वे हमसे नफरत करते हैं
पाव्लो सत्ताईस साल का एक यूक्रेनी युवा है जो कम्प्यूटर्स में मास्टर्स है। उसकी गर्लफ्रेंड का नाम लूबा है। ये दोनों यूक्रेन की राजधानी कीव से दो सौ किलोमीटर दूर पालतोवा में रहते हैं। पाव्लो के माता पिता गांव में रहते हैं। उसका एक भाई भी है जो पुलिस में था लेकिन हालात की वजह से आर्मी में है। अब आर्मी पुलिस सब एक है। एक पखवाड़े पहले तक पाव्लो यूक्रेन के गांव, देहात, शहरों से दुनिया को रूबरू कराया करता था लेकिन आज सन्नाटा है। पाव्लो के व्लॉग्स में ज़िन्दगी यूं ही हंसती थी जैसे किसी भी शांत, सद्भावी और सुंदर देश में। गांव में उसकी मां बत्तख और मुर्गियां पाला करती है और उसके पड़ोस की सफेद गाय बारह लीटर तक दूध दे देती है।अपने पिता के साथ कैमरे के सामने वह पूछता है क्या मैं इनके जैसा दिखता हूं.. नहीं बिल्कुल नहीं मैं तो मेरी मां जैसा हूं। फिर मजाक करते हुए अपने पिता से पूछता है कि क्या मैं आप ही का बेटा हूं। भोले पिता मुस्करा देते हैं क्योंकि अंग्रेजी में उन्हें कुछ पल्ले नहीं पड़ता। पाव्लो के आलावा कोई अंग्रेजी नहीं बोलता यहां तक कि लूबा भी सारे जवाब यूक्रेनी भाषा में ही देती है। ये दोनों कभी कभार किसी सुपर मार्केट में भी घुस जाते हैं और बताते हैं कि हमारा देश कितने कम खर्च में कितना खाना मुहैय्या करा देता है। फिर ये खाना लेकर बैठ जाते हैं और पेपर सिजर खेलते हुए खाना खाते जाते हैं। यानी जो जीता वो पहले अपनी पसंदीदा डिश चखता है ।
लेकिन यह सूरत एक पखवाड़े पहले की है। ये दोनों अब अपने अपार्टमेंट में कैद हैं। आस -पास धमाकों का शोर लगातार गूंजता है। माता -पिता के पास गांव जा नहीं सकते क्योंकि रूसी हमले में जान का खतरा है। भाई रूसी बॉर्डर पर लड़ रहा है।
पाव्लो की आंखें दुःख और भय में घिरी नजर आती है जैसे किसी ने विश्वासघात कर दिया हो। वह रोता नहीं लेकिन आवाज़ भरी हुई है। वह कहता है वे हमसे नफरत करते हैं और उनका एक ही मकसद है तबाही तबाही और तबाही। हम में से किसी ने भी नहीं सोचा था कि इक्कीसवीं सदी में कोई देश किसी देश पर यूं हमला करेगा। पुतिन पागल हो चुके हैं। हमारे देश में कोई फासीवादी ,कोई नार्सिस्ट नहीं है। मैंने कभी नहीं देखा। उन्होंने खारकीव में चार सौ रहवासी इमारतों पर हमले किये हैं। बच्चे मारे गए हैं। हम फ़िलहाल सुरक्षित हैं लेकिन मैं अपना देश छोड़कर कहीं नहीं जाने वाला। मैं यूक्रेनी हूं ,यहीं बड़ा हुआ हूं। मैं लड़ने जाना चाहता हूँ लेकिन फिलहाल मेरे आगे काफी लोगों के आवेदन हैं। जो कभी परिंदों की तरह उड़ता था आज एक कमरे में कैद है। वहां अपने कंप्यूटर की खिड़की खोल वह दुनिया से जुड़ता है। बदले में दुनिया के लोग उसकी झोली समर्थन,स्नेह और आर्थिक सहयता की पेशकश से भर देते हैं। हमेशा मुस्कुराने वाला यह जोड़ा
तकलीफ के बावजूद हिम्मत बांधे दिखता है। दुनिया के लिए यह नए किस्म का अनुभव है। युद्धरत या कहें कि युद्ध में धकेल दिए गए छोटे-से देश के वासी सीधे तकनीक के ज़रिये अपनी बात कह रहे हैं। बिना डरे साहस के साथ। जंग के इलाकों से इतना सीधा संपर्क शेष दुनिया को पहली बार हो रहा है। उम्मीद की यह बुरा वक्त जल्द खत्म हो और कोई देश यूं किसी देश के वजूद को न रौंदे।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें