पधारो म्हारे देश से जाने क्या दिख जाए


इन दिनों एक जुमला हरेक की जुबां पर है। कुछ अलग हो, एकदम डिफरेंट, जरा हटके। सभी का जोर नएपन पर है, नया हो नवोन्मेष के साथ। कैसा नयापन? पधारो म्हारे देश से जाने क्या दिख जाए जैसा? बरसों से पावणों को हमारे राजस्थान में बुलाने के लिए इसी का उपयोग होता था। पंक्ति क्या दरअसल यह तो राजस्थान के समृद्ध संस्कारों को समाहित करता समूचा खंड काव्य है जिसके साथ मांड गायिकी की पूरी परंपरा चली आती थी। जब पहली बार सुना तो लगा था, इससे बेहतर कुछ नहींं हो सकता । खैर, अब नया जमाना है, नई सोच है मेहमानों को बुलाने के लिए नई पंक्ति आई है जाने कब क्या दिख जाए।
यूं भी हम सब चौंकने के मूड में रहते हैं, किसी अचानक, अनायास की प्रतीक्षा में ।    ...और जब सैर-सपाटे पर हों तो और भी ज्यादा। कभी रेगिस्तान में दूर तक रेत  के धोरे हों, कभी यकायक ओले गिर जाएं, कभी पतझड़ की तरह पत्ते झडऩे लगे और कभी बूंदे ही बरसने लगे। यही तो मौसम का मिजाज है इन दिनों हमारे यहां। इस  कैंपेन के जनक  एड गुरु पीयूष पाण्डे  हैं। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के दौरान उन्होंने बताया कि मेहमान आ नहीं रहे थे  इसलिए बदलना पड़ा।  खैर यह बहस का मुद्दा हो  सकता है।
      बहरहाल, हम सब क्रिएटिविटी से जुडऩा चाहते हैं। कुछ नया रचने की ख्वाहिश में सृजनशील सदा ही प्रयासशील रहते हैं। सवाल उठता है कि बच्चों में कैसे क्रिएटिविटी का बीज रोपा जाए? वे कैसे इस विधा को साधें क्योंकि आने वाले वक्त में यही बाजार, नौकरी में भी टिके रहने के लिए जरूरी होगा। सृजन केवल लेखक, कवि, चित्रकार का हक नहीं है। 


 उत्तर पुस्तिकाओं में एक जैसे उत्तर लिखकर अंक तो हासिल किए जा सकते हैं, लेकिन भविष्य में कुछ बेहतर रचा जा सकता है इसकी संभावना बहुत ज्यादा नहीं रहती है। भविष्य रचनाशीलता का है। लेखिका एलिजाबेथ गिल्बर्ट ने इस सवाल का जवाब देने की कोशिश की है। ईट, प्रे एंड लव और बिग मैजिक की लेखिका गिल्बर्ट के अपने कोई बच्चे नहीं हैं, लेकिन वे कभी बच्ची थीं और यह जवाब वहीं से आया है। वे लिखती हैं हम भी किसी सामान्य अमेरिकी परिवार की तरह अस्सी के दशक में अपना शहरी जीवन जी रहे थे। सब परिवारों के अपने घर थे, गाड़ियां  थीं, टीवी था। सब काम पर जाते थे और लौट आते थे। मेरे पिता नेवी छोड़ चुके थे और एक बड़ी कंपनी में इंजीनियर थे। मां पार्ट टाइम नर्स थीं और शेष समय में वे बेहतरीन गृहिणी की तरह हम दो भाई-बहन को संभालती थीं। एक दिन उन दोनों को लगा कि यह तो वो जिंदगी नहीं जिसे वे जीना चाहते थे। वे हम दोनों बच्चों को लेकर शहर से बाहर अपने पुराने फार्म हाउस में आ गए। वह एक टूटा-फू टा घर था जहां बिस्तर से उठते ही पानी के नाम पर बर्फीले पानी का गिलास मिलता। बर्फ के क्रिस्टल मेरी खिड़की पर जमे होते। घर का केवल एक हिस्सा गर्म किया जाता वो भी उस लकड़ी से जिसे मेरे पिता काटकर लाते। हमने वहां बकरियां, बत्तख और मुर्गियां पाली थीं। मां घर का बना मक्खन, चीज हमें खिलाती थीं। सब्जियां भी फार्म हाउस में उगार्ई थींं।
   बेशक हम बच्चों को यह जिंदगी काफी मुश्किल लगती थी क्योंकि कभी-कभी तो बाथरूम में पानी भी नहीं होता था। हम बारिश के इकट्ठे  पानी से काम चलाते थे। पिता ने कार चलाना, शेविंग करना छोड़ दिया था। वे साइकिल से आते-जाते थे। वे दिनभर अपने काम में लगे रहते। उन्होंने अपने लिए जैसी जिंदगी सोची थी वैसा ही किया। वे खुश थे। उन्होंने उपभोक्ता बनने की बजाय नया रचने की कोशिश की। तब वाकई बुरा लगता था, लेकिन आज सोचती हूं तो अच्छा लगता है। आज मैं उस चुनौतीपूर्ण बचपन के लिए उनकी आभारी हूं। मैं खुद को भाग्यशाली मानती हूं कि मेरे माता-पिता ने कुछ अलग करने की कोशिश की। बच्चों को कुछ भी कहने से वो नहीं सीखते, वे सीखते हैं यदि अपने सामने कुछ होता हुआ देखें। मेरे पिता को नौ से पांच की वह ऊब भरी जिंदगी पसंद नहीं थी इसलिए उन्होंने खुद को बदला।
    जाहिर है क्रिएटिविटी की कोई कक्षा नहीं होती। इसे किसी पाठ की तरह भी नहीं पढ़ाया जा सकता। जीवन जीने की शैली इस बीज को रोपती है। क्रिएटिविटी का यह बीज मशीनी मानव तैयार करके नहीं पल्लवित होगा। सृजन कारखानों में नहीं होता। उस जमीन से होता है जहां उसे खुलकर खिलने की आजादी हो। बंधे-बंधाए ढर्रे को तोडऩा ही सृजन है। हम लीक पर चलकर नया नहीं करे सकते।
लीक लीक गाड़ी चले लीकहिं चले कपूत
 लीक छोड़ तीनों चलें शायर सिंह सपूत

टिप्पणियाँ

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " दूसरों को मूर्ख समझना सबसे बड़ी मूर्खता " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10 - 03 - 2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2277 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  4. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  5. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  6. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  7. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वंदे मातरम्-यानी मां, तुझे सलाम

सौ रुपये में nude pose

एप्पल का वह हिस्सा जो कटा हुआ है