वक़्फ़ ने किया क्या नया सितम ..


मधुर गीत के बोल वक़्त ने किया क्या हंसी सितम . . के साथ छेड़ छाड़ के लिए माफ़ी के साथ यह शीर्षक लिखा है। गीत जिसे कैफ़ी आज़मी साहब ने  लिखा और गीता दत्त ने  गाया था। दरअसल वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम, 2025 ने अजब सितम यह किया है कि संसदीय शक्ति और न्यायिक शक्ति के बीच जारी टसल को और तेज कर दिया है। हाल ही में कुछ ऐसे फैसले और टिप्पणियां आई हैं  कि सरकार को यह लगने लगा है कि सर्वोच्च न्यायालय अपनी लक्ष्मण रेखा लांघ रहा है तभी तो पहले किरन रिजिजू और फिर शुक्रवार को उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ ने कह दिया कि अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं। उन्होंने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 142 के तहत कोर्ट को मिला विशेष अधिकार लोकतांत्रिक शक्तियों के ख़िलाफ़ 24 घंटे उपलब्ध न्यूक्लियर मिसाइल बन गया है। जज सुपर पार्लियामेंट की तरह काम कर रहे हैं। अब सवाल यह है कि सर्वोच्च कौन है न्याययालय या संसद। वक़्फ़ (संशोधन) बिल पर सुनवाई के दौरान तीन न्यायाधीशों की पीठ ने भले ही कोई स्टे नहीं दिया है लेकिन अगली सुनवाई तक तत्काल  कुछ बातों पर रोक लगा दी है और सरकार को जवाब देने के लिए समय भी दिया है। इससे पहले  सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को तमिलनाडु गवर्नर Vs राज्य सरकार के केस में गवर्नर के अधिकार की ‘सीमा’ तय कर दी थी। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने कहा था, ‘राज्यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं है।’ सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के 10 जरूरी बिलों को राज्यपाल की ओर से रोके जाने को अवैध भी बताया था। 

ताज़ा मामला वक़्फ़ का है। बीते सप्ताह पूर्व कानून मंत्री और वर्तमान में केंद्रीय संसदीय कार्यमंत्री किरन रिजिजू  दोनों सदनों में बड़ी तैयारी से बहस में आए थे। लोकसभा में वक़्फ़ संशोधन विधेयक पर चर्चा की शुरुआत करते हुए रिजिजू ने कहा था कि उन्हें ऑनलाइन, ज्ञापन, अनुरोध और सुझाव के रूप में कुल 97,27,772 याचिकाएं प्राप्त हुई हैं।कुल  284 प्रतिनिधि मंडलों  ने कमेटी के सामने अपनी बात रखी और सुझाव दिए। सरकार ने उन सभी पर ध्यानपूर्वक विचार किया है, चाहे वे जेपीसी (संयुक्त संसदीय समिति) के माध्यम से हों या सीधे दिए गए ज्ञापन। उन्होंने यह भी बताया था कि किस तरह पुराने संसद भवन को भी वक़्फ़ संपत्ति बताया जाता है और रेल और सेना के बाद वक़्फ़ के पास तीसरी सबसे ज्यादा संपत्तियां हैं। हालांकि उनके इस दावे को भी लगातार चुनौती मिल रही है। साथ ही उन्होंने महिलाओं को भी बोर्ड में रखने की बात कही थी। सब जानते हैं पक्ष -विपक्ष के बीच बेहतरीन और मेराथन बहस बिल पर हुई। आधी रात को राजयसभा में बिल पास हुआ। आश्चर्य तो इस बात का भी रहा कि इस महत्वपूर्ण बहस में सदन के नेता और नेता, प्रतिपक्ष दोनों गायब थे। दोनों ने सदन में कुछ नहीं कहा। प्रधानमंत्री ने ज़रूर  हरियाणा के हिसार में नए टर्मिनल का  शिलान्यास करते हुए पहली बार कहा था कि वक़्फ़ के नाम पर लाखों हेक्टेयर ज़मीन पूरे देश में है। आज ईमानदारी से उसका उपयोग हुआ होता तो ,मेरे मुसलमान नौजवानों को साइकिल के पंक्चर बनाकर ज़िन्दगी नहीं गुज़ारनी पड़ती। 

वक़्फ़ के मायने है धरमार्थ दान। व्यक्ति अपनी मर्ज़ी से अपनी संपत्ति वक़्फ़ यानी दान कर सकता है, किसी के लिए सकता है।छोड़ ।  क्या वाक़ई अब इस संशोधित बिल के बाद सरकार रॉबिनहुड की भूमिका में आ जाएगी जो वक़्फ़ की हुई संपत्ति को दोबारा अपने हिसाब से पंक्चर बनाने वालों को वक़्फ़ करेगी। इस संशोधित बिल पर दोनों सदनों में बहस के  बाद अब देश के सर्वोच्च न्यायालय में बेहद गंभीर लेकिन रोचक बहस जारी है। सवाल पूछ लिए गए हैं कि पांच साल से इस्लाम को अपनाने की क्या परिभाषा होगी;वक़्फ़ बोर्ड में हिन्दू सदस्य होंगे तो क्या हिन्दू बोर्ड में मुस्लिम सदस्य होंगे ;कलेक्टर को सर्वोच्च अथॉरिटी कैसे बनाया जा सकता है ? सबसे बड़ा प्रश्न कि 'वक़्फ़ बाय यूजर' को कैसे कानून के दायरे में लाया जाएगा जो संपत्तियां सैकड़ों सालों पहले वक़्फ़ होकर जनता के उपयोग में आ रही हैं, उनके कागज़ कहां से आएंगे। मसलन जामा मस्जिद जो वक़्फ़ से ताल्लुक़ रखती है उसका मालिकाना हक़ कहां पंजीकृत होगा ?

 किसी को उम्मीद नहीं थी कि राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होते ही नए बिल पर इतनी जल्दी सुनवाई होगी और कोर्ट के सीधे सरल-सवालों के जवाब देने में सरकारी वकील के पसीने छूट जाएंगे। सुनवाई से ठीक पहले मंत्री रिजिजू ने  एक चैनल से साक्षात्कार में कहा - "हमें एकदूसरे का  सम्मान करना चाहिए।अगर कल को सरकार न्याय-व्यवस्था में दखल दे तो यह ठीक नहीं होगा। सभी शक्तियों के अधिकार सुपरिभाषित हैं। उन्हें पूरा विश्वास है कि सुप्रीम कोर्ट विधायिका के क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करेगा।" इधर कुछ कानूनविद इसे धमकी के दायरे में रख रहे थे और कुछ का मनना  कि  किसी भी लोकतांत्रिक  गणराज्य की यही शक्ति होती है कि जब भी नागरिकों के मौलिक अधिकारों को चुनौती मिले वह न्याय का रुख कर सकें। न्यापालिका और विधायिका में टसल और  बहस की गुंजाईश हमेशा रहती है लेकिन यदि इसे ख़त्म करने की कोशिश हुई तो फिर वह  सीधे आपातकाल को न्योता देना होगा।  


थोड़ा पीछे लौटते हैं। किरन रिजिजू पहले क़ानून मंत्री थे। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में रिजिजू ने जजों की नियुक्ति के कॉलेजियम सिस्टम को संविधान के लिए 'एलियन' यानी अजनबी बताया था, रिटायर्ड जजों को देश विरोधी गैंग करार दिया था और उन्हें लगभग धमकी ही दे डाली थी कि जो लोग देश विरोधी काम कर रहे हैं, उन्हें कीमत चुकानी होगी। रिजिजू ने कहा था  कि जज ये ना कहें कि सरकार नियुक्ति से जुड़े फैसलों की फाइल पर बैठी रहती है, फिर फाइल सरकार को न भेजें। खुद को नियुक्त करें। खुद सारा शो चलाएं। यह भी कहा था  कि जजों ने संविधान को हाईजैक कर लिया है। उन्होंने कहाथा - "जज  एक बार बनते हैं। उन्हें चुनाव नहीं लड़ना पड़ता। जनता उन्हें बदल नहीं सकती। जिस तरह जज काम करते हैं, इन्साफ करते हैं, जनता उनके फैसलों को देख रही है।" अभियान तो  उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ ने भी चलाया था कि जजों की नियुक्ति का अधिकार और शक्ति चुनी हुई सरकार के पास होनी चाहिए । उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ का सीधा तर्क था कि लोकतंत्र में जज भी सरकार तय करे कॉलेजियम नहीं। जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था की अगर यह सिस्टम सही नहीं तो सरकार नया कानून लाए। बहरहाल,बतौर एक नागरिक यह उम्मीद होती है कि सरकार कोई भी कानून बनाने से पहले उसे संवैधानिक मूल्यों पर परखेगी जो किसी भी सूरत में बराबरी और समानता के मूल को कायम रखने की पैरवी करता है। 







टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मेरी प्यारी नानी और उनका गांव गणदेवी

वंदे मातरम्-यानी मां, तुझे सलाम

मिसेज़ ही क्यों रसोई की रानी Mr. क्यों नहीं?