे इलज़ाम में भीड़ का मारना पिछली वसुंधरा सरकार में कभी नहीं था।
पद्मावती फिल्म और लाचार सरकार
फिल्म पद्मावती को लेकर भी जो राजस्थान में हुआ उससे भी इस वीरों की धरती को नाम नहीं मिला । जयपुर में संजय लीला भंसाली को शूटिंग के दौरान थप्पड़ मारने से शुरू हुआ हुड़दंग बाद में राज्यव्यापी हिंसा में तब्दील हो गया। करणी सेना ने पद्मावती फिल्म को राजपूती आन के खिलाफ़ मानते हुए खूब माहौल बनाया जो फिल्म के रिलीज़ होते ही फ़ुस्स हो गया क्योंकि फिल्म महारानी पद्मावत और चित्तौड़ के राजा रतन सेन की स्तुति से ओत-प्रोत थी। फिल्म राजस्थान में रिलीज़ तो नहीं करने दी गई लेकिन प्रदेश का माहौल बिगाड़ा जा चुका था। प्रदेश की लोक गायिका और अभिनेत्री इला अरुण ने एक इंटरव्यू में मुझसे कहा था कि यह राजस्थान का संस्कार नहीं है। यह थप्पड़ भंसाली के नहीं मेरे चेहरे पर पड़ा है। हम पधारो म्हारे देस की संस्कृति के वाहक हैं। लैला मैं लैला गीत को फिर लोकप्रिय बनाने वाली गायिका पावनी पांडे भी जयपुर की हैं। उनका कहना है कि मैं बहुत अच्छे से जानती हूँ कि ना केवल जयपुर बल्कि पूरे प्रदेश में बहुत प्यार है और जब ऐसी घटनाएं होती है तो लगता है कि हर कलाकार और उसकी कला को थप्पड़ मारा गया है और यह आसानी से भुलाया जाने वाला वाकया नहीं है।
उपचुनाव में कांग्रेस का पलड़ा रहा भारी
ऐसे मामले वसुंधरा सरकार के पिछले कार्यकाल (2003 -2008 ) में नहीं थे लेकिन कांग्रेस को भी बरी नहीं किया जा सकता। बतौर विपक्ष वे बेहद कमज़ोर साबित हुए। विधायकों की कम संख्या (200 में से केवल 21 ) और कमज़ोर आवाज़ ने कमज़ोर वर्ग को अनसुना ही किया। पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के महासचिव अशोक गेहलोत, युवा प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट के साथ संकल्प रैली ज़रूर निकाल रहे हैं लेकिन जनता में पार्टी ने कोई साफ संदेश नहीं दिया है कि मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा। दोनों ने एक मोटरसाइकिल पर बैठकर रैली निकाली तो ज़रूर एक सन्देश भी गया कि इनके बीच कोई मनमुटाव नहीं है। कांग्रेस की रैलियों में भीड़ तो जुटती है लेकिन पार्टी गुटबाज़ी की चपेट में है । हाल ही में सचिन पायलट ने कोटा के सांगोद में एक रैली की जहाँ उन्होंने कहा कि सबसे ज़्यादा किसानों की आत्महत्याएं कोटा संभाग में हुईं हैं। आखिर जो किसान की समस्याओं को समझेगा वही उनकी मदद भी करेगा। 80 हज़ार के क़र्ज़ के लिए किसान ख़ुदकुशी करने पर मजबूर हैं। सचिन कहते हैं पिछले उपचुनावों में 22 विधानसभा क्षेत्रों में वोट पड़े हैं जिनमें से 20 में कांग्रेस जीती है। वे आगे कहते हैं वसुंधरा जी की सरकार ने अजमेर उपचुनाव में 17 दिन अजमेर में डेरा डाला था लेकिन वे चुनाव हार गई । तब उन्होंने मुझसे कहा था कि मुझे अभी बहुत कुछ सीखना बाकी है ,सही है बहुत कुछ सीखना बाकी है लेकिन राजनीति की कबड्डी में ऐसी पटखनी दूंगा कि बरसों तक याद रखी जाएगी। वे रैली में इलज़ाम लगाते हैं कि महारानी और अमित शाह के बीच सब-कुछ ठीक नहीं चल रहा है। अमित शाह जाएं मेवाड़ में तो वसुंधरा हाड़ौती में। अमित शाह जाएं धौलपुर में तो वसुंधरा जी जैसलमेर में। सचिन पायलट भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष चुनने में लगे 45 दिनों पर भी तंज़ करते हैं कि कोई भी यह नौकरी क्यों करना चाहेगा जब दो महीने बाद के चुनाव हारने ही हैं तो। गौरतलब है कि नए प्रदेशाध्यक्ष मदन लाल सैनी के चुने जाने से डेढ़ माह पहले ही निवर्तमान अध्यक्ष अशोक परनामी का इस्तीफा ले लिया गया था। पायलट के लिए भाजपा अध्यक्ष मदन लाल सैनी का बयान आ चुका है। वे कहते हैं -"सचिन पायलट पटखनी तो अपनी पार्टी में ही दे रहे हैं ,उनकी खुद की पार्ट में ही गुटबाज़ी चल रही है और जिस बड़े नेता को उन्होंने पटखनी दी है उनका नाम सब जानते हैं। "वैसे कोटा युवा छात्रों की आत्महत्या का भी केंद्र बना हुआ है। कोचिंग सिटी कोटा में पढ़ाई के दबाव के चलते इस साल अब तक तेरह छात्र अपनी जान दे चुके हैं।
बातें कर लो पानी मत मांगो
जब नदी ज़िंदा हुई जयपुर में
जयपुर शहर ने मुख्यमंत्री वसुंधरा के चेहरे को उस समय चमकीली आभा दे दी जब बीते सप्ताह द्रव्यवती नदी जो एक नाले का अकार ले चुकी थी पुनर्जीवित की गई।अमानी शाह नामक नाले को नदी में तब्दील होते देखना शहरवासियों के लिए भी नया अनुभव है। अभी 16 किलोमीटर तक का काम पूरा हुआ है। शेष 45 किमी का काम दिसंबर तक पूरा होने का दावा किया गया है। यह अहमदाबाद की कांकरिया लेक की तर्ज़ पर बनी योजना है, जिसमें बोटिंग के साथ-साथ, टॉय ट्रैन , चिड़ियाघर , मनोरंजन और खान -पान की तमाम सुविधाएं मौजूद होंगी। गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को कांकरिया झील ने खूब सराहना दिलवाई थी और अब यही खूबसूरती जयपुर को भी मिलने जा रही है। गौरतलब है कि पिछले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जयपुर के एक हिस्से को मेट्रो की सौगात दी गई थी जो अभी भी पूरी नहीं हुई है। उम्मीद की जानी चाहिए की द्रव्यवती नदी परियोजना (कुल लागत 1676 करोड़ ) समय पर पूरी होगी। जयपुरवासी रणबीर सिंह कहते हैं अमानी शाह सूफी संत थे जिनकी मज़ार वहां थी । जयपुर रियासत काल में अमानी शाह नाले के नाम से जानी जाने वाली इस जगह मिलिट्री मुख्यालय का दफ़्तर था और यह एक बरसाती नदी थी जो बाद में सूख गई। यह जगह बहुत खूबसूरत हुआ करती थी। आगे चुनौती यह होगी की इसमें साफ पानी कहाँ से आएगा।
कांग्रेस मांग रही धन
एक रोचक बात इन चुनावों में देखी जा रही है कि एक दिन भाजपा मंत्री अरुण चतुर्वेदी घोषणा करते हैं कि जयपुर कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ता भाजपा में शामिल हो गए हैं वहीं अगले दिन एक अन्य विधानसभा क्षेत्र सांगानेर में कांग्रेस दावा करती है कि भाजपा के 700 कायकर्ता कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। फिर दोनों ही पार्टियां एक दूसरे पर ऐसा नहीं होने का आरोप लगाते हुए पार्टी के कार्यकर्ताओं के पार्टी में ही होने की बात दोहराती है। उधर कांग्रेस के प्रवक्ता और जयपुर जिला अध्यक्ष प्रताप सिंह खाचरियावास ने कहा है कि पार्टी ने 100 ,500 और 1000 के कूपन छपवाएं हैं और गाँधी जयंती के दिन दो लाख पैंतीस हज़ार रुपए जमा हुए हैं। पार्टी घर- घर जाकर लोगों से सहायता और समर्थन मांगेगी।
मायावती से गठबंधन का ना होना
हालाँकि साल 2008 में कांग्रेस बहुजन समाज पार्टी के सहयोग से ही सरकार बना पाई थी लेकिन इस बार चुनाव पूर्व गठबंधन ना होने से पार्टी में ख़ुशी की लहर दौड़ गई है। 2008 में पार्टी के छह विधायक चुनकर आए थे जो 2013 में घटकर तीन हो गए। कांग्रेस को अपनी सीटें बचाने की ख़ुशी है जबकि मायावती का मानना है कि हमारा वोटबैंक पूरी 200 सीटों पर कांग्रेस -भाजपा का गणित बिगाड़ सकता है। 2008 के चुनावों में बसपा को साढ़े सात फीसदी वोट हासिल हुए थे। 2013 में वोट शेयर भी घटकर साढ़े तीन फीसदी रह गया। पूर्वी राजस्थान में खासकर खेतड़ी धौलपुर नवलगढ़ ,सार्दुलपुर ,गंगापुर, उदयपुरवाटी, सपोटरा, दौसा ,बांदीकुई, करोली, बानसूर में बसपा अच्छा प्रदर्शन करती आई है। वैसे बसपा अगर किसी के वोट काटती है तो वह कांग्रेस है। चुनावी अध्ययन के मुताबिक 2013 में यदि कांग्रेस बसपा मिलकर चुनाव लड़तीं तो भाजपा को नौ सीटों का नुक्सान हो सकता था।
एक टॉर्च भी मैदान में
दावे-प्रतिदावों के बीच दोनों पार्टियां तो कमर कस चुकी है लेकिन एक और पार्टी मैदान में उतरी है जिसका चुनाव चिन्ह टॉर्च है। अभिनव राजस्थान पार्टी कहती है हम भारत के चुनावी इतिहास में पहली पार्टी हैं जो स्टाम्प पर लिख कर देंगे कि कौनसा काम कितन समय में कितने खर्च पर किया जाएगा। पार्टी दावा करती है कि जो हम ऐसा नहीं कर पाए तो हमें जिम्मेदारी से बेदखल कर दिया जाए। इनके घोषणा-पत्र में किसान, व्यापारी, महिलाओं, पुलिस कर्मचारी के लिए बाकायदा योजनाओं का ब्लू -प्रिंट भी है। राजस्थान में मूल मुकाबले के बीच ऐसे कई छोटे-मोटे रण लड़े जाएंगे। रोडवेज के कर्मचारियों की हड़ताल बीस दिन तक खिंच गई है। शिक्षक भी धरने पर हैं। हाउसिंग बोर्ड के कर्मचारी भी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं। बारह हज़ार से अधिक जेईएन और अस्थाई कम्प्यूटर ऑपरेटरों ने भी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। कर्मचारी सड़क पर हैं और जनता परेशान है। फिर भी हम तो इलेक्शन मोड में आ चुके है साहब। कोई हारे कोई जीतेगा कहा यही जाता है आन-बान और शान तो मतदाता की ही रहेगी वह इस समय राजा है और राजा प्रजा।( इंदौर के अख़बार प्रजातंत्र में प्रकाशित )
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