क्यों कोई स्त्री नहीं बनती FTII की अध्यक्ष

  गजेंद्र चौहान विवाद को छोड़कर किसी महिला को एफटीआईआई का अध्यक्ष बना देना चाहिए जो आज तक नहीं बनी। कई हैं जो इस पद के काबिल हैं। युधिष्ठिर ने कभी नहीं सोचा होगा कि उनके नाम पर यूं महाभारत छिड़ेगी। कौरव-पांडव यूं बंट जाएंगे। जाहिर है जो उनके पक्ष में होगा वो उन्हें पांडव लगेगा और उनका विरोधी कौरव। उनके लिहाज से कौरवों की संख्या दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। दरअसल, फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट््यूट जो पुणे में है उनके सभी पूर्व अध्यक्षों का प्रोफाइल बेहद गंभीर और शानदार रहा है। आरके लक्ष्मण (1970-1980) श्याम बेनेगल 1981-83) मृणाल सेन (1984-86) अडूर गोपालकृष्णन 1987-89) महेश भट्ट (1995-97) गिरीश कर्नाड (1999-2001) और यूआर अनंतमूर्ति (2008 -2011  )  जैसे दिग्गजों  के आगे गजेंद्र चौहान का कद छोटा मालूम होता है। एक समय विनोद खन्ना भी अध्यक्ष रहे। बेशक टीवी धारावाहिक रामायण में वे पांडवों के सबसे बड़े भाई युधिष्ठिर की भूमिका में थे लेकिन मुंबई फिल्म उद्योग को यह नाकाफी लग रहा है। वे रहे होंगे युधिष्ठिर की भूमिका में लोकप्रिय लेकिन इंस्टीट्यूट को चलाने के लिए यह काफी नहीं है। ऐसा कहते हुए इंडस्ट्री के महत्वपूर्ण लोग इकट्ठे होकर विरोध करने लगे हैं।
जिस शख्स के उत्तराधिकारी गजेंद्र बने हैं वे सईद अख्तर मिर्जा हैं। फिल्म और टेलीविजन के बेहतरीन पटकथा लेखक और निर्देशक। हममें से कुछ को दूरदर्शन पर प्रसारित धारावाहिक नुक्कड़, और उसके किरदार आज भी याद होंगे। खोपड़ी शराबी, गणपत पुलिसवाला, धनसुख भिखारी को  शायद ही कोई भूला हो। इस धारावाहिक को उन्होंने ही बनाया था। मिर्जा के खाते में अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है, सलीम लंगड़े पर मत रो, मोहन जोशी हाजिर हो और नसीम जैसी बेहतरीन फिल्में हैं। पुणे का यह संस्थान है ही फिल्म और टीवी का मिला-जुला रूप। मिर्जा इस लिहाज से सही चुनाव थे जबकि चौहान की पृष्ठभूमि इसकी तस्दीक नहीं करती। हो सकता है कि चौहान सोच रहे हैं कि सरकार ही फैसला ले और सरकार इस उम्मीद में कि चौहान पीछे हट जाएं। वैसे  इस नियुक्ति को चुनौती देते हुए विद्यार्थी और कलाकार तो सड़क पर आ गए हैं।
संस्थान 1960 में बना है। यह पुणे के प्रभात स्टूडियो के एक हिस्से में था। फिल्मों की पढ़ाई 1961 से शुरू हुई। तब इसके मुखिया प्रिंसिपल होते थे। 1961  तक निर्देशक सिनेमेटोग्राफर जगत मुरारी इसके प्रिंसिपल रहे। १९७१ में टीवी विभाग को दिल्ली से लाकर इसमें जोड़ दिया गया।1974  से ये भारत सरकार के सूचना मंत्रालय के अधीन आया। शुरुआती दो अध्यक्ष ब्यूरोक्रेट्स रहे हैं जो मंत्रालय के सचिव थे। जाहिर है संस्थान का शानदार इतिहास रहा है और दायित्व बड़े। अध्यक्ष को तेरह सदस्यीय परिषद के चुनाव कराने पड़ते हैं। एकेडमिक कोर्सेस की जिम्मेदारी भी अध्यक्ष की होती है। संस्थान के निदेशक का चयन भी अध्यक्ष ही करता है। पुणे ने जया बच्चन, नसीरुद्दीन शाह, स्मिता पाटिल, विधु विनोद चौपड़ा, राजकुमार हीरानी, शबाना आजमी, ओम पुरी, सतीश शाह जैसे बेहतरीन कलाकार उद्योग को दिए हैं।
कमाल ये है कि संस्थान के अध्यक्षों की लंबी फेहरिस्त में एक भी महिला शामिल नहीं है। जबकि भारतीय सिनेमा और टेलिविजन से स्त्री को निकाल दिया जाए तो वह लकवाग्रस्त ही नजर आएगा। चौहान से बड़ी विडंबना यह है कि अब तक किसी भी स्त्री को इस काबिल नहीं समझा गया जबकि केंद्रीय फिल्म सेंसर बोर्ड में जरूर लीला सैमसन, शर्मिला टैगोर जैसे नाम रहे हैं। चौहान को हटाने की बजाय किसी महिला अध्यक्ष को लाने की बात होनी चाहिए। सई परांजपे, कल्पना लाजमी, मीरा नायर, शबाना आजमी जैसे नामों पर विचार हो सकता है। इनका सिनेमा इनके व्यक्तित्व को बयां करता है। बॉलीवुड मेल डॉमिनेटेड सोसायटी हो सकता है लेकिन पुणे का संस्थान नहीं। भारत सरकार का चयन भी नहीं।

टिप्पणियाँ

  1. वर्षा जी, आपने मुद्दा तो बहुत सामयिक उठाया है, लेकिन माफ़ कीजिए, मुझे नहीं लगता कि आपका सुझाव मान लेने पर भी हालात में कोई सकारात्मक बदलाव आ जाएगा. हम सब जानते हैं कि इस सरकार का अपना एक ख़ास एजेण्डा है, और उसे आगे बढ़ाना उसकी सर्वोच्च प्राथमिकता है. इसलिए उन्हें तो हर पद पर ऐसे बन्दे या बन्दी को बिठाना है जो इस एजेण्डा को लागू कर सके. बाकी तमाम बातें इनके लिए गौण हैं. अव्वल तो ये लोग गजेन्द्र चौहान की नियुक्ति को वापस लेंगे नहीं, लेकिन मान लिया जाए कि सरकार को सदबुद्धि आ जाएगी और वो गजेन्द्र चौहान को वापस बुला लेगी, और उसके बाद आपके सुझाव को मानते हुए किसी महिला को इस पद पर नियुक्त भी कर देगी. लेकिन आपने यह कैसे मान लिया कि वे लोग ऐसी किसी महिला को इस पद पर नियुक्त करेंगे जो इस पद के उपयुक्त होगी? इनके भण्डार में जो किसम किसम के जीव जंतु भरे पड़े हैं उनमें से जे ढूंढ ढांढ कर किसी ऐसी महिला को ले आएंगे, जिसका नाम आपने कभी नहीं सुना होगा. जिसक फिल्मों से दूर-दूर तक कोई ताल्लुक नहीं होगा. तब क्या कर लेंगी आप? और यह बात मैं हवा में नहीं कर रहा हूं. अब तक ये लोग जो करते रहे हैं, उसी को याद करके कह रहा हूं.

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  2. पहले तो यहाँ लिखने के लिए आभार क्योंकि ब्लॉग अब सूने-सूने रहने लगे हैं। आपकी बात से इत्तेफाक रखते हुए यही कहना चाहूंगी कि जो पूर्ववर्ती अध्यक्षों की सूची मैंने यहाँ दी है उसका यही मकसद है कि किसी भी टॉम, डिक ,एंड हेरी के लिए यह पद नहीं है। वैसे आपका शक सही है कि कैसे मान लिया कि वे लोग ऐसी किसी महिला को इस पद पर नियुक्त करेंगे जो इस पद के उपयुक्त होगी?

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