त हल्का
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जयपुर से प्रकाशित डेली न्यूज़ की साप्ताहिक पत्रिका खुशबू![]() |
इस घटना से पहले
तक तरुण तेजपाल धारदार ब्रितानी अंग्रेजी में अपनी बात रखने वाले शानदार
वक्ता और लेखक थे। एेसा वक्ता, जो बात कहते हुए कभी-कभार पंजाबी धुनों पर सवार होकर थोड़ा मनमौजी हो जाता था। पचास साल के इस लेखक-पत्रकार की पकड़ यदि भारत के एलीट क्लास पर थी तो उतना ही दखल कमजोर तबके पर भी था। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में कई बार इस चोटीवाले, ऊंचे कद के गोरे चिट्टे शख्स को सुना। जिस किताब के अंश उन्होंने यहां पढे़, उसमें एक किशोर उम्र का बालक था और था असहज करता टेक्स्ट।
बहरहाल, इस गोरे चिट्टे शख्स पर आज दागदार इल्जाम लगे हैं। शायद इल्जाम कहना गलत होगा यह तो सच्चाई है, क्योंकि स्वयं तेजपाल इसे स्वीकार चुके हैं और अपनी प्रबंध संपादक और पत्रकार लड़की दोनों से माफी मांग चुके हैं और स्वयंभू न्यायाधीश बनकर खुद को छह महीने तक पद से अलग रखने का फैसला भी कर चुके हैं। .... और फिर ज्यों ही पता चलता है कि फैसला भारतीय क़ानून के मुताबिक होगा, तो वे भी किसी आदतन अपराधी की तरह ही व्यवहार करने लगते हैं। ये वही तेजपाल हैं, जिन्होंने तहलका को वो मुकाम दिया जहां तक पहुंचने का ख्वाब, जोश-ओ-जुनून से भरा हुआ हर पत्रकार देखता है। तेजपाल की अगर क़ानून में इतनी भी आस्था नहीं तो कैसे उम्मीद की जा सकती है कि तहलका ने जो भी स्टिंग्स किए, उसमें अपराधियों पर क़ानूनी प्रक्रिया चलवाने की मंशा रही होगी। जब खुद पर बीतती है, तो इनसान यूं ही पलटता है?
तहलका कि प्रबंध संपादक शोमा चौधरी कि भूमिका कहीं भी ऐसी नहीं थी कि वे किसी आम नियोक्ता से अलग नज़र आयें। यही होता है वर्क प्लेस पर हरकतें होती हैं और फिर यही कोशिश कि लड़की किसी तरह से संस्थान ही छोड़ कर चली जाए । वही शोमा जो महिला मुद्दों की पैरवी करते हुए सरकार हिला देने का माद्दा रखती हैं, इस मुद्दे पर बचाव की मुद्रा में दिखीं। उनसे नहीं कहा गया कि जो भी हो हम मामले की पूरी तहकीकात करेंगे। उल्टे उन्होंने तेजपाल से कहा कि आपने पत्रकार को जो ईमेल लिखा है उसकी भाषा को थोड़ा विनम्र और माफीनामा जैसी बनाइए। उनकी कोशिश थी कि मामला इसी लिखा-पढ़ी के बीच सुलझ जाए, लेकिन गुनाह बड़ा था। तेजपाल ने सात और आठ नवंबर को लगातार दो बार घृणित हरकत की । पत्रकार लड़की ने इस घटना का पूरा ब्यौरा गोवा में मौजूद अपने तीन सहकर्मियों को भी दिया था। सुखद है कि इन तीनों ने अपने बयान गोवा पुलिस को दर्ज करा दिए हैं और वे तीनों इस कदर व्यथित थे कि अपनी नौकरियों से इस्तीफा देने को भी तैयार थे। गौरतलब है कि सोलह दिसंबर २०१२ को दिल्ली की एक बस में हुआ सामूहिक दुष्कर्म और फिर अगस्त २०१3 में मुंबई के शक्तिमिल्स कंपाउंड में पत्रकार के साथ हुए एक और सामूहिक दुष्कर्म के बाद गोवा की इस घटना में भी पीडि़ताओं के साथी सहकर्मियों का रवैया बहुत ही संवेदनशील रहा है।
माफीनामा जारी कर तेजपाल घिर चुके हैं। दिल्ली की घटना के बाद सीआरपीसी में किए गए संशोधन के मुताबिक धारा ३०९ के तहत छह महीने में इस ट्रायल को पूरा करना होगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह छह महीने कार्यस्थल पर हो रही छेड़छाड़ के लिहाज से टर्निंग पॉइंट साबित हों।
पूर्व तहलका पत्रकार ने यह भी कहा था कि तेजपाल के रिश्तेदार उसके परिवार पर भावनात्मक दबाव बना रहे हैं। यह दुखद है कि अपनी सहेली के पापा को किसी कठघरे में खड़ा करना पडे़, अपने पिता के मित्र को इस रूप में देखना पडे़। लड़कियों ने करिअर की राह में जरूर इरादे बुलंद किए हैं लेकिन आत्मसम्मान ताक पर नहीं रखा है। वे बोल रही हैं। अन्याय के खिलाफ इंसाफ चाहती हैं और ये भी चाहती हैं कि उनका शुभचिंतक बनने की आड़ में कोई ई उनका देहशोषण नहीं कर सकता। अब जब लड़कियां अपनी बात न्यायिक संस्था तक पहुंचाने का साहस दिखा रही हैं इंसाफ की राह में शामिल संस्थाओं को भी संवेदनशील होना पडेग़ा। यहां आज भी सारा दारोमदार पीडि़ता पर है कि वह साबित करे कि उसके साथ दुष्कर्म या दुव्र्यवहार हुआ है। न्याय पाने की इस कवायद में अपने जख्म दिखाते-दिखाते वह इतनी घायल हो जाती है कि खुद ही हार जाती है। एेसी हर शिकायत की संजीदगी से लेने की पहल पहले संस्थान और फिर पुलिस को करनी होगी। यही उम्मीद कि केवल तहलका न मचें गम्भीर तहकीकात भी हो कि काम पर निकली ये लड़कियां गर सभी मसलों पर आपसे संवाद कर रही हैं तो इसका कतई ये अर्थ नहीं कि वे आपके साथ आपके इरादों में शरीक हो। इस मामले में भी तेजपाल ने आड़ ली है कि हमारी चर्चा सेक्स और डिजायर जैसे मामलों पर हो रही थी जिसका पत्रकार लड़की ने यह कहकर विरोध किया कि यह चर्चा आपने शुरू की थी क्योंकि आप यही चाहते थे।
बहरहाल, इस गोरे चिट्टे शख्स पर आज दागदार इल्जाम लगे हैं। शायद इल्जाम कहना गलत होगा यह तो सच्चाई है, क्योंकि स्वयं तेजपाल इसे स्वीकार चुके हैं और अपनी प्रबंध संपादक और पत्रकार लड़की दोनों से माफी मांग चुके हैं और स्वयंभू न्यायाधीश बनकर खुद को छह महीने तक पद से अलग रखने का फैसला भी कर चुके हैं। .... और फिर ज्यों ही पता चलता है कि फैसला भारतीय क़ानून के मुताबिक होगा, तो वे भी किसी आदतन अपराधी की तरह ही व्यवहार करने लगते हैं। ये वही तेजपाल हैं, जिन्होंने तहलका को वो मुकाम दिया जहां तक पहुंचने का ख्वाब, जोश-ओ-जुनून से भरा हुआ हर पत्रकार देखता है। तेजपाल की अगर क़ानून में इतनी भी आस्था नहीं तो कैसे उम्मीद की जा सकती है कि तहलका ने जो भी स्टिंग्स किए, उसमें अपराधियों पर क़ानूनी प्रक्रिया चलवाने की मंशा रही होगी। जब खुद पर बीतती है, तो इनसान यूं ही पलटता है?
तहलका कि प्रबंध संपादक शोमा चौधरी कि भूमिका कहीं भी ऐसी नहीं थी कि वे किसी आम नियोक्ता से अलग नज़र आयें। यही होता है वर्क प्लेस पर हरकतें होती हैं और फिर यही कोशिश कि लड़की किसी तरह से संस्थान ही छोड़ कर चली जाए । वही शोमा जो महिला मुद्दों की पैरवी करते हुए सरकार हिला देने का माद्दा रखती हैं, इस मुद्दे पर बचाव की मुद्रा में दिखीं। उनसे नहीं कहा गया कि जो भी हो हम मामले की पूरी तहकीकात करेंगे। उल्टे उन्होंने तेजपाल से कहा कि आपने पत्रकार को जो ईमेल लिखा है उसकी भाषा को थोड़ा विनम्र और माफीनामा जैसी बनाइए। उनकी कोशिश थी कि मामला इसी लिखा-पढ़ी के बीच सुलझ जाए, लेकिन गुनाह बड़ा था। तेजपाल ने सात और आठ नवंबर को लगातार दो बार घृणित हरकत की । पत्रकार लड़की ने इस घटना का पूरा ब्यौरा गोवा में मौजूद अपने तीन सहकर्मियों को भी दिया था। सुखद है कि इन तीनों ने अपने बयान गोवा पुलिस को दर्ज करा दिए हैं और वे तीनों इस कदर व्यथित थे कि अपनी नौकरियों से इस्तीफा देने को भी तैयार थे। गौरतलब है कि सोलह दिसंबर २०१२ को दिल्ली की एक बस में हुआ सामूहिक दुष्कर्म और फिर अगस्त २०१3 में मुंबई के शक्तिमिल्स कंपाउंड में पत्रकार के साथ हुए एक और सामूहिक दुष्कर्म के बाद गोवा की इस घटना में भी पीडि़ताओं के साथी सहकर्मियों का रवैया बहुत ही संवेदनशील रहा है।
माफीनामा जारी कर तेजपाल घिर चुके हैं। दिल्ली की घटना के बाद सीआरपीसी में किए गए संशोधन के मुताबिक धारा ३०९ के तहत छह महीने में इस ट्रायल को पूरा करना होगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह छह महीने कार्यस्थल पर हो रही छेड़छाड़ के लिहाज से टर्निंग पॉइंट साबित हों।
पूर्व तहलका पत्रकार ने यह भी कहा था कि तेजपाल के रिश्तेदार उसके परिवार पर भावनात्मक दबाव बना रहे हैं। यह दुखद है कि अपनी सहेली के पापा को किसी कठघरे में खड़ा करना पडे़, अपने पिता के मित्र को इस रूप में देखना पडे़। लड़कियों ने करिअर की राह में जरूर इरादे बुलंद किए हैं लेकिन आत्मसम्मान ताक पर नहीं रखा है। वे बोल रही हैं। अन्याय के खिलाफ इंसाफ चाहती हैं और ये भी चाहती हैं कि उनका शुभचिंतक बनने की आड़ में कोई ई उनका देहशोषण नहीं कर सकता। अब जब लड़कियां अपनी बात न्यायिक संस्था तक पहुंचाने का साहस दिखा रही हैं इंसाफ की राह में शामिल संस्थाओं को भी संवेदनशील होना पडेग़ा। यहां आज भी सारा दारोमदार पीडि़ता पर है कि वह साबित करे कि उसके साथ दुष्कर्म या दुव्र्यवहार हुआ है। न्याय पाने की इस कवायद में अपने जख्म दिखाते-दिखाते वह इतनी घायल हो जाती है कि खुद ही हार जाती है। एेसी हर शिकायत की संजीदगी से लेने की पहल पहले संस्थान और फिर पुलिस को करनी होगी। यही उम्मीद कि केवल तहलका न मचें गम्भीर तहकीकात भी हो कि काम पर निकली ये लड़कियां गर सभी मसलों पर आपसे संवाद कर रही हैं तो इसका कतई ये अर्थ नहीं कि वे आपके साथ आपके इरादों में शरीक हो। इस मामले में भी तेजपाल ने आड़ ली है कि हमारी चर्चा सेक्स और डिजायर जैसे मामलों पर हो रही थी जिसका पत्रकार लड़की ने यह कहकर विरोध किया कि यह चर्चा आपने शुरू की थी क्योंकि आप यही चाहते थे।
16 Dec ke baad kam se kam ladkiyon me himmat aa gayee is tarh ke anyay ke khilaf awaz uthane ki ..apni desire ko stri par laadane valon ke din ab lad gaye ..salaam hai un patrakar sathiyon ko jinhone apne carrier ki parvah kiye bina us ladaki ka sath diya ..
जवाब देंहटाएंसमाज की दुख देने वाली परतें एक एक कर के उतरती जाती हैं।
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