जी राम जी के भरोसे छोड़े सब राज काज
कभी कभी लगता है कि हमारी सरकार, सरकार ना होकर कोई बाबा या बहुरूपिया हो जो समय -समय पर रूप बदल-बदल कर जनता को प्रभावित करने के लिए आ जाती है। फिर चाहे इस कोशिश में उसे पुराने और प्रभावी जंतरों को ही क्यों न बदलना पड़े। इस पहल में कभी वह योजनाओं का नाम बदलकर राम-राम जपने लगती है तो कभी सीधे भारतवासियों को ऐसा ध्वजारोहण दिखाती है कि नागरिक अपनी सुध-बुध भूल भवसागर में गोते लगाने लगता है। उसे लगता है कि क्या सोच है,क्या मास्टर स्ट्रोक है,मुझे तो कोई समस्या ही नहीं है। इस बीच नए नाम के साथ पुरानी योजनाओं के बिल पास हो जाते हैं, बिना इस फर्क को बताए कि जो पहले था वह काम पाने का सुनिश्चित अधिकार था और जो अब है वह बिना फंड के है और सीमित है। जिसके पास काम नहीं, केंद्र उसकी ज़िम्मेदारी लेता था। अब जो हुआ है उसमें यह है कि हे राज्यो, तुम्हारा फण्ड तुम लाओ, हम केवल निगरानी करेंगे। क्या देश इसलिए केंद्र की सरकार चुनता है कि कर्तव्य राज्यों के बढ़ते जाएं और नियंत्रण केंद्र का। यह संविधान की संघीय भावना का भी उल्लंघन है। संभव है कि कोई योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ी हो तब इस...