नमो रागा के एक से राग
राहुल गाँधी ने रक्षा मंत्री में पहले जेंडर देखा और फिर उसे भी कमतर देखा वर्ना वे ये नहीं कहते कि " चौकीदार लोकसभा में पैर नहीं रख पाया। और एक महिला से कहता है कि निर्मला सीतारमण जी आप मेरी रक्षा कीजिए, मैं अपनी रक्षा नहीं कर पाऊंगा। आपने देखा कि ढाई घंटे महिला रक्षा नहीं कर पाई। '' यह बयान हमारे ही शहर जयपुर में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने किसान रैली को सम्बोधित करते हुए दिया। इसके बाद राष्ट्रीय महिला आयोग ने नोटिस जारी कर राहुल गाँधी से जवाब माँगा है। उन्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए था लेकिन क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह कहना चाहिए था कि वह कांग्रेस की कौनसी विधवा (सोनिया गाँधी ) थी जो रूपए लेती थी ,या फिर यह कि क्या किसी ने 50 करोड़ की गर्लफ्रेंड (शशि थरूर की पत्नी सुनन्दा पुष्कर के लिए तब उनकी शादी नहीं हुई थी ) देखी है या फिर रेणुका चौधरी के लिए यह कहना कि आज बहुत दिनों बाद रामायण सीरियल के बाद ऐसी हंसी सुनने का मौका मिला है।
ज़ाहिर है ये कोई सद्वचन नहीं हैं जो मोदी जी ने कहे थे। आशय रावण की बहन शूर्पणखा की और था। यही राहुलजी भी कर गए। महिला आयोग के पास दो अलग-अलग निगाहें नहीं होनी चाहिए। वाकई हैरानी होती है कि धुर विरोधी विचारधराओं वाली दृष्टि भी महिलाओं के सन्दर्भ में किस कदर एक सी होती है। क्योंकि यह हमारे भीतर तक पैंठी हुई है। हमने उन्हें सम्मान देना सीखा ही नहीं और ना ही उन्हें स्वीकारना सीखा है। बड़े पदों पर तो बिलकुल ही नहीं। राहुल गाँधी ने अगले दिन फिर एक ट्वीट कर कहा कि कहा, ''हमारी सभ्यता में महिलाओं का सम्मान घर से शुरू होता है. डरना बंद कीजिए. मर्दों की तरह बात कीजिए. और मेरे सवाल का जवाब दीजिए. क्या वायुसेना और रक्षा मंत्रालय ने असली रफ़ाल डील को ख़त्म किए जाने का विरोध किया था?'' लगा था कि वे वाक्य विन्यास कुछ बेहतर करेंगे लेकिन फिर वही बात मर्दों की तरह बात कीजिये यानी महिला की तरह बात करना तो कमज़ोर होना है। जाने क्यों इनकी बातों से ये समझ आता है कि दहाड़ना ही सच्चाई का प्रतीक है,शालीनता सादगी और सहज संवाद के कोई मायने नहीं है। ये थिएट्रिकल अंदाज़ राजनीति के मंच पर वो सम्मोहन पैदा नहीं करते। बुरा लगता है जब कोई बड़ा नेता भी उसी आम सोच की नुमाइंदगी करने लगता है जिसे बदले जाने की उम्मीद उससे थी। सार्वजनिक जीवन में हम महिलाएं उनसे इस बुनियादी शिष्टाचार की अपेक्षा करती हैं तो कुछ ज़्यादा तो नहीं करती। इन्हें समझना होगा कि इनकी ऐसी सोच जब भी ज़ाहिर होती है,लिंगभेद की दिशा में चल रही सुधार प्रक्रिया बहुत पीछे चली जाती है।
ps : 9 जनवरी को राहुल गाँधी का जयपुर में दिया शेष सम्बोधन वाकई बेहतरीन था लेकिन हमारे नेताओं को संवेदनशील होना ही होगा खासकर जब वे संसद या सार्वजनिक सभाओं में बोल रहे हों और ये सभी बयान इन्हीं महत्वपूर्ण जगहों से दिए गए हैं। सार्वजानिक सभाओं से ही ये संसद की पवित्र देहरी चढ़ते हैं।
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 11/01/2019 की बुलेटिन, " ५३ वर्षों बाद भी रहस्यों में घिरी लाल बहादुर शास्त्री जी की मृत्यु “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबहुतअच्छा एवम तथ्यात्मक लिखा है।
जवाब देंहटाएंabhaar shivam ji purushotam ji.
जवाब देंहटाएंसम सामायिक गतिविधियों पर गहन दृष्टि
जवाब देंहटाएंShukriya Kusum ji
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