अभिजीत के नोबेल के साथ कुछ और भी आया है
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ऐसे में अभिजीत बनर्जी के नोबेल ने हर उस शख़्स को ताक़त दी है जिसे लगता है कि अध्ययन-चिंतन-मनन के मूल में ही मानव मात्र का कल्याण है। सीमाओं से परे मानव मात्र का कल्याण। यही तो हिंदुस्तान की सोच रही, प्राणी मात्र पर दया। फिर हम कब और कैसे इस मूल भाव से भटक कर दिखावे की दुनिया में रमने लगे, यकीन करने लगे ? बुद्ध, महावीर और बापू के देश में सादगी से इस क़दर परहेज़। शुक्र है इस नोबेल ने जैसे श्लथ काया को ऑक्सीजन मुहैया कराई है। बताया है कि ग़रीब के बारे में सोचना ही हर विकसित समाज और देश का पहला कर्त्तव्य है। जब तक आख़िरी व्यक्ति तक सुविधा के साथ जीने का हक़ नहीं पहुँचता किसी को भी चैन से नहीं बैठना चाहिए। सुखद है कि इस नोबेल ने वक्त के पहिये को सही दिशा में मोड़ा है। आज कई मुल्क अभिजीत बनर्जी के आर्थिक सिद्धांतों पर चलकर ग़रीबी कम करने में सफ़ल रहे हैं। हम ही हैं जो ग़रीब और हाशिये पर खड़े व्यक्ति की ओर देखने की बजाय आँख मूंदे पड़े हैं। कभी तो यूं भी लगता है कि हम ख़ुद ग़रीब को लगातार कमज़ोर कर रहे हैं ताकि विपदा आए तो सबसे पहले वही ख़त्म हो । लेकिन इस पुरस्कार ने हमारा खोया भरोसा लौटाया है। यूं अमर्त्य सेन भी 1998 में यह सम्मान हासिल कर चुके हैं लेकिन इस वक़्त हमें कुछ और भी मिला है। अभिजीत के नोबेल के साथ कुछ और भी आया है। हाँ हम भारतीय ख़ुश हैं कि हमारा असली डंका दुनिया में बज रहा है।
फोटो क्रेडिट - https://www.ndtv.com/india-news/abhijeet-banerjee-economics-nobel-prize-2019-winner-went-to-bed-after-he-won-nobel-2019-for-economic-2116749
bahut shukriya dilbagsinh ji
जवाब देंहटाएंलिखते रहें। लिखना जरूरी है।
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