आंदोलन की आड़ में अस्मत


मुरथल के हालात बताते हैं कि आधी दुनिया के लिए शेष आधी दुनिया अब भी उपभोग की वस्तु है। जिसे जब भी मौका मिलेगा वह उसे दबोच लेगा। यह भयावह है कि आंदोलन का एक हथियार यह भी था। अव्यवस्था और अविश्वास का आलम देखिए कि पीडि़त को ना तो पुलिस पर भरोसा है और ना व्यवस्था पर। कोई सामने नहीं आ रहा। एक पीडि़ता सामने आई है जिन्होंने अपने देवर को भी दुष्कर्म के गुनाह में शामिल किया है। पुलिस को लगता है कि ये पारिवारिक मामला हो सकता है। किसके खिलाफ लिखाएं रिपोर्ट? कौन सुनवाई करेगा, कहां-कहां अपने जख्मों को दिखाएंगी वे? आठ मार्च महिला दिवस  से  जुड़े सप्ताह में एेसी कहानियां कौन लिखना चाहता है लेकिन समय तो जैसे वहीं रुका हुआ है। वह सभ्य होना ही नहीं चाहता। बर्बरता उसकी रग-रग में समाई है।
 
टंकी में जा छिपी लड़कियां
ये वाकई दहलाने वाला है कि दिल्ली से 50 किमी दूर सोनीपत जिले में मुरथल एक सैर-सपाटे की जगह है जहां अकसर परिवार और जोड़े घूमने के लिए जाया करते हैं। बाईस और २३ फरवरी के दरम्यान जाट आंदोलन के दौरान तीन ट्रक चालकों ने कहा है कि उन्होंने देखा है कि आंदोलनकारी महिलाओं को गाडि़यों से खींचकर निकाल रहे थे। कुछ ने भागकर सुखदेव ढाबे में छिपकर खुद को बचाया तो कुछ को ये राष्ट्रीय राजमार्ग (एन एच-वन) के आसपास के खेतों में ले गए। कुछ लड़कियां घंटों तक टंकियों में छिपी रहीं। आरोप है कि उनके साथ दुष्क र्म हुआ। पुलिस ने इन खेतों से कपड़ों के टुकडे़ भी जमा किए हैं। इंडियन एक्सप्रेस में छपे एक ट्रक मालिक-चालक निरंजन सिंह के बयान के मुताबिक इसी हाईवे पर भीड़ ने मेरे ट्रक को भी जला दिया। २२ फरवरी को सुबह साढे़ ग्यारह बजे के आसपास कुछ आंदोलनकारी मोटर साइकिल पर सवार होकर आए। उसी समय कुछ स्त्रियां उस क्षेत्र में स्थित एक स्कूल में छिपने के लिए जा रही थीं तब इन्होंने उनसे कहा कि खतरा है आप चक्कर लगाकर जाएं। जब उन्होंने रास्ता बदला तो इन मोटर बाइक सवारों ने उन्हें परेशान करना शुरू कर दिया। उनके बैग, जेवर छीने। उन्हें थप्पड़ भी मारे। मुझे नहीं लगता कि उन्होंने और नुकसान नहीं पहुंचाया होगा। तीन लड़कियों ने घंटों टंकी में छिपकर खुद को बचाया।
वे नहीं दौड़ पाईं
निरंजन सिंह पठानकोट के थे। जालंधर के सतवीर सिंह उस दिन चंढीगढ़ से दिल्ली आ रहे थे। उनका कहना था कि महिलाएं अपने वाहनों से निकलकर दौड़ रही थीं। जो नहीं दौड़ पाईं वे दबोच ली गईं। नहीं जानता था कि वे कौन थीं और उनके साथ क्या हुआ। नंगे पैर खुद को बचाते हुए दौड़ती महिलाओं को उस दिन कई लोगों ने देखा। मोहम्मद शाहीन जो पानीपत से दिल्ली लौट रहे थे उन्होंने भी कई महिलाओं को सुखदेव ढाबे में शरण लेते हुए देखा। भीड़ में से अधिकांश नशे में थे। उनकी कार को भी आग लगा दी गई। वे मानते हैं कि जो हालात थे उससे किसी भी अनहोनी से इनकार नहीं किया जा सकता। काश स्त्रियों से कहा जाता कि आप सुरक्षित हैं, हमारा कोई बंदा आपको तकलीफ नहीं देगा।
हक के नाम पर
जो आंदोलन की यही हकीकत है तो यह भयावह है। यह दुनिया अब भी स्त्रियों के जीने लायक नहीं है। भेडि़ए उनकी ताक में हमेशा हैं। एक ट्रक चालक का तो यह भी कहना है कि एेसा भयावह मंजर तो १९८4 में सिख दंगों के दौरान भी नहीं था। अराजक भीड़ इस कदर बेकाबू थी, जैसे उन्हें एेसा करने की छूट हो। दुष्कर्म के सबूत हैं, हालात को बयां करते बयान भी हैं लेकिन किसी के पास हिम्मत नहीं है कि वे आकर कहें कि हां हमारे साथ यह हादसा हुआ है। पुलिस न्यायालय इंतजार कर रहे हैं। हेल्प लाइन  18001802057 शुरू कर दी गई है लेकिन कोई नहीं बता रहा है। कोई क्या बताएगा? अनजानी जगह पर अनजाने लोगों ने उनके साथ बदसुलूकी की? कैसे साबित करेंगी वे? कोई यकीन करेगा? कौन ताजिंदगी उनके वकीलों के सवालों के जवाब देता फिरेगा? बेहतर है चुप्पी साधो। न्याय की उम्मीद में चुप्पी साधने में ही भलाई समझ रही हैं वे अपनी।
एक मामला आया सामने
इस मामले में एक महिला जो उस दिन बस से दिल्ली जा रही थी, ने पुलिस को शिकायत दर्ज कराई है। बस के खराब होने के बाद वे एक वैन में सवार हुई जब यह घटना हुई। उनकी चौदह साल की बेटी भी साथ थी जिसके कपड़े फाड़ दिए गए लेकिन अपराधियों ने उसे बख्श दिया। और भी महिलाएं हैं जिनके साथ एेसा हुआ। महिला ने कहा कि इसमें उसका देवर भी शरीक है इसलिए पुलिस उसे पारिवारिक विवाद की तरह भी देख रही है। यह चिंताजनक है कि बहन-बेटियों के लिए सुरक्षित समाज की रचना हम नहीं कर पाएं हैं। एेसी अराजकता कि आप गाडि़यों से निकाल-निकालकर उन्हें नुकसान पहुंचाएं। चित्तौड़ की महारानी पद्ििमनी के साथ स्त्रियों के जौहर, बंटवारे के समय दोनों ओर पैदा हुए उन्माद से किस तरह अलग किया जा सकता है इस वहशीपन को। जो भी इससे रूबरू हुआ होगा यह भयावह मंजर उसे जिंदगी के प्रति बेहद निराशा से भर देगा। यही तो हो रहा सदियों से। पढ़-लिखकर क्या बदला है हमने कि अभी कुछ पढ़ा-लिखा ही नहीं।
बनाई है तीन सदस्यीय जांच समिति
जाहिर है पुलिस चाहती है कि घटनाएं रिपोर्ट हों। पीडि़त अपना पक्ष रखे। इसके लिए डीआईजी राजश्री सिंह के नेतृत्व में डीएसपी भारती डबास और सुरिंदर कौर के साथ तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की गई है। तीनों महिलाएं हैं ताकि पीडि़ता नि:संकोच अपनी बात कह सकें लेकिन कोई हिम्मत नहीं कर सका है। बेशक कोशिश अपराध की तह में जाने की है लेकिन पहली ही पीडि़ता की शिकायत पर यह कहना कि ये पारिवारिक विवाद का मामला लगता है पुलिस की संवेदनशीलता को कम करता है। महिला उस दिन उस क्षेत्र में थीं, उनसे कई तरह के सबूत जुटाए जा सकते हैं।

टिप्पणियाँ

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 03 - 03 - 2016 को चर्चा मंच पर <a href="http://charchamanch.blogspot.com/2016/03/2270.html"> तनाव भरा महीना { चर्चा - 2270 } </a> में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  2. bahut shukriya link shamil karne ke liye...wakai ek tanav bhara mahina deshdroh jat andolan ke beech budjet se jhoojhta hua mahina .

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