शब्दों के उत्सव के बाद उत्सव के शब्द

शहर लिटरेचर फेस्टिवल की
गिरफ्त से बाहर आ चुका है। मौसम
की तरह कुछ मेहमानों के आगमन
की भी आदत शहर को हो गई है।
वे वही कविताएं गुनगुनाते हैं और
उन्हीं शब्दों  को दोहरा कर चले जाते
हैं। किताब की जमीं पर खडे़ इस
उत्सव में विवाद के कंकर तो खूब
थे लेकिन मन को सुकून पहुंचा
सके, वैसा हरापन कम था। शब्द  थे
लेकिन उनसे हरितिमा गायब थी।
नंदी दलितों को भ्रष्ट कह गए, तो
नावरिया गांवों को ध्वस्त करने का
बाण चला गए। कौन समझे कि
शहर जिंदा ही गांव के दम पर हैं और आपके ठाठ को जिंदा रखनेवाले कौन थे .आप इस कदर जातिवादी कैसे हो सकते हैं .  बहरहाल, जयपुर में साहित्य उत्सव
भले ही अलविदा कह चुका है
लेकिन हम  गांधी
साहित्य के आगोश में है। बापू के
लफ़्ज़ों से गुजरते हुए महसूस होता
है जैसे हम सरल होते जा रहे हैं।
दिमाग की जटिलता पर दिल की
सरलता असर करती जा रही है।
दरअसल, सच्चे हो जाने का अर्थ
जोर-जोर से सच बोलते जाना नहीं,
बल्कि अपने जीवन को इतना
पारदर्शी कर देना है कि जो भी आप
कर रहे हैं या कह रहे हैं उसमें
बनावट हो  ही नहीं। गांधी ने अपने
जीवन को वैसे ही आर-पार रखा
है। बेहद  सादा।
अपने सर्वोदयी विचारों का
श्रेय भी उन्होंने एक किताब को दिया है।
दक्षिण अफ्रीका में हैनरी पोलाक जो
क्रिटिक पत्रिका में उप-संपादक थे,
उनके मित्र बने। पोलाक पहली बार
महामारी पर छपे उनके पत्र को
पढऩे के बाद उनसे मिलने आए थे।
एक बार पोलाक ने उन्हें जॉन रस्किन
की एक किताब ' अंटु दिस लास्ट'
पढऩे को दी। गांधी जी इस किताब
से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने
उसकी बातों को अमल में लाने की
ठान ली और गुजराती में उसका
अनुवाद सर्वोदय के नाम से किया।
जिन तीन सिद्धांतों से वे सर्वाधिक
प्रभावित हुए, वे थे
१. सबकी भलाई में हमारी
भलाई है।
२. वकील हो या नाई, दोनों के
काम की कीमत एक सी
होनी चाहिए,क्योंकि रोजीरोटी
का अधिकार सबको
समान है।
३. सादा मेहनत मजदूरी का या
किसान का जीवन ही सच्चा
जीवन है।
क्षणभर के लिए हम तिलमिला
सकते हैं कि सफेद कॉलर और
मेहनतकश का मेहनताना एक सा
कैसे हो सकता है, लेकिन गौर
करने पर लगता है कि आज जो दो
दुनिया बन गई हैं वह इसी का
नतीजा है इस खाई के चलते ही
कहीं भुखमरी है, तो कहीं भोजन
सिर्फ जाया हो रहा  है।
गांधी के मित्र पोलाक पर लौटते हैं।
गुड मैन गांधी पोलाक के बेस्ट मैन
थे। दरअसल, यहूदी पोलाक को
दक्षिण अफ्रीका की क्रिश्चियन
लड़की मिली से प्रेम हो गया था।
मिली भी पसंद करती थी, लेकिन
रिश्ता बन पाना इतना आसान नहीं
था। गांधी ने न केवल मिली को
चिट्ठी  लिखी, बल्कि पोलाक की ओर
से बेस्ट मैन भी बने। बेस्ट मैन
ईसाई शादियों में बेहद अहम होता
है। पहले तो चर्च में उनका नाम ही
रजिस्टर्ड नहीं हो रहा था। गांधी ने
यहां भी एक जज से गुजारिश कर
शादी की रस्म को आगे बढ़ाया।
गुड मैन गांधी की बेस्ट मैन की
यह पहचान उनकी दोस्ती में इतनी
प्रगाढ़ता लाई कि पोलाक बाद में
हिंदुस्तान भी आए।
सादगी और सरलता के बारे में
गांधी जी एक जगह लिखते हैं,
जैसे-जैसे मेरे जीवन में सादगी
बढ़ती गई, वैसे-वैसे रोगों के लिए
दवा लेने में भी मेरी अरुचि बढ़ती
गई। मुझे कब्ज़  रहता था और सिर
भी दुखता था। मैनचेस्टर में 'नो
ब्रेकफास्ट एसोसिएशन था । मुझे
लगा मैं भी सुबह का नाश्ता छोड़ दूं
तो शायद..... और सचमुच कुछ ही
दिनों में सिरदर्द मिट गया। मैं दवा
की बजाय पानी और मिट्टी के घरेलू
उपचार में यकीन करता था।
बहरहाल, आज की खुशबू गांधी के
शब्दों से महक रही है। गांधी
साहित्य सादा जीवन उच्च विचार का
मार्ग प्रशस्त करता है, जटिल बनती
जा रही दुनिया में सादगी का संदेश
देता है। सादगी जो मानवता का
बुनियादी मंत्र है।

टिप्पणियाँ

  1. आलेख की अंतिम पंक्तियाँ साहित्य की गरिमामयी , मानवीय परिभाषा है .....

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  2. सरलता से ही देश को जीत लिया बापू ने..

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  3. काफी दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आ पाया...जयपुर लिटरेचर फेस्टीवल को लेकर जो जानकारी और दृष्टिकोण आपके इस आलेख से मिला उसके लिए धन्यवाद।

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