कितने संविधान हैं हमारे देश के ?
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वह गाँव जहाँ लड़की के साथ ऐसा हुआ |
उस बीस साल की लड़की के साथ हुई हैवानियत की कल्पना की जिए। एक के बाद एक वे तेरह पुरुष जिनमें से किसी को वह भाई तो किसी को चाचा कहती थी, बलात्कार करते रहे। उस वक्त वह उनके सामने एक इनसान नहीं बल्कि उपभोग की सामग्री थी। तेरह तो एक आंकड़ा बताया जा रहा है वह लड़की तो कहती है मुझे नहीं मालूम उस रात मेरे साथ कितनी बार ऐसा हुआ।
पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के राजारामपुर-सबुलपुर गांव की आदिवासी लड़की ने एक गैर-आदिवासी लड़के से प्रेम किया था। भेद खुल गया। एक तरह की पंचायत सालिशि (मायने बिचौलिये से मिलते-जुलते हैं) सभा को यह गवारा नहीं था। उन्होंने दंडस्वरूप पच्चीस हजार रुपए लड़के को और 25 हजार रुपए लड़की के परिवार को जमा कराने का हुक्म सुना दिया। लड़के ने निर्धारित धन जमा करा दिया। वह पहले से शादीशुदा था और वहां से भाग गया। लडकी का परिवार यह राशि नहीं जुटा पाया तो पंचायत ने यह खौफनाक फरमान जारी क्र दिया - टूट पड़ो लड़की पर। एेसा करो उसके साथ कि वह प्रेम का नाम भी भूल जाए। क्या एेसे ही इंसाफ के साथ यह पंच व्यवस्था पूरे देश में चलती आई है। हमने तो मुंशी प्रेमचंद की कहानी पंच परमेश्वर में कुछ और ही पढ़ा था। पढ़कर लगा था कि पंचों में परमेश्वर यानी खुदा बसता है, जो इस आसन पर बैठते ही रूह और जुबां पर आ बैठता है, लेकिन ये कैसे पंच हैं? और ये पंच स्त्रियों के मामले में इतने अनैतिक कैसे हो जाते हैं। हरियाणा में खाप पंचायत झूठे मान-सम्मान के नाम पर लड़की-लड़के दोनों को मरवाकर सीना तानती है। तमिलनाडु में कट्टा पंचायत है, जिनका राष्ट्र के संविधान से कोई लेना-देना नहीं। आखिर क्यों चलने दी जा रही हैं यह समानांतर व्यवस्था? एक भारत में कितना भारत बसा रखे हैं हमने? क्या हम एक गणतांत्रिक देश नहीं हैं?
स्त्रियों को नग्न क र घुमाना, डायन बता देना यह भी एेसी ही पंचायती व्यवस्थओं के हथकंडे हैं, वरना जो संविधान स्त्री के हक में इतना संवेदनशील है, वहां क्यों कर अब त· अमानवीय फरमान सुनाए जाते रहे हैं? मोबाइल मत दो, जीन्स मत पहनाओ, नूडल्स-पीत्जा मत खाओ जैसे हास्यास्पद फरमानों का तो कोई अंत ही नहीं। ये नाता प्रथा क्या है? आज भी पूरे रुतबे साथ जारी हैं। एक स्त्री जिसका पति नहीं रहा हो या वो ब्याह के बाद छोड़ दी गई हो उसे नाते दे देने की प्रथा है। जाति का कोई भी बंदा उसके मां-बाप या ससुराल पक्ष को थोड़ी-सी रकम दकर उसे 'खरीद सकता है। वह उसे ब्याहता का दर्जा नहीं देता। वह पहले से विवाहित भी हो सकता है। जाहिर है, इन मामलों में विवाद होने पर मसला पुलिस के पास नहीं जाता, पंचायत में जाता है। पंच परमेश्वरकी कृपा नहीं हुई तो वे ऊल-जलूल फैसला अपने पसंदीदा प्रार्थी के हक में सुना देते हैं। पुलिस में जाने की भूल अगर किसी ने की तो जात-बिरादरी से बाहर निकाल दिया जाता है।
साल 2011 में सर्वोच्च न्यायालय ने इन्हें कंगारू कोर्ट का नाम देते हुए पूरी तरह से असंवैधानिक और गैरकानूनी बताया था। पश्चिम बंगाल की महिला एवं बाल विकास मंत्री शशि पांजा ने भी बीरभूम घटना पर कहा है कि राज्य में दो व्यवस्थाएं कैसे चल सकती हैं। बहरहाल, तेरह कथित आरोपियों को हिरासत में लेकर सात दिन की पुलिस हिरासत में ले लिया गया है। सर्वोच्च न्यायालय ने स्वयं इस जघन्य अपराध में पहल करते हुए बीरभूम डीएम को एक सप्ताह के भीतर रिपोर्ट देने के निर्देश दिए हैं। हफ्ता शुक्र वार को पूरा होगा।
सवाल उठता है कि आखिर क्यों इतने बरसों में इन खाप पंचायतों पर कोई अंगुली नहीं उठी। आजादी से पहले राजाओं- बादशाहों की ग्रामीण संवाद की कोई भी परंपरा रही हो आजादी के बाद क्यों कर इसे बरदाश्त किया जाता रहा है? दरअसल, समाज के कथित नुमाइंदे बने इन ठेकेदारों का दबदबा और था जो अब भी भोली और अबोध जनता पर कायम है। इनकी समानांतर सत्ता के खिलाफ कोई नहीं सोच सकता क्यकि इनके पास बिरादरी से बाहर ·कर देने वाला तुरुप का इक्का हमेशा सुरक्षित रहता है। बिरादरी से बाहर यानी शादी-ब्याह और मौत-मय्यत में उठना-बैठना बंद। इस भय के चलते ·भी नाफरमानी नहीं होती। वोट के दिनों में ये जिसेके ·हें उस पार्टी को वोट देना होता है। राजनैतिक दलों के लिए इससे बेहतर क्या होगा कि एक को पटाने से एकमुश्त वोट मिलते हों। सब राजनैतिक दल बड़ी बातें करते हैं, कोई नहीं कहता कि हमारा केवल ए·एक संविधान है जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ था, इसके अलावा हम कि सी को नहीं मानते। कोई नहीं कहता कि स्त्री की अस्मिता इस तरह रौंदने वाले तंत्र के हम घोर विरोधी हैं, कोई नहीं। किसी के घोषणा पत्र में ऐसी कोई बात नहीं है।
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन बीटिंग द रिट्रीट २०१४ ऑन ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
पता नहीं कब सबको एकल संविधान का सुख मिलेगा?
जवाब देंहटाएंइन दर्दनाक घटनाओं से कब छुट्टी मिलेगी
जवाब देंहटाएं____________________
ब्लॉग बुलेटिन से यहाँ पहुँचना भा गया :)
कोई नही कहता कि स्त्री की अस्मिता पर चोट करने वाली इन पंचायतों के हम घोर विरोधी हैं.
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