संदेश

क्यों लगा रायटर्स पर प्रतिबंध और फिर उठ गया

एक राजा था। बड़े ही गाजे-बाजे के साथ उसका राज्याभिषेक हुआ था। वह दिखता तो बहुत आत्मविश्वासी था लेकिन उसे हमेशा यह डर बना रहता था कि कहीं उसका राज-पाट छिन ना जाए। राजसी परिवार के वृक्ष में से कुछ के ख़लबली का अंदेशा भी उसे बना रहता। वह आए दिन इसी  चिंता में लगा रहता और अपने दरबारियों को ऐसा करने की खुली छूट देता जिससे जनता में यह संदेश जाए कि केवल वही इस पद के सर्वथा योग्य है और शेष सब नाकारे और निकम्मे हैं। राजा के इस डर से दरबारी और उनके जानने वाले तो वाक़िफ़ थे ही लेकिन अब तो दुश्मनों को भी ख़बर हो गई थी। उन्होंने भी भांप लिया था कि राजा डरता है और इसका फ़ायदा उन्हें मिल सकता है। राजा के गद्दी बचाने के तमाम हथकंडों को उसकी रियाया भी समझ रही थी लेकिन उसे अपने राज्य की फ़िक्र थी। दुश्मनों को भला प्रजा की क्या परवाह होती वे  बस केवल मौके की तलाश में रहते। राजा की सत्ता लिप्सा और डर उन्हें बैठे-बिठाए यह सब उपलब्ध करा रहा था। दरबारी और चाटुकार अपना रोब -दाब बनाए रखने के लिए किसी भी हद तक चले जाते थे बिना इस बात की परवाह किये कि इस राजा के पुरखों ने राजदंड के साथ कुछ नियम कायदे...

आतंरिक्ष से भव्य हिंदुस्तान धरातल पर कैसा है ?

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'ऊपर से भारत कैसा दिखाई देता है आपको?' यही सवाल है जो भारत की दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दोनों ने अंतरिक्ष में जाने वाले यात्रियों से पूछा था और दोनों के ही जवाब दिल छू लेने वाले रहे। चालीस साल पहले जब तत्कालीन प्रधानमंत्री ने भारत के पहले स्क्वॉड्रन लीडर राकेश शर्मा से पूछा था कि, 'ऊपर से भारत कैसा दिखाई देता है आपको,' उन्होंने बिना किसी हिचक के अल्लामा इक़बाल की कविता 'सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा' की पंक्ति के साथ जवाब दिया था। तब पूरा देश जैसे गदगद हो गया था और जो उस समय बच्चे थे उनके लिए तो स्क्वॉड्रन लीडर राकेश शर्मा का अंतरिक्ष के शून्य गुरुत्वाकर्षण के बीच वह मुस्कुराता चेहरा कभी न भूलने वाला क्षण हो गया था। वे ही गर्व के क्षण ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने भी दिए, जब उन्होंने कहा कि 'ऊपर से भारत बहुत भव्य दिखाई देता है।' शुभांशु (1985 )उस वक्त पैदा भी नहीं हुए थे जब राकेश शर्मा ने पहली बार अंतरिक्ष में भारत का झंडा लहराया था। बेशक ऊपर से भारतीय भूभाग बड़ा ही दिव्य और भव्य दिखाई देता है लेकिन क्या...

देश के बाहर देश के लिए उठे दो बड़े क़द

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हम अक्सर नेताओं के भाषण सुनते हैं। लगभग सबका यही दावा होता है कि हम जो कह रहे हैं वही जनता के हित में है। ये अवसर मिलते ही हर मुद्दे पर बोलते हैं फिर चाहे उस मुद्दे पर इनका ज्ञान लगभग शून्य ही क्यों ना हो। ऐसे में देखा गया है कि विशेषज्ञ और बड़े पदों पर बैठे बुद्धिमान और ज़िम्मेदार दिमाग ज़्यादातर चुप्पी साध लेते हैं क्योंकि वे जब भी बोलते हैं सत्ता के पिट्ठू या तो समझ नहीं पाते या फिर उन्हें इस तरह घेरते हैं जैसे उन्होंने कोई देश विरोधी बात कह दी हो, गुनाह कर दिया हो। वही घिसे-पिटे चेहरे टीवी चैनलों पर आकर उन्हें दोषी ठहराने लगते हैं। कई गंभीर मुद्दे यहां 'ऐलिस इन वंडरलैंड' की तरह खो जाते हैं। सियासी दलों को भले ही तुरंत लाभ मिल जाता है लेकिन देशहित में कोई सार्थक विचार कभी आगे नहीं बढ़ पाते। शायद यही वजह है कि विशेषज्ञ देश के भीतर कुछ बोलने में हिचकते हैं लेकिन जब अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर बोलने का अवसर मिलता है तो वे बेहद सधे हुए ढंग से अपनी बात रखते हैं क्योंकि  बड़े मंचों पर आप केवल 'पॉलिटिकली मोटिवेटेड' नहीं हो सकते,वहां आप अपने विषय के विशेषज्ञ हैं । इस सप्ताह देश के दो...

ऑपरेशन सिंदूर जारी है और जारी है चुनावी रोड शो

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ऑपरेशन सिंदूर के बाद सरकार कुछ ज़्यादा ही बेचैन नज़र आ रही है। यह बेचैनी कभी मंत्रियों की ज़ुबां से झलकती है तो,कभी विधायकों की तो कभी   प्रधानमंत्री के भाषणों से।  हाल ही में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख ने भी अपने साक्षात्कार में जो कहा है, वह भी इस बेचैनी को पुष्ट करता है। आख़िर प्रधानमंत्री को विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करो और संघ प्रमुख को यह कहने की ज़रूरत क्यों पड़ी कि भारत के पास ताकतवर होने के आलावा कोई विकल्प नहीं है और हिन्दू शक्ति को एक होना पड़ेगा ? कहा तो ये जा रहा है कि ऑपरेशन सिंदूर अभी जारी है। सीमांत प्रदेशों में मॉक ड्रिल चल रही है और सेना अलर्ट मोड में है। जब सीमा पर यूं तनाव बना हुआ है तब जनमानस को  तमाम रोड शो और घर-घर सिंदूर बांटने जैसी प्रक्रिया में क्यों उलझाया जा रहा है ? क्या यह युद्ध के माहौल को चुनावी उन्माद में बदलने की कोशिश है ? आपातकालीन हालात बने रहें और ज़्यादा सवाल-जवाब भी ना हों ? लिखने-बोलने पर तो गिरफ़्तारियों का सिलसिला जारी है ही। फिर ये कौनसी नई परिस्तिथियां हैं कि पक्ष-विपक्ष के अन्य नेता तो विदेश में हिंदुस्तान का ...

चकमा देने वाली कहानियों का दौर

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अध्यात्म और भारतीय पौराणिक ग्रंथों के विवेचनाकार देवदत्त पटनायक एक जगह लिखते हैं कि प्राचीन काल से ही गाथाओं के माध्यम से सत्ता की स्थापना होती आई है। राजा में देवत्व का अंश बताया जाता था। यूं तो राजा अक्सर वंश विशेष से ही चुने जाते थे लेकिन जब ऐसा भी नहीं हो पाता था तब जो भी चुना जाता था, उसे लेकर यही साबित किया जाता था कि उस पर देवताओं की असीम कृपा है। वह परम प्रतापी और विलक्षण है। तब ऐसा कौन कर पाता था और किसे यह जिम्मेदारी दी जाती थी? कौन यह स्थापित करता था कि इस पर देवताओं की कृपा है और यह आम से बहुत अलग और विशेष है? क्योंकि ऐसा न होने पर प्रजा का उस पर विश्वास होना संभव नहीं होता था जिससे राजकाज में बाधा आती थी। इसके लिए प्राचीन भारत के वैदिक काल में दूसरों पर राज करने के इच्छुक महत्वाकांक्षी क्षत्रप ब्राह्मणों द्वारा अनुष्ठान करवाते थे और इन अनुष्ठानों के सफ़लतापूर्वक पूरे होने का तात्पर्य यह था कि देवता उस क्षत्रप के साथ हैं। अग्निष्टोम,अग्निचयन,अश्वमेध यानी वाजपेयी और हिरण्यगर्भ यजुर्वेद और ब्राह्मण साहित्य में अनुष्ठान का ब्यौरा मिलता है। फिर भी केवल इतना पर्याप्त नहीं था। बाद...

पाकिस्तान :' टू ' मैनी नेशन थ्योरी

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टू नेशन थ्योरी के आधार पर बना कृत्रिम राष्ट्र पसकिस्तान अब कई राष्ट्र वाला बनने जा रहा है। बांग्लादेश के बाद अब बलूचीस्तान ने अपना झंडा लहरा दिया है। लगता है कि पाकिस्तान का एक और हिस्सा उसके गले की नस बनने जा रहा है। पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष  आसिफ़ मुनीर ने पिछले महीने ज़रूर कश्मीर को अपने गले की नस बताया था लेकिन सच्चाई यह है कि अब जिसने पाकिस्तान की नाक में विध्वंस मचा रखा है, वह उसी के देश का अपना हिस्सा बलूचिस्तान है। 'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद एक बलोच नेता मीर यार बलूच ने बलूचिस्तान को आज़ाद घोषित कर दिया है बाक़ायदा अपने एक झंडे और राष्ट्रगीत के साथ। बलूच जनजाति का संघर्ष यूं तो सदियों पुराना है लेकिन कुछ समय से यह सतह पर है जिसका जन्म पाकिस्तान बनते ही हो गया था। पाकिस्तान ने हमेशा इस संघर्ष को विद्रोह मानकर कुचलने की कोशिश की। देश का सबसे बड़ा और संसाधनों के हिसाब से बेहद समृद्ध हिस्सा होने के बावजूद बलूचिस्तान को कोई तवज्जो नहीं मिली। पाकिस्तान में पहले दिन से ही पंजाब मूल के हुक्मरानों, सेनाध्यक्षों और बुद्धिजीवियों का दबदबा  रहने से उसके अन्य हिस्से  छिटके ही रहे। सिंध, ख...

हिंद की सेना का जवाब कि हां तुम एक विफल राष्ट्र हो

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पाकिस्तान एक विफल देश है क्योंकि इसका जन्म ही नफ़रत की बुनियाद पर हुआ है। अंग्रजों से आज़ाद होते ही भारत का बंटवारा हुआ और मानवता ने जिस वीभत्स मंज़र को देखा,उसकी मिसाल कम मिलती हैं। कई कलाकार, लेखक और पॉलिटिशियन मज़हब के आधार पर बंटे पाकिस्तान  में चले तो गए लेकिन उम्र भर सिर्फ हिंदुस्तान को ही याद करते रहे, अपने दोस्तों से मिलने के लिए तड़पते रहे जैसे उन्हें यह अहसास हो गया था कि ग़लती हो चुकी है और समय का पहिया अब पीछे नहीं खींचा जा सकता। जो लिख सकते थे, उनके शब्दों में यह दर्द बयां हुआ और बा क़ी अपने दिलों में इस टीस के साथ ज़िंदा रहे। मशहूर और बेहतरीन कहानीकार सआदत हसन 'मंटो' (दो दिन बाद उनकी सालगिरह है) उन्हीं में से एक थे। उन्होंने विभाजन के समय हुए दंगों की त्रासदी को भीतर तक उतारा और फिर पन्नों पर। 'टोबा टेकसिंह' और 'खोल दो' उनकी ऐसी ही महान रचनाएं हैं। मंटो दोस्तों को अक्सर लिखा करते थे कि यार मुझे वापस बुला लो। उन्होंने ख़ुदकुशी की नाकाम कोशिश भी की थी। वे बहुत कम (43) उम्र जी पाए जैसे चिंता और जीवन का कोई गहरा रिश्ता हो। यूं तो मंटो के बारे में कहने को इ...