सरकार का अख़लाक़ ज़िंदा है
अख़लाक़ को किसी ने नहीं मारा। वह अपनी क़ब्र में लेटा सोच रहा है कि आख़िर किसने उसे यूं ज़िंदा दफ़न कर दिया। क्या उसने ख़ुदक़ुशी कर ली थी या फिर वह भीड़ जो दस साल पहले उसके घर आई थी, उससे बचने के लिए वह ख़ुद ब ख़ुद इस क़ब्र में उतर आया था। अख़लाक़ इसी उधेड़बुन में अपनी क़ब्र में पसीने-पसीने हो रहा था क्योंकि करवट लेने की कोई जगह तो वहां थी नहीं। सच ही तो है जैसी पहल अब सरकार ने की है उससे साफ़ है कि अख़लाक़ को किसी ने नहीं मारा। अगर जो मारा होता तब उसे मारने वाले भी सलाखों के पीछे होते,उसकी मां तकलीफ़ से मर न गई होती,उसकी बीवी अकेली व बीमार ना होती और उसका छोटा-सा घर जो राजधानी दिल्ली के क़रीब एक गाँव में था, यूं उजाड़ न पड़ा होता। उसके बच्चे कुछ भी बोलने में घबरा ना रहे होते। अब जब उसके तमाम आरोपियों को सरकार आरोप मुक्त करने की अर्ज़ी डाल चुकी है तब अख़लाक़ की क़ब्र भी ज़ोर ज़ोर से हिलने लगी है क्योंकि वह मरा नहीं था। उत्तरप्रदेश सरकार ने दस साल पहले दादरी में हुई अख़लाक़ की हत्या के आरोपियों पर लगे सभी मुक़दमे वापस लेने की पहल की है। देश की राजधानी दिल्ली से सटे ग्रेटर नोएडा के दाद...