यह कैसी डेट


अगर किसी जोड़े को डेट के लिए जेल का परिसर केवल इसलिए  मिलता है क्योंकि उनमें से एक  सरकार के ख़िलाफ़ टिप्पणी कर देता है तो यह कोई उदार सरकार का चेहरा तो नहीं कहा जा सकता 

अपनी एक फैसबुक पोस्ट में वह लिखती है, आज वह डेट पर है। उम्र कोई हो, धड़कने इस मोड़ पर एक पाठक की भी थोड़ी व्याकुल हो ही जाती हैं लेकिन वहां पर न तो कोई रूमानी माहौल था और ना कोई वैसा उत्साह जो कभी बीस साल पहले इम्फाल में रहते हुए उसने  महसूस किया था। वह जेल का परिदृश्य था। वह अपने पति से मिलने आई थी। पति किशोरचंद्र वांगकेम पत्रकार हैं और उत्तर पूर्व के राज्य मणिपुर में सलाखों के पीछे डाल दिए गए हैं। अपराध था मणिपुर सरकार की आलोचना का । मुख्यमंत्री बिरेन सिंह मणिपुर में भारतीय जनता पार्टी के पहले मुख्यमंत्री हैं और पत्रकार का गुनाह ये  कि उन्होंने राज्य में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के जन्मोत्सव को मनाए जाने के खिलाफ अपनी पोस्ट में विवादस्पद वीडिओ का उपयोग किया था।  पत्रकार ने मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को केंद्र सरकार की कठपुतली कहते हुए लिखा था, विश्वासघात न करें, मणिपुर के स्वतंत्रता सेनानी का अपमान न करें। मणिपुर के वर्तमान स्वतंत्रता संग्राम का अपमान मत कीजिए। मणिपुर के लोगों का अपमान मत करो।  इसलिए, मैं यह फिर से कह रहा हूं, आप मुख्यमंत्री हैं आइए और मुझे दोबारा गिरफ्तार करें, लेकिन मैं अभी भी आपको कहूंगा, हिंदुत्व की कठपुतली हैं आप।  वहीं इस मामले में पत्रकार की पत्नी इलेंगबम रंजीता ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में बताया कि 26 नवंबर 2018 को उसके पति को 70 हजार के मुचलके पर बेल दे दी गई थी लेकिन अगले  ही दिन उनके घर पर कुछ पुलिस वाले आए और उन्हें जबरन उठा ले गए। 
उसके बाद से पत्रकार देशद्रोह के आरोप में जेल में हैं। इलेंगबम कहती हैं कि मैं मानती हूँ की उन्होंने सख्त शब्दों का प्रयोग किया लेकिन यह देशद्रोह कैसे हो गया। 

सवाल यही है कि क्या हमारे देश में अभिव्यक्ति की आज़ादी केवल इतनी ही है कि आप सरकार कीआलोचना नहीं कर सकते और करते ही देशद्रोही हो जाते हैं। अगर किसी प्रदेश का नागरिक अपनी अपेक्षाएं सरकार को बताए तो इसमें गलत क्या है। अगर आज मेरे प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गेहलोत के लिए मैं कहूं कि गुर्जर आंदोलन को समय रहते ही देख लिए जाना चाहिए था या कि यह उनकी भूल है जो फिर पटरियां उखड़ने के नौबत आई तो क्या मैं देशद्रोही करार दी जा सकती हूँ और जो मेरे मुख्य्मंत्री कोई ऐसा भव्य कार्यक्रम राज्य में करें जिससे राज्य की जनता कम इत्तेफ़ाक़ रखती हो और मैं इस बाबत कुछ लिख दूँ तो राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के तहत गिरफ़्तार की जा सकती हूँ ? यानी बेहतर हो कि मैं मौन रहूंमुझे कोई हक़ नहीं अपनी राय ज़ाहिर करने का? मणिपुर के ये पत्रकार 27 नवंबर से जेल में हैं पत्नी दो नन्हीं बेटियों के साथ कई मोर्चों पर जूझ रही हैं। पांच साल की मासूम पूछती है कि पापा जेल में हैं, क्या जेल अच्छी जगह है? माँ के पास कोई जवाब नहीं होता सिवाय इसके कि वे जल्द आएंगे और ढेर सारे खिलौने लाएंगे। बहरहाल 22 फरवरी इस परिवार के लिए सुखद तारीख हो सकती है जब पत्रकार की अपील सुनी जाएगी। अलग आवाज़ों को सुनने का हुनर सर्वशक्तिशाली सरकारों में नहीं  होगा तो अकेली इलेंगबम रंजीता किससे उम्मीद रखेंगी । यक़ीनन उनकी ऐसी डेट ख़त्म होनी चाहिए वरना हम सब एक ही सुर में विलाप कर रहे होंगे जबकि हमारा गीत है मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा। 






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