क्या हैं शाहीन बाग़ की औरतें मदर इंडिया ?

शाहीन बाग़ न संयोग है न प्रयोग। ये प्रतिक्रियाएं हैं जो CAA और NRC के ख़िलाफ़ निकलकर घर से बाहर आ गई हैं। ये उनकी अपनी मिट्टी से मोहब्बत है जो उन्हें घर की देहरी लांघने  पर  मजबूर कर रही है। उन्हें डर है कि कोई उन्हें अपने वतन से दूर न कर दे इसलिए वे दम साध कर पैर जमा कर बैठीं हैं। कौन हैं ये ,क्या उम्र है इनकी,क्या लिबास हैं यह सवाल इस जज़्बे के आगे बहुत ही गैरमामूली हो जाते हैं।  आप इनसे परेशान होते हैं लेकिन इनकी आशंकाओं के निवारण के लिए क़रीब नहीं जाते। दअसल ये मदर इंडियाएं हैं जो अपने बच्चों को लेकर शाहीन बाग़ आ रही हैं। माएं बच्चों को टहलाने और बहलाने के लिए बाग़ में लाती हैं लेकिन यहाँ मंज़र कुछ और है। एक चार महीने के बच्चे की ठंड से मौत हो गई लेकिन माँ पीछे नहीं हटी फिर लौट आई। वाकई ये मदर इंडिया है।
मेरे पिता ने बचपन में हम भाई-बहनों को महबूब ख़ान की  फ़िल्म मदर इंडिया किसी धर्म ग्रंथ की तरह  दिखाई। वो मदर इंडिया जो एक लाचार इंसान की पत्नी ,एक धन्ना सेठ सूखी लाला की नज़रों की शिकार और खेती में लगातार नुक़सान सहने के बावजूद  अपना साहस नहीं खोती, स्वाभिमान नहीं तजती। वह अपने बच्चों के सर कोई तकलीफ़ नहीं आने देती। भयावह बाढ़ और सूखे में  बच्चों की ढाल बनती माँ। ख़ुद की जान और भूख की क़ीमत पर बच्चों को अपनी जीवटता से ज़िंदा रखती  हुई  मदर इंडिया लेकिन उनके बड़े होने पर जब गांव की इज़्ज़त पर बात आती है तो अपने सबसे प्रिय बेटे को गाँव पर क़ुर्बान कर देती है यह मदर इंडिया। इस माँ को पूरा गांव अपनी माँ मानता है। कुर्बानी का यह जज़्बा संयोग से नहीं आता और न ही प्रयोग से।  यह आता है अपने ही देश में अपना वजूद खो देने के डर से। वे साबित करना चाहती हैं कि  कोई लाख भेद करना चाहे , हम अलग नहीं हैं। वक़्त आने पर हम इम्तेहान दे सकते हैं। शाहीन बाग़ ऐसी ही आबो हवा का शाहिद है इन दिनों। यही हौसले आज़ादी के परवानों के भी रहे होंगे। जलिया वाला बाग़ के भी रहे होंगे और आज शाहीन बाग़ के भी हैं। शुक्र है कि कोई जनरल डायर आज नहीं है लेकिन फायरिंग की घटनाएं हैरान करने वाली हैं डराने वाली भी । इस सर्दी में जो कोई अपने चुने हुए हुक्मरां से बातचीत के इंतज़ार में है तो यह कोई बहुत दुर्लभ मांग तो नहीं है जो पूरी न की जा सके। 

बात फ़िल्म मदर इंडिया की जिसे मेरे पिता ने हमें दिखाया औरअब हमारे बच्चों को भी । मदर इंडिया ग्रामीण भारतीय स्त्री के त्याग और समर्पण का ऐसा दस्तावेज़ है जो सेलुलॉइड के जरिये अमर हो गया है। फ़िल्म में नर्गिस हैं जो हूबहू भारत माता ही मालूम होती हैं जब गाँव में नहर का उद्घाटन के लिए उन्हें बुलाया जाता है। उन्हें उस नहर में अपने ही बेटे का ख़ून दिखाई देता है। भारतीय स्त्री की इस जीवटता को सौ-सौ सलाम। उसकी क्षमताएं अपार हैं। शाहीन बाग़ में बैठीं औरते भी इस कसौटी पर खरी मालूम होती हैं।
सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्तां हमारा के शायर अल्लामा इक़बाल का एक शेर इन जीवट स्त्रियों के लिए 
तू शाहीन है परवाज़ काम तेरा 
तेरे सामने आसमां और भी हैं 

टिप्पणियाँ

  1. It is a shame that you are trying to compare the sanctity of womenhood to these cheap demonstrators who are just tools in the hands of anti national politicians. No decent democracy will tolerate this sort of lawlessness and holiganism. We have become a nation of dharnas, bandgs, indisciplined gangs and thugs. No wonder we are still a third world country even after 65 years. Politicians who have been destroying country from last 6t yeadds are misleading people to create chaos. We are nation of stupid vpters who elects kejriwal the traitor and a liar. He took help of khalistanis in punjab election. We have proved several times that we are nation which is unfit for democracy and needs to be ruled like China or else this country will disintevrate.

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