जोकर के पंच हंसाते नहीं दिल पर लगते हैं



joker movie : a still from the film

फ़िल्म जोकर देखी । हॉलीवुड सिनेमा के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं इसलिए सीधे जो देखा उसी पर बात  करूंगी। जोकर के क़िरदार में वॉकीन फीनिक्स की अभिनय कला काफ़ी ऊंचे पायदान पर जाती दिखाई देती है। आँख, नाक, होंठ के साथ  जोकर का समूचा शरीर अभिनय में दक्ष है। यह काबीलियत जोकर को नई लयताल में पेश करती  है। बेशक वह अपने दुखी पलों में सबसे ज़्यादा हंसना और हँसाना चाहता है।  इस कलाकार का नाच भी दर्शक को मुग्ध रखता है। ख़ासकर जो सीढ़ियों पर है , उन्हीं सीढ़ियों पर जिन पर कभी वह थक कर चढ़ता था। ऑर्थर फ्लेक यही नाम है उस ग़रीब नौजवान का जो अपनी बुज़ुर्ग माँ के साथ रहता है। माँ का ध्यान रखता है,वक़्त पर दवा देता है ,खाना खिलाता है और नहलाता भी है। ऑर्थर को कुछ मानसिक बीमारियां है जिसका इलाज सामाजिक संस्था और अस्पताल मिलकर करते हैं। वह मसखरा है और छोटा-मोटा काम भी उसे मिला हुआ। वह साधन संपन्न नहीं फिर भी सदा मुस्कुराते हुए जीवन के महासमर को पार करने का माद्दा रखता है।

एक दृश्य में ऑर्थर बस में सवार है ,एक नन्हीं बच्ची उसकी ओर उदास निगाहों से देख रही है। आदतन वह मुस्कुराता है और अजीब चेहरे बना कर उसे हँसाना चाहता है। बच्ची की माँ आर्थर पर बरसते हुए कहती है तुम क्यों उसे परेशान कर रहे हो। ऑर्थर अचानक ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगता है जो थोड़ा रोने का आभास भी देता है। फिर वह जेब से एक डॉक्टरी पर्ची निकालता है। पर्ची में  लिखा है कि उसे एक बीमारी है जिसकी वजह से  वह ख़ास परिस्थिति में हंसने लगता है। ऑर्थर को अपनी वह नौकरी बहुत पसंद थी  जिसमें वह बच्चों के अस्पताल  जाकर उनका मन बहलाता  है। ऑर्थर के संगी-साथी हैं उनमें से बहुत कम उसे समझते हैं और शेष कोई तवज्जो नहीं देते। लगातार रौंदे जाने पर वह कई बार ख़ुद से पूछता है कि मैं हूँ या नहीं। एक बार जब वह जोकर के भेष में एक तख़्ती  लेकर सड़क पर खड़ा है, कुछ शरारती लड़के उसकी तख्ती छीनकर  दौड़ पड़ते हैं.  वह भी  पीछे दौड़ता है कि तख़्ती बचा सके वर्ना पैसा उसकी तनख़्वाह में से काट लिया जाएगा, बदले में लड़के उसे पीट देते हैं। घायल ऑर्थर को उसका एक साथी बचाव के लिए गन देता है। वह उसे रख लेता है लेकिन एक दिन यही गन उन बीमार बच्चों के सामने गिर जाती है। उसकी कोई सफाई काम नहीं आती। नौकरी चली जाती है। वह लाख कहता है कि यह काम मुझे सबसे ज़्यादा पसंद है। मेट्रो के सफर में तीन लड़के एक लड़की को छेड़ रहे हैं। ऑर्थर को बर्दाश्त नहीं होता वह उन्हें उसी गन से  मार देता है। बात इस रूप में बहस का मुद्दा बन जाती है कि ये ग़रीब  जो जीवन में कुछ नहीं कर पाते वे अमीरों  को मार देना चाहते हैं।
ऑर्थर की हेल्थ काउंसलर उसे बताती है कि उसकी संस्था की फंडिंग बंद हो रही है और  सिस्टम को शायद हम दोनों ही नहीं चाहिए। सात मानसिक रोगों के साथ  किसी तरह इस क्रूर समाज में अपनी बूढ़ी माँ के साथ ज़िन्दगी  को ज़िंदादिली के साथ जीने की कोशिश करने वाला ऑर्थर बचपन में स्कूल नहीं जाना चाहता। माँ समझाती है जो स्कूल नहीं गए तो काम कैसे करोगे ,वह कहता  है मैं स्टैंडप कॉमेडियन बनना चाहता  हूँ। बहरहाल उसके अपने जोक्स हैं जो प्रचलित पंच लाइन के फंडे में फ़िट नहीं बैठते। वह  हर रोज़  उन जोक्स को इस उम्मीद में अपनी  डायरी में लिखाता है  कि कभी उसे भी कोई मंच मिलेगा। मिलता भी है उसका पसंदीदा एंकर उसे बुलाता है जो उसके जवाबों से निराश होकर शो को ख़त्म करना चाहता है लेकिन ऑर्थर उस लाइव शो में एंकर की ही हत्या कर देता है। माँ से जुड़ा रहस्य बीमार ऑर्थर  को और आक्रामक बना देता है।दरअसल  व्यवस्था अपनी रोबोटिक फैक्ट्री में उस शख़्स की ना देखभाल कर पाती है और ना ही बर्दाश्त। हमने ऐसी ही दुनिया बना दी है। क्यों हममें से हरेक काम के उस खांचे में फ़िट बैठे जिसे चंद लोगों ने मिलकर शेष सभी के लिए सही ठहरा दिया है ? हर बच्चा हर शख़्स अलहदा है लेकिन व्यवस्था उसके अलग को स्वीकारने की बजाय उसे बदलना चाहती है। उसे तोड़ देती है। उसे विध्वंसक बनाती है। जोकर इसी व्यवस्था पर  गहरा तंज़ है। इस जोकर के जोक्स के पंच हंसाते नहीं दिल पर लगते हैं। 

ps :वैसे जोकर एक ऐसा पात्र  है जो किसी को दया तो किसी को घृणा के क़ाबिल लग सकता है। मुझे तो हमदर्दी के लायक लगा। जोकर के सीक्वल-प्रीक्वल का कोई अंदाज़ा नहीं। आप बता सकते हैं। 

टिप्पणियाँ

  1. हैरानी हो सकती है लेकिन ऐसा है। जोकर एक ऐसा पात्र है जो किसी को दया तो किसी को घृणा के क़ाबिल लग सकता है। मुझे हमदर्दी के लायक लगा।

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