महाभारत में कौन है चाचा कलाम को प्रिय
मेरी पीढ़ी ने महात्मा गांधी को नहीं देखा, शास्त्री को नहीं देखा केवल सुना था कि उनके एक आह्वान पर देश उस दिशा में चल देता था। जिन्हें देखा वे थे डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम। उनकी बात मानने का मन करता था। उनसे वादे करने का जी चाहता था। उनके साथ शपथ लेने को दिल करता था। इस साल जब जनवरी माह में जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में पधारे तो वहां का जर्रा-जर्रा कलाम-कलाम पुकार रहा था। सारे रास्ते वहीँ जा रहे थे जहाँ वे बोलने वाले थे। हजारों बच्चों ने उनके साथ शपथ ली कि वे जिसे भी वोट देंगे उससे पहले उसके काम की गणना करेंगे। उन्होंने वहां मौजूद सबसे दोहराने के लिए कहा कि यदि दिल में सुंदर चरित्र बसता है तो घर में सौहार्द्र होता है और जो घर में साौहाद्र्र होता है तो देश व्यवस्थित होता है और जब देश व्यवस्थित होता है तो दुनिया में शांति स्थापित होती है।
लेकिन हमने ये क्या किया देश के सबसे कर्मठ व्यक्ति के देह त्यागते ही स्कूलों में छुट्टी घोषित कर दी। सोमवार रात ही बच्चों के स्कू ल से मोबाइल पर मैसेज आ गया कि पूर्व राष्ट्रपति के दुखद निधन पर स्कूल में अगले दिन अवकाश रहेगा और परीक्षा उसके अगले दिन होगी जबकि बच्चों के कलाम चाचा कहते थे कि मेरी मृत्यु पर अवकाश घोषित मत करना। अगर तुम मुझसे प्यार करते हो तो एक दिन ज्यादा काम करना। हमारे विद्यालयों ने जाहिर कर दिया है कि वेे केवल शख्स का सम्मान करते हैं शख्सियत का नहीं।
जयपुर में 'विजन २०-२०' के बारे में बात करते हुए उन्होंने पूछा - ''बच्चो क्या तुम बता सकते हो कि महाभारत का मेरा प्रिय पात्र कौनसा है? बच्चों ने कहा अर्जुन फिर युधिष्ठिर फिर भीम...कलाम चाचा नो-नो कहते गए और फिर बोले विदुर क्योंकि वे निर्भय, निष्पक्ष और निर्लिप्त थे। उन्होंने बच्चों से बुलवाया कि अगर हर भारतीय एक बेहतर नागरिक होगा तो दुनिया को एक अरब बेहतर नागरिक मिलेंगे। उन्होंने जोर दिया कि शिक्षा अगर रोजगारोन्मुख होगी तो 2020 तक हर भारतीय के पास काम होगा।
कलाम साहब की रुखसती से हर आंख नम और सर सजदे में है। जैसे हर एक को तलाश है एक ऐसे कंधे कि जहां आंखें बरस सकें। वैसे ऐसा प्रस्थान किसी का भी ख्वाब हो सकता है। यह महादेशभक्त का महाप्रयाण है। जिंदगी भर जिस काम को लक्ष्य मानकर पूरा करने में लगे रहे उसी के साथ इस लिविंग प्लानेट यानी पृथ्वी को अलविदा कहा। यह क्या कम है कि अपने महाप्रयाण से उन्होंने आतंकवादियों की गोलियों की भयावह गूंज को कम कर दिया। सुबह से भारत जिस दहशत को जी रहा था, देर शाम इस पर कलाम साहब का नजरिया छाने लगा। आतंक हार गया। देशभक्ति, मानवता की जीत हुई। आखों की नमी में शहादत के रंग इंद्रधनुष की तरह नजर आने लगे। बरगद-सी सोच ऐसा ही आभा-मंडल रचती है। हैरान हो सकते हैं कि कोई इतनों का इतना प्रिय कैसे हो सकता है। इतने सादा अंदाज में रहने वाली असाधारण आत्मा को कोटि-कोटि प्रणाम।
aapka shukriya yashodaji
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 30-07-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2052 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
कोटि-कोटि प्रणाम
जवाब देंहटाएंहैरान हो सकते हैं कि कोई इतनों का इतना प्रिय कैसे हो सकता है। इतने सादा अंदाज में रहने वाली असाधारण आत्मा को कोटि-कोटि प्रणाम।
जवाब देंहटाएंवाकई कलाम हर दिल अजीज थे..रहेंगे..