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तो 'अमिट' ब्लंडर' हो गया है शाह से ?

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वाक़ई अजीब समय है यह। संसद में संविधान पर बहस करते-करते ये नेता लोग आपस में ही भिड़ गए। धक्का-मुक्की करने लगे।पहले तो  इनकी बहस का स्तर तू -तू ,मैं-मैं की तर्ज़ पर था और फिर दोनों पक्ष ने हाथा-पाई भी कर ली। संविधान के 75 साल पूरे करने वाला यह अमृतकाल एक नाटकीय बहस में बदल दिया गया। दोनों पक्षों का लगा कि वे ही देवता हैं और इस समुद्र मंथन से निकले अमृत का पूरा लाभ उन्हें ही मिलेगा। देश की जनता उन्हें माथे पर बैठा लेगी लेकिन जनता इनका व्यवहार देखकर हताश है। इनमें कोई भी शिव की तरह विष पीने का साहस नहीं करता ,जो करता तो देश को बाबा साहब के समानता मूलक विचारों से रूबरू कराता। अपनी गलतियों को गिनाता। शायद वे नहीं जानते कि जनता उनकी इस लड़ाई से तंग आ चुकी है क्योंकि ये हर मौके पर दो -तीन बड़े नेताओं की ऊंची-ऊंची प्रतिमाएं (केवल प्रतिमाएं ,उनके आदर्शों का इन्हें कोई भान नहीं) निकाल लाते हैं। नकली  बहस में जुटते हैं और उम्मीद करते हैं कि तमाम माध्यमों से जुड़ कर लोग इन्हे देखें और इनकी झोली  वोटों से भर दें। सच तो यह है कि ये इतने डरपोक हैं कि वे यह भी स्वीकार ...

विश्वास क्यों बदल गया अविश्वास में

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समय-समय पर सरकार के प्रवक्ता बतौर दिए गए उनके भाषण और त माम विवादों के बीच जया बच्चन और ममता बैनर्जी के साथ हुए उनके तल्ख़ संवाद भी सभापति महोदय के स्वाभाव की ओर इशारा करते हैं  आज़ाद भारत  के संसदीय इतिहास में यह पहला अवसर है जब किसी सभापति के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया गया है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ जो उच्च सदन राज्यसभा के सभापति भी हैं ,विपक्ष ने उनके विरुद्ध  अविश्वास प्रस्ताव  लाकर पद से हटाने की तैयारी कर दी है। ऐसा तब है जब विपक्ष के पास कोई बहुमत नहीं है और तटस्थ सियासी दलों ने कह दिया है कि उनसे किसी भी तरह के  कोई समर्थन की मांग नहीं की गई है।गणित विपक्ष के पक्ष में नहीं है फिर क्या है जो विपक्ष को ऐसा करने के लिए मजबूर कर रहा है ? बीच-बीच में बिखरने का संकेत देने वाला इंडिया गठबंधन यहां एक है और उसका एक स्वर में आरोप है कि संसद में उपराष्ट्रपति का व्यवहार पक्षपातपूर्ण है और यह व्यवहार नियमों को छोड़ राजनीति की बात करता है। संविधान के अनुच्छेद 67 के तहत यह पहली बार है कि उपराष्ट्रपति के खिलाफ ऐसा प्रस्ताव लाया जा रहा है। ऐसे में वे कोई दि...

मौत क्यों हो गुज़ारिश की मोहताज़

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बीते सप्ताह ब्रिटेन के निचले सदन ने गंभीर रूप से बीमार रोगियों के लिए इच्छा मृत्यु से जुड़े  एक बिल को भारी समर्थन दिया। बिल पर अपना समर्थन या विरोध जताने के लिए सांसदों पर पार्टी लाइन पर चलने की कोई अनिवार्यता नहीं थी ,वे अंतर्मन की आवाज़ पर वोट डाल सकते थे। तीखी बहस के बाद बिल के पक्ष में 330 में से 275 वोट पड़े थे जबकि 38 सांसद अनुपस्थित रहे। आगे यह सहायक मृत्यु विधेयक यदि कानून का रूप लेता है तो इस देश में गंभीर नागरिकों को जिनके ठीक होने की कोई उम्मीद नहीं है, इच्छा से मौत को चुनने का हक़ होगा। विधेयक लेबर पार्टी के सांसद की ओर से पेश किया गया था। ऐसा विधेयक साल 2015 में भी लाया गया था जिसे संसद ने नकार दिया था। बीते कुछ सालों में ब्रिटेन के पांच सौ से ज़्यादा लोगों ने स्विट्ज़रलैंड जाकर इच्छामृत्यु का सहारा लिया जहां यह  वैध है। अगर जो बात भारत की हो तो यहां भी लम्बे अर्से से बहस जारी है लेकिन फ़िलहाल कोई कानून नहीं है और ख़ुदकुशी अपराध है।  वह  हिमालय की ओर  पांडवों का अंतिम सफर था ,स्वर्ग प्राप्ति के लिए। कृष्ण के संसार छोड़ देने के बाद पांचों ने द...