इतवार की वह शाम

a true calling : still from play, image by madan mohan marwal
 क्योंकि नाटक अब भी दिल की आवाज़ है, किसी कमिटमेंट की पैदाईश। यह सिनेमा की तरह सस्ता और बाजारू नहीं हुआ है . प्रतिबद्धता झलकती है  यहाँ . यहाँ टिकने  के लिए आपको कुछ एक्स्ट्रा होना पड़ता है। कई मायनों में more. रंगकर्म को समर्पित वह शाम अद्भुत थी जब विजयदान  देथा 'बिज्जी' की कहानी पर अ ट्रू कॉलिंग मंचित हुआ।
इतवार की वह शाम इस मायने में भी अनूठी थी कि भारत रंग महोत्सव के तहत जयपुर के जवाहर कला केंद्र में एक नाटक खेला गया जो हमारे लोक कथाकार विजयदान देथा की  कहानी पर आधारित था। अ ट्रू कॉलिंग के नाम से अनुदित इस नाटक को खेलने वाले कलाकार और निर्देशक ताइवानी प्रभाव में थे और भाषा थी मणिपुरी और चीनी। भाषा का कोई प्रतिरोध लंबा नहीं टिक पाया क्योंकि कथा हमारी अपनी थी और उसका प्रवाह बेहद जादुई।

कहानियां हम सबको लुभाती हैं और यह कहानी थी एक अभिनेता की। वह माहिर है अपने हुनर में। कभी पंछी बन पूरे इलाके में गूंज जाता है तो कभी शेर बनकर विनाश का चित्र खींच देता है। उसकी आस्था अपने काम में है। एक बार तो वह भिक्षुक का ऐसा जीवंत अभिनय करता है कि एक व्यापारी उसे अपनी समूची धन-दौलत देकर शांति की तलाश में निकल जाना चाहता है।

एक्टर की यह ख्याति वहां के राजा तक पहुंचती है। अपने हर रूप में जान डाल देने वाले बहरुपिए से राजा कहता है कि कुछ ऐसा करो जिससे मेरी तबियत प्रसन्न हो जाए। राजा उसे सुझाता है कि तुम शैतान बनो। मैं इस महल को धूजते हुए देखना चाहता हूं। एक्टर शैतान के  किरदार में यूं प्रवेश करता है कि राजा हैरान हो जाता है। सियासत का षड़यंत्र कहिए या फिर कलाकार का कौशल इस बीच राजा के शराबी भाई की हत्या हो जाती है और वह सारा इलजाम  कलाकार पर मढ़ देता है। मुंहमांगा इनाम देने की घोषणा करने वाला राजा उसे हत्यारा ठहरा देता है।रजा उसे मरने का   हुक्म देता है
  मरने का जो रास्ता राजा उसे सुझाता है उसमें उसे एक स्त्री का रूप धरना है। ऐसी स्त्री जो अपने पति के प्यार में डूबी हुई है और उसकी मौत का दुख सहन नहीं कर पा रही है। राजा हुकुम देता है कि अपने आप को वह सती होकर समाप्त कर दे। हैरान एक्टर राजा के इस फरमान को सुन अपने परिवार का हवाला देता है। राजा आश्वासन देता है कि तुम्हारे मरने के बाद परिवार को कोई कष्ट नहीं होगा। महल उनकी देखभाल करेगा। कलाकार दुख में डूबी स्त्री के किरदार को खुद में जिंदा करते हुए मौत के मुंह में समा जाता है। सत्ता जो कभी किसी की नहीं हुई, उस कलाकार के परिवार की कोई  सुध नहीं लेती।
केवल दो कलाकारों के अभिनय से सजीव हुए इस नाटक में से एक तो उसके निर्देशक ही थे। चोंगथम जयंत मितई मणिपुर के हैं और नेशनल स्कूल आव ड्रामा की उपज हैं। उसके बाद वे पांच साल के लिए ताईवान चले गए। यह कहानी उन्होंने दिल्ली के एक दोस्त से सुनी थी। एशियाई रंग-मंच के बुनियादी स्तंभों यानी नृत्य, संगीत, मुखौटे, अभिनय  और कथा  कहने की उत्कृष्ट तकनीक को साधते हुए जब अ ट्रू कॉलिंग का मंचन हुआ तब उस पर तालियों और पुरस्कार  की बौछार हुई। ऐसा होना ज़रूरी और अच्छा लगता है क्योंकि नाटक अब भी दिल की आवाज़ है, किसी कमिटमेंट की पैदाईश। यह सिनेमा की तरह सस्ता और बाजारू नहीं हुआ है . प्रतिबद्धता  झलकती है  यहाँ . यहाँ टिकने ने के लिए आपको कुछ एक्स्ट्रा होना पड़ता है। कई मायनों में more.
जयपुर के दर्शकों को भी यह प्रस्तुति भिगो गई। खासकर तब जब हम निदा फाजली साहब  की उन पंक्तियों को पकड़े बैठे हैं कि अमिताभ बच्चन और अजमल कसाब एक जैसे हैं। अमिताभ के एंग्री यंग मैन को दोष देना इसलिए भी अनुचित है क्योंकि वे एक एक्टर हैं। वे किरदार में ढल जाने के लिए समर्पित हैं। एक सच्चे प्रोफेशनल, अगर कोई दोषी है तो उनके किरदारों को लिखने वाले। बेशक कसाब से बडे़ दोषी कसाब जैसों को बनाने वाले हैं। कसाब आतंकवाद के मोर्चे पर कठपुतली है तो अमिताभ के किरदार सिनेमाई माध्यम की। एक ट्रू एक्टर वही करता है जो उसका निर्देशक कहता है। वही उसकी ट्रू कॉलिंग है।

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