इसका मतलब न जबरदस्ती टीका लगे न प्रमाण मांगा जाए



यह खबर किसी के लिए भी अचरज  भरी हो सकती है कि जबरदस्ती किसी को भी  वैक्सीन लगाई जाए और न ही हरेक के लिए वैक्सीन सर्टिफिकेट अनिवार्य किया जाए। वाकई यह बात एक नागरिक की आज़ादी का पूरा समर्थन करती हुई लगती है खासकर तब और भी ज्यादा जब सरकार यह जवाब सर्वोच्च न्यायालय को देती है। सच यही है कि एक याचिका की सुनवाई पर सरकार ने अपने जवाब में इसी नागरिक स्वतंत्रता पर मुहर लगाई  है। यह बात इस परिदृश्य में और भी जरूरी हो जाती  है जब टेनिस खिलाड़ी नोवाक जोकोविच को ऑस्ट्रेलिया छोड़ना पड़ता है क्योंकि उनहोंने कोविड का टीका नहीं लगवाया है और दुनिया वैक्सीन पासपोर्ट पर फिर से बहस कर रही है 


भारत सरकर का यह रुख उस वक्त सामने आया जब वह एलुरु फाउंडेशन की  याचिका के संदर्भ में  दिव्यांगों से जुड़े उस सवाल का जवाब दे रही थी कि उनके सम्प्पूर्ण टीकाकरण के लिए सरकार की क्या तैयारी है। बेशक अनिवार्य टीकाकरण की सूरत में यह बहुत ही मुश्किल होगा कि हर दिव्यांग और बिस्तर पर रहनेवाले गंभीर रोगी तक भी टीका पहुंचे। इस बारे में सरकार का यह भी कहना था कि राज्य सरकारों को निर्देश दे दिए गए थे कि स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की टीम बनाकर उन तक भी पहुंचा जाए। सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि ऐसी कोई गाइडलाइन जारी नहीं की गई है कि व्यक्ति की मर्जी के खिलाफ उसे वैक्सीन लगाई जाए या फिर वह टीकाकरण का प्रमाणपत्र साथ लेकर चले। सरकार का सर्वोच्च न्यायालय को यह जवाब बहुत मायने रखता है और उस वक्त तो और भी जब पूरी दुनिया इस बारे में गहन विचार विमर्श में जुटी हो और दुविधा में  हो कि वैक्सीन पासपोर्ट जरूरी किया जाए या नहीं  ?

तो क्या इसके मायने ये हुए कि सरकार टीकाकरण को लेकर गंभीर नहीं है ? यह जो वैक्सीन टेरर जो कुछ राज्यों में जारी है वह निराधार है? मामले की सुनवाई में इसका भी जवाब मिलता है कि टीका बेहद जरूरी है और सरकार सभी सूचना माध्यमों से आम जनता तक यह बात पहुंचा चुकी है। निजी अनुभव यह कहता है कि पिछले महीनों में हुई तमाम यात्राओं और विवाह समारोहों में कहीं कोई अड़चन नहीं डाली गई और ना ही सर्टिफिकेट देखने को लेकर कोई सरकारी नुमाइंदा अड़ा। पिछले महीने  आणंद से सूरत जाते  हुए एक निजी बस की सवारियों को उतारकर उनकी कोरोना जांच की गई फिर  रिपोर्ट नेगेटिव आते ही बस को रवाना कर दिया गया। यह और बात है कि लम्बे जाम ने यात्रा को दुगुने समय में पूरा करवाया। ट्रेन में भी जयपुर से सूरत या कोलकाता जाते हुए  कोई वैक्सीन प्रमाण पत्र नहीं मांगा गया। कोलकाता में जरूर ठाकुर बाड़ी, रवीन्द्रनाथ टैगोर की  जन्मस्थली पर बने संग्रहालय में प्रवेश से पहले टीके के प्रमाण मांगे गए लेकिन  फिर भीतर भी जाने दिया गया। सिनेमाघरों में भी कोई दबाव नहीं देखा गया। फिर भी अगर किसी नागरिक के साथ ऐसा हुआ हो तो वह नियम के खिलाफ ही होगा। बहरहाल यदि  टेनिस की बड़ी प्रतियोगिता भारत में हो रही होती और नोवाक जोकोविच भारत में होते तो उन्हें टीका न लगवाने के कारण देश नहीं छोड़ना पड़ता। 


सर्बियाई टेनिस स्टार नोवाक जोकोविच ने यह कहकर टीका नहीं लगवाया कि दिसंबर में उन्हें  कोविड हो चुका है। विशेष वीजा छूट  के चलते वे ऑस्ट्रेलिया में उतर तो गए लेकिन मेलबोर्न पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया। इस गिरफ्तारी को जोकोविच ने अदालत में चुनौती दी। अदालत ने उनके हक में फैसला देते हुए वीज़ा को वैध माना। इससे पहले कि जोकोविच एक और ग्रैंड स्लैम अपने नाम करते ऑस्ट्रेलिया के इमीग्रैशन मंत्री ने अपने विशेष अधिकार का इस्तेमाल करते हुए उन्हें ऑस्ट्रेलिया से बाहर का रास्ता दिखा दिया। नियमानुसार वे तीन साल तक ऑस्ट्रेलिया नहीं आ सकेंगे। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री  ने  ज़रूर  कहा है कि सही परिस्थितियां होते ही वे ऑस्ट्रेलिया आ सकते हैं।  सर्बियाई  खिलाड़ी जोकोविच के देश सर्बिया में ऑस्ट्रेलिया के इस व्यवहार  के विरोध में गुस्सा है। सर्बिया के राष्ट्रपति ने कहा है कि ऑस्ट्रेलिया ने खुद को ही शर्मिंदा किया है। उन्होंने यह भी कहा कि  खिलाड़ी  का एयरपोर्ट पर भारी संख्या में जुटकर स्वागत किया जाए। स्पष्ट है कि ऑस्ट्रेलियाई अदालत ने  जोकोविच के हक में फैसला दिया था जिसे  ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने बदला। सुप्रीम कोर्ट में भारत सरकार का जवाब भी ऐसी किसी दुविधा से बचने का स्पष्ट इरादा है।  क्या  वैक्सीन पासपोर्ट में भी ऐसी ही छूट दी जाएगी । 

असल में वैक्सीन पासपोर्ट तभी किसी इंसान को एक देश से दूसरे देश की यात्रा करने देंगे जब उन्हें वैक्सीन लगी हुई हो। सवाल यह उठता है कि दुनिया या उसके संगठन ही अभी तय नहीं कर पाए हैं कि कितने बूस्टर डोज़ लगेंगे ऐसे में कोई नियम कैसे लागू किया जा सकता है ? यात्रा पर रोक नागरिक के अधिकारों का हनन ही होगा। ऐसे में बेहतर यही होगा की महामारी को देखते हुए अधिकाधिक टीके लगें लेकिन इसके अभाव में उनके मौलिक अधिकार न छीने जाएं। कम अज कम भारत सरकार ने तो सुप्रीम कोर्ट को दिए अपने शपथ पत्र में यही कहा है कि न तो किसी को जबरन टीका लगाया जाए और ना ही इसका सर्टिफिकेट मांगा जाए। भारत टीकाकरण लक्ष्य के बहुत करीब होते हुए भी दबाव की रणनीति नहीं अपनाएगा तो वह अलग मिसाल होगी। ऐसे में राज्य सरकारों को भी यही करना चाहिए। होना तो यह भी चाहिए कि अब जब टीके की प्रक्रिया को शुरू हुए एक साल बीत चुका है इसके प्रभाव का डेटा भी जनता के सामने आए। 










 

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