न मनाएं no bra day लेकिन ....


पिछले कई महीनों से खुशबू में प्रकाशन के लिए एक आलेख रखा है। आलेख अंदर पहने जाने वाले वस्त्र को लेकर है कि इसकी खरीदारी में क्या सावधानी बरती जाए कि यह स्वास्थ्य को कम नुकसान पहुंचाए। हर सप्ताह यह लेख हमारी टीम चुनती और फिर संकोच के साथ इसे रोक दिया जाता। सच है कि यह महिलाओं की ही पत्रिका है और यहां ब्रा के बारे में प्रकाशन से संकोच की क्या जरूरत  है। सच यह भी है कि हम इस बारे में सबके सामने ज्यादा बातचीत नहीं करतें और इन्हें सुखाया भी छिपाकर ही जाता है। कोशिश यह हो कि खराब सेहत को ना छिपाया जाए।
सवाल यह भी है कि  किसी भी मसले पर जागृति बढ़ाने वाले कदमों पर रोक क्यों? इस पर वैसे ही बातचीत होनी चाहिए जैसे हम सर्वाइकल कैंसर या किसी भी अन्य कैंसर के बारे में बात करते हैं। कल तेरह अक्टूबर को 'नो ब्रा डे' मनाया गया। इस अंग को अतिरिक्त कसकर रखने से कोशिकाओं की गतिशीलता प्रभावित होती है जिनसे गांठें बनती हैं और ये सख्त होकर कैंसर का कारण बनती हैं। कसी हुई ब्रा के कारण बीच के हिस्से में पसीने की वजह से संक्रमण भी हो सकता है और यह त्वचा के कैंसर में बदल सकता है।
एक टीवी चैनल ने भले ही इस दिन को लेकर एक फूहड़ कार्यक्रम पेश किया हो लेकिन फेसबुक पर इसे लेकर महिलाओं ने खूब संवेदनशील पोस्ट साझा की हैं। स्वर्ण कांता लिखती हैं, ये अभियान इसलिए नहीं है कि ब्रा मत पहनो बल्कि इसका उद्देश्य ब्रेस्ट कैंसर के प्रति जागरुकता पैदा करना है। यह देश का तेजी से बढऩे वाला घातक रोग बनता जा रहा है। पश्चिमी देशों में ये जागरुकता पहले ही आ गई। यहां तो शालीनता के नाम पर क्या ना झेलना पड़ जाए। शबनम खान लिखती हैं, ब्रा रेग्युलर पहनने से ब्लड सर्कुलेशन रुकता है जो सेहत के लिए अच्छा नहीं है। डे मनाने या ना मनाने पर अलग बहस हो सकती है लेकिन चुस्त कपड़े पहनने के कुछ नुकसान प्राणघातक भी हैं।
हॉलीवुड एक्ट्रेस जूलिया रॉबर्ट्स कहती हैं, घर मेरे लिए वह जगह है जो मुझे ब्रा से आजादी देता है। सच है यह आजादी का ही एहसास है जब आप इस सामान्य से अंग को किन्हीं और निगाहों से ना देखकर अपनी निगाहों से देखते हैं। फैशन के इस दौर में हर उम्र की लड़की-स्त्री अपने शरीर को किन्हीं और के मानदंडों पर खरा उतारने पर आमादा है। कद से लेकर कदम तक के मानक तय हैं। चमड़ी को उजला करने पर पहले ही बाजार उतारु है क्योंकि गोरा रंग ही सौंदर्य का पैमाना है। हम खुद क्यों नहीं हो सकते हमारे सौंदर्य का पैमाना। शो बिज की मॉडल्स, डांसर्स को फॉलो करने के लिए किशोरियां किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। किसी पार्टी या शादी समारोह के लिए नए स्टाइल्स और डिजाइन्स चुनने में कोई बुराई नहीं है लेकिन स्टाइल वैसा हो जैसा उस फिल्म में उस एक्टर का था, सचमुच हैरान करता है। बुटीक्स, ब्यूटी पार्लर्स, जिम लड़कियों को मॉडल्स जैसे कपड़े, खूबसूरती और बॉडी देने के लिए दिन-रात जुटे हुए हैं। यहां  से पैसा जनरेट होता है। कोई बेहतर स्वास्थ्य देने का दावा या पैरवी नहीं करता। ये नई जीवन शैली सिर्फ और सिर्फ खराब स्वास्थ्य की ओर प्रवृत्त कर रही है।
भारत में सर्वाधिक स्तन कैंसर के मामले हैं। सर्वाइकल कैंसर का भी बड़ा कारण माहवारी यानी मेंस्ट्रुएशन सायकल के दौरान संक्रमित कपड़ों और वर्जित वस्तुओं का इस्तेमाल है। यहां तक की कागज, मिट्टी का भी इस्तेमाल होता है। मणिपुर की उर्मिला चोम को बचपन में पॉलिएस्टर का कपड़ा इस्तेमाल करना पड़ता था जो इतना सख्त हो जाता था कि उनकी दोनों जांघें छिल जाती थीं। उर्मिला आज पूरे देश में एक बड़ा अभियान छेड़ चुकी हैं। वे कहती हैं, माहवारी का रक्त कोई अपवित्र चीज नहीं है। चुप्पी तोडि़ए। खेत, खलिहान, रसोई को यह अपवित्र कैसे कर सकता है जो नई संतान को जन्म देने का कारण है।
'नो ब्रा डे'  एक शुरुआत हो सकती है खुद को निर्धारित मानदंडों से मुक्त करने की। शरीर के अन्य अंगों की तरह ये भी सामान्य अंग है। सौंदर्य कलाकृतियों में ढले जिस्म जिंदा नहीं होते। उन्हें सांचे में ढला या किसी की निजी स्मृतियों का सुंदर ख्वाब बने रहने दीजिए। आप क्यों मोम की गुडिय़ा बनने की दिशा में चली जा रही हैं। आपकी तो धड़कनें हैं, उन्हें महसूस कीजिए।

टिप्पणियाँ

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 15 - 10 - 2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2130 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  2. एक अच्‍छे विषय पर आलेख प्रस्‍तुत किया है।

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  3. ऐसे विषयों पर चर्चा अवश्य होनी चाहिये,बाज़ारों में जिस प्रकार प्रदर्शन हेता है उसे रोकना चाहिये -स्वास्थ्य के लिये सावधान करना,और जागरूक बनाना नैतिक कर्तव्य है .

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