क्यों झांकना किसी की रसोई में


हमारे खान-पान की शैली को आप क्या कहेंगे? कहां से विकसित होती है? शायद आदत। खाना-पीना एक आदत ही तो है। जो बचपन से हमें खिलाया जाता है वही हमारी आदत बन जाता है। मेरी मित्र के घर प्याज-लहसुन बिलकुल नहीं खाया जाता तो उसने नहीं खाया। यहां तक कि उसकी गंध से ही उसकी हालत खराब हो जाती। वह वहां बैठ ही नहीं पाती जहां लहसुन का तड़का लगता। वक्त बीता शादी ऐसी जगह हो गई जहां लहसुन के बगैर कोई सब्जी नहीं पकती। पहले-पहल वह अपनी सब्जी अलग बनाती लेकिन इन दिनों मुस्कुरा कर कहती है -"अब तो आदत पड़ गई है, ऐसी आदत की अब टमाटर के झोल वाली सब्जी खाई ही नहीं जाती।" बहरहाल इसका उलट होना भी उतनी ही सहजता के साथ स्वीकारा जा सकता है।
                एक ओर मेरी मित्र की माताजी हैं चिकन इस कदर बनातीं कि उसके यहां खाने का इंतजार हर मित्र को होता। इस बार सभी दोस्त काफी अरसे बाद मिले और आंटी के हाथ का चिकन खाने की इच्छा जाहिर की। मित्र ने कहा भूल जाओ, चिकन-विकन।  खाना-पकाना तो दूर मां अब उस जगह खाना भी नहीं  खातीं जहाँ  ये सब पकता है। उनकी रसोई में अब कोई एक अंडा भी नहीं उबाल सकता। एक बांग्ला परिवार में हम सब खाने पर आमंत्रित थे। साथ में चलने वाले को कोई तकलीफ नहीं थी कि वो भी ब्राह्मण है। जब वहां सुना कि ये तो मछली को बड़े चाव से खाने वालों में सेे हैं तो उनका वहां पानी पीना भी मुश्किल हो गया। जयपुर के ही भारद्वाज अंकल जब कई साल पहले अमेरिका गए तो परेशान हो गए। सब कुछ ठीक था लेकिन खाने में मांस की बहुतायत ने उन्हें बहुत तकलीफ दी। क्या खाएं और क्या छोड़ें? भारत लौटे तो बच्चों के लिए घर में ही ऐसा इंतजाम किया कि वे नॉनवेज खाने की आदत विकसित कर लें। उन्हें डर था कि मेरी तरह मेरे बच्चे इस दुविधा से ना गुजरें। जब खानपान का मसला या उसकी इक्वेशन इस कदर समानुपाती है तो फिर उसे लेकर क्या बहस करना। ये बातचीत का मुद्दा तो हो सकता है लेकिन राष्ट्रव्यापी बहस या प्रतिबंध का मुद्दा कैसे बन सकता है? खाना आपकी आदत, आपके भौगोलिक क्षेत्र वहां की उपज से आपके संस्कारों में आता है। अब गोवा में मछली, नारियल बहुतायत में है तो वही आपकी भोजन की थाली में होगा ना कि वह जो हमारे राजस्थान में खाया जाता है।
थोड़ा सा विषय से भटकने की  की इजाजत। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने सन 1943 में बैंकॉक रेडियो से एक भाषण दिया था। वे अंग्रेजों के भारत पर कब्जे की रणनीति पर रोशनी डाल रहे थे। उन्होंने कहा -"अंग्रेजों ने कभी भी देश के सब लोगों से एक साथ संघर्ष नहीं किया। बंगाल में मीरजाफर को अपने पक्ष में कर सिराजुद्दौला को हरा दिया जो वहां का आखिरी राजा साबित हुआ।  बाद में इन्हीं अंग्रेजों ने दक्षिण में टीपू सुल्तान पर हमला किया। इस बार भी कोई आगे नहीं आया। ना मध्य भारत से मराठा ना उत्तर से सिख। अगर यहां भी हम एकजुट हो जाते तो अंग्रेजों को हराना संभव हो जाता। अंग्रेज एक-एक भाग पर हमला करते और जीतते जाते। भारतीय इतिहास के इस पीड़ादायक अध्याय से हमें यह सबक मिला है कि बिना एकता के हम अपने शत्रु के सामने न तो खड़े हो सकते हैं और न आजादी पा सकते हैं। आजादी मिल भी जाए अगर तो बिना एकजुटता से उसकी रखवाली नहीं कर सकते।"
नेताजी ने यह भाषण गांधी जी की 75 वीं सालगिरह पर दिया था। एक को हिंसा और दूसरे को अहिंसा का पुजारी बताने वालों को जानकर हैरानी होगी कि इसी भाषण में नेताजी ने बापू को इतना सराहा और कहा कि बापू ही वह शख्स थे जिन्होंने 1857 की क्रांति के विफल संघर्ष के बाद उपजे लंबे शून्य को अपने होने से भरा। गांधी ने देशवासी को आत्मसम्मान लौटाया। देश के लिए सम्मान का जज्बा जगाया।    
खानपान पर लौटते हैं। क्या इतने बड़े देश का सम्मान और एकता खानपान के मुद्दे पर भंग करने की साजिश होगी? क्या यह एक बेहद निजी मसला नहीं है। मुल्क की बड़ी चुनौतियों को छोड़ अब हम इस पर उलझेंगे कि तेरी रसोई में क्या पक रहा है ??


हम ये क्या कर रहे हैं महज़ इस अफवाह पर  कि इनकी रसोई में ये पका था हम जान ले रहे हैं।

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