2019 में भारत से आया था ट्रंप-मस्क युग का प्रीक्वल
महाराष्ट्र के एक शहर में गुजराती परिवार रहता था। लगभग तीन दशक से वहां रहते हुए परिवार अपने व्यवसाय को खासा जमा चुका था। इस काम में वहां पहले से बसे गुजराती उद्योगपति ने उनकी काफ़ी मदद की थी। मन ही मन परिवार के मुखिया उनका बहुत एहसान मानते थे। पहले पहल तो सबकुछ व्यवसाय तक ही सीमित रहा लेकिन फिर उद्योगपति ने उनके घर के फ़ैसलों में दखल देना शुरू कर दिया। मुखिया अपने रुतबे को बरक़रार रखना चाहते थे इसलिए सब स्वीकारते गए लेकिन तक़लीफ़ तब शुरू हुई जब उद्योगपति ने बच्चों के ब्याह-शादियों में भी बोलना शुरू कर दिया। रिश्तों में यह दखल नई पीढ़ी को बर्दाश्त नहीं हुआ। दादाजी के आगे जब आवाज़ ऊंची हुई तो घर में कोहराम मच गया। "इस घर की आन-बान में आग मत लगाओ " दादाजी का सख़्त वाक्य पूरे घर में चेतावनी की तरह गूँज गया। एक पोता अपनी ज़िद में घर छोड़ गया। उसका हश्र देखकर शेष परिवार की फिर कभी हिम्मत नहीं हुई कि कुछ बोले। बाहरी शान यूं ही बनी रही और उस उद्योगपति की हर मर्ज़ी का पालन उस घर में होने लगा अक्सर बच्चे कसमसाते कि हम पर कुछ ज़्यादा समझोते लादे जा रहे हैं लेकिन बोलता कोई कुछ नहीं था। कभी-कभार