मेनका जी कैसे बता दें बच्चे का जेंडर


मेनका जी कैसे बता दें बच्चे का जेंडर ? आपको डॉक्टर्स के काम के बोझ की चिंता है उस स्त्री की नहीं जिसका दर्जा आज भी भारतीय समाज में दोयम ही है

 अब तक हम यही मानते आ रहे हैं कि गर्भ में पल रहे शिशु का लिंग जानना अपराध है। जोड़े जब अल्ट्रासाउंड (सोनोग्राफी) के लिए जाते भी तो एेसी कोई कोशिश नहीं करते। जिन्हें जानना होता था कि आने वाली संतान लड़की है और वे उसे गर्भ में ही समाप्त कर देना चाहते हैं, वे एेसी सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा भी नहीं बनते। ज्यादा पैसे लेकर जांच करने और उसे गर्भ में ही गिरा देने के लिए डॉक्टर्स, नर्सेस का स्टिंग ऑपरेशन हमारे शहर जयपुर में ही हुआ है। अब जयपुर में ही सोमवार को केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने कहा  कि माता-पिता को  बताया जाए कि उनके गर्भ में पल रही संतान का लिंग क्या है और जो यह प्रक्रिया प्रसव तक नहीं पहुंचती है तो उन्हें ही जिम्मेदार ठहराया जाए। मंत्री कहती हैं कि इससे घरों में होने वाले असुरक्षित प्रसवों पर भी रोक लगेगी और अनावश्यक तौर पर डॉक्टर्स और नर्सेस भी सलाखों के पीछे नहीं होंगे जो पहले ही ज्यादा काम के बोझ से दबे हैं।
     पहली नजर में यह सोच बेहतर लगती है लेकिन दूसरे ही पल लगता है कि गर स्त्री और उसके परिवार को गर्भस्थ शिशु का लिंग पता चल जाए तो क्या वे सामान्य रह पाएंगे। बेटी की मां बनने वाली को बेटे की मां बनने वाली जिताना ही दुलार और खान-पान मिल पाएगा? अगर स्त्री दूसरी या तीसरी बार भी बेटी की मां बनने जा रही है वह खुद को उत्फुल्लित रखकर गर्भस्थ शिशु का ध्यान रख पाएगी? गर्भस्थ शिशु को बिगाडऩे के तरीके केवल 'मेडिकल टर्मिनेशन ऑव प्रेगनेंसी'(एमटीपी) के तहत ही नहीं होते, समाज ने सदियों से इन्हें ईजाद भी किया है और याद भी रखा है।
      यह भी याद किया जाना जरूरी है कि आखिर 1994 में मौजूद किन परिस्थितियों के चलते लिंग परीक्षण पर रोक लगाई गई थी। दुरुपयोग का जो खतरा तब था क्या आज 22 साल बाद टल गया है? क्या समाज  विकसित होकर नई करवट ले चुका है? क्या लड़के की आस में तीसरी बेटी भी कुबूल है? क्या हमने एक बेटी के बाद दूसरे चांस में बेटे की तमन्ना छोड़ दी है? क्या हम दूसरी-तीसरी बेटी के बाद भी दंपति को चहककर बधाई देते हैं ? इन सवालों के जवाब अगर हां है तब तो मंत्री बिलकुल सही कह रही हैं। हम लड़कियों के लिए उदार  समाज हैं हमें पैदा होने से पहले ही उनके आने का पता दे देना चाहिए। जो जवाब ना
4  बदलने की तैयारी चल रही है) वाला प्रतिबंध ही उचित है। बेटियों को गर्भ में तो शांति से पलने दो।
      ख्यात लोक नर्तकी गुलाबो को तो समाज ने पैदा होते ही दफन कर दिया  था। पैदा होने तक का ट्रेक रिकॉर्ड रख भी लिया तो पैदा होने के बाद गायब बच्चियों का क्या करोगे। स्त्री-पुरुष अनुपात तब सुधरेगा जब बेटियों के जिंदा रहने का माहौल होगा। शनिवार को धौलपुर में चौदह वर्षीय किशोरी उस समय दुष्कर्म के बाद कत्ल कर दी गई जब वह खेत में खाना लेकर जा रही थी। दुष्कर्म और हत्या की कई घटनाएं रोज पुलिस के रोजनामचे में चढ़ती हैं और कई तो नहीं भी चढ़ती। केवल गर्भ में ट्रैक रखकर कुछ नहींं होगा बल्कि इस तरह तो हम वहां भी उसका अहित ही करेंगे।

टिप्पणियाँ

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 04-02-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2242 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  2. हृदयस्पर्शी भावपूर्ण प्रस्तुति.बहुत शानदार भावसंयोजन .आपको बधाई.

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  3. बहुत बढ़िया चिंतनशील आलेख। कोई भी कानुन लागु करने से पहले उसके सभी पहलुओं पर गौर करना ही चाहिए।

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  4. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन निर्दोष साबित हों भगत सिंह और उनके साथी में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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  5. dilbagji, rohitasji madanji,jyotiji, saingarji aapka bahut shukriya.

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  6. जीवनपर्यन्त की सुरक्षा वांछित है।

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  7. मेनका जी अटपटी बातों के लिए विख्यात हैं. उन्हें महिला-बाल विकास मंत्री होते हुए तो लिंग निर्धारण को सही नहीं ठहराना चाहिए और इस तरह का हल नहीं सुझाना चाहिए जिससे भला होने के बदले और ज़्यादा नुकसान होने की संभावना है. जब लाखों अपराध बिना सज़ा मिले रह रहे हैं, आप एक नए अपराध को जन्म दे रहे हैं. गर्भ के शिशु का लिंग और उसकी प्रगति ख़ाक तय करेंगे? अगर यह तरीका है भी तो काफी सोच समझ कर इसे अपनाने की ज़रुरत होगी.

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