जयपुर की महारानी गायत्री देवी नहीं रहीं




जयपुर की महारानी गायत्री देवी का आज जयपुर में निधन हो गया . वे ९० वर्ष की थीं .बुधवार दोपहर संतोकबा दुर्लभजी अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली. कूंच बिहार में जन्मीं गायत्री देवी का असली नाम आयशा था.उनका विवाह जयपुर के महाराजा मानसिंह के साथ १९४० में हुआ. वे उनकी तीसरी पत्नी थीं. उनका रहन-सहन अन्य महारानियों से अलग था .वे घुड़सवारी करतीं गौल्फ़ खेलती शिकार पर जातीं . इन सब के बावजूद गायत्री देवी से सादगी और गरीमा कभी अलग नहीं हुई .वोग पत्रिका ने उन्होंने दुनिया की सबसे खूबसूरत महिलाओं में शुमार किया. मकबूल फ़िदा हुसैन और अमिताभ बच्चन उनके प्रशंसकों में रहे हाँ इंदिराजी से ज़रूर उनका बैर रहा. वे जयपुर से तीन बार सांसद का चुनाव जीतीं लेकिन आपातकाल [१९७५] में उन्हें इंदिरा गाँधी ने तिहाड़ जेल में बंद कर दिया .
पिछले कुछ दिनों से वे अस्पताल में दाखिल थीं . सांस लेने और पेट दर्द की शिकायत के बाद वे कुछ बेहतर भी महसूस कर रहीं थी लेकिन आज जब दफ्तर में यह खबर आयी तो सबके स्वर धीमे हो गए अधिक से अधिक सामग्री देने के जूनून के साथ सब जैसे दर्द को भी जी रहे हैं. इस गरिमावान जीवन और mgd [स्कूल की बुनियाद उस समय पड़ी जब राजपूत लड़कियां परदे में रहती थी ] स्कूल के माध्यम से लड़कियों की शिक्षा की राह आसान करने वाली गायत्री देवी को श्रध्दासुमन .

टिप्पणियाँ

  1. समाचार जानकार खेद हुआ. हम भी उनके प्रशंषकों में से एक हैं. हमारी श्रद्धांजलि.

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  2. सामंत युग के कुछ सबसे प्रखर अवशेषों में से एक थीं…काश विचारों के भीतर के सामंती अवशेष भी ऐसे ही समाप्त हो सकते।

    श्रद्धांजलि

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  3. सभी मैनपुरी वासीयों की और से हमारी श्रद्धांजलि |

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  4. महारानी इंदिरा देवी, महारानी गायत्री देवी की माताजी हैं। महारानी इंदिरा देवी, स्वयं संतान हैं -- Maharaja Sayaji Rao III और महारानी चिम्नाबाई (बरोदा के राजा व रानी )की । महारानी गायत्री देवी के पिताजी हैं : Maharaja Jitendra Narayan Bhup Bahadur, जो, महारानी सुनीति देवी सेन एवं Maharaja Nripendra Nayaran Bhup Bahadur की संतान हैं ।
    महारानी गायत्री देवी , जयपुर की महारानी बनीं।
    आइये, जयपुर राज्य का इतिहास , देखें -
    महाराजा सवाई मान सिंघ २ का जन्म एक साधारण से ग्राम प्रांत में , ठाकुर ( Lieutenant-Colonel ) राजा सवाई सिन्घजी व ठकुराइन, ( ठाकुर श्री उमराव सिंघ कोटला की पुत्री ) , की इसाराडा की कोठी में , अगस्त २१ , १९११ की दिन हुआ था। वे उनकी दूसरी संतान थे और उन्होंने पुत्र का प्यार भरा नाम रखा " मोर मुकुट सिंघ "।
    इस बालक का भविष्य अलग था .. ११ साल की उमर में जयपुर राज्य की गद्दी का वारिस बनते ही ,इसे , शानो शौकत की जिन्दगी नसीब हुई। वही कालांतर में, महाराज सवाई मान सिंघ के नाम से विख्यात हुए। महाराज , पोलो खेल के कुशल खिलाड़ी थे और दुसरे विश्व युध्ध में भी , उन्होंने , हिस्सा लिया था। स्पेन राज्य के दूत भी बने थे एवम कच्छवा राजपुतोँ के वे मुखिया हैँ ।
    उनकी पदवी के मुताबिक , उनका पूरा नाम है -- सरमद -इ -राजा -इ -हीन्दुस्तान , राज राजेश्वर , श्री राजाधिराज् , महाराज सवाई जय सिंघ २ , महाराज।
    १७०० से १७४३ तक उन्हीके पिता ने राज किया जिनके नाम पे , शहर जयपुर को नाम मिला हुआ है। जयपुर शहर की संरचना , उन्हीं के आदेशानुसार हुई है। आम्बेर की पुरानी राजधानी से नयी जयपुर राजधानी का तबादला किया गया।
    बादशाह , मुहम्मद औरंगजेब की बदौलत ही " सवाई " जयपुर राज्य के राजा के नाम के साथ हमेशा के लिए, जोड़ दिया गया ।।
    १८८० से १९२२ , तक , महाराजा सवाई माधो सिंघ २ ने राज किया । एक बार जब् एडवर्ड सप्तम के राज्याभिषेक के समय , इंग्लैंड की यात्रा का अवसर आया , उस वक्त , महाराज की प्यास बुझाने , गंगा जल, चांदी के विशालकाय घडोँ मेँ , समुद्र पार करके ले जाया गया । चूंकि , समुद्रपार करना अपवित्र समझा जाता रहा था उस वक्त , और महाराज, माधो सिंघ , गंगा जल ही वहां इंग्लैंड में भी उपयोग करते रहे ! और , आज भी जयपुर के राजमहल में, वही चांदी के विशालकाय घडे , आज भी पर्यटक देख सकते हैँ !!
    इन को , विश्व के विशालतम चांदी के बरतन , होने का श्रेय भी हासिल है !


    सरमद -इ -राजा -इ -हिंदुस्तान , राज राजेश्वर श्री महाराजधिराजा महाराजा सवाई श्री सर मान सिंघ २, महाराजा ने , १९२२ से १९७० तक , राज किया । " सर " का खिताब उन्हें ब्रितानी सरकार ने दिया था । वे पोलो की टीम लेकर, ब्रिटेन गए जहां ब्रिटिश ओपन , जीते । १९४७ , राजप्रमुख राजस्थान बनकर, जयपुर का कार्यभार सम्हालते रहे - फ़िर , १९६४ से १९७० भारतीय दूत बनकर स्पेन गए । । महाराज जे सिंघ जी तथा महारानी गायत्री देवी ने विदेशों से आए , जैक्लिन केनेडी तथा इंग्लैंड की महारानी एलिज़बेथ द्वितीय २ जैसी हस्तियों का जयपुर में स्वागत सत्कार किया है।
    १९७० तक राज करने वाले महाराज जे सिंघ जी तथा महारानी गायत्री देवी - इस परिवार का इतिहास , मानो भारत वर्ष के इतिहास का आइना - सा , लगता है - जहां, आपको मुगलिया सल्तनत के साथ साथ राजपूतों का मिला जुला इतिहास, दिखाई देता है और ब्रितानी ताकत के साथ बदलते समाज व राजघरानों का इतिहास भी दीखता है जो , भारत की आज़ादी के समय तक आ पहुंचता है ....
    ........आज, भी , जयपुर राज्य , सैलानियों के लिए प्रमुख आकर्षण का केन्द्र है जिसकी वजह से ही , आतंकवादीयों के निशाने से घायल है ये गुलाबी शहर ...
    आगे , इतिहास की प्रतीक्षा करता हुआ , अतीत को संजोए , आप की प्रतीक्षा करता ...
    - लावण्या
    ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

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  5. श्रधांजलि..!!
    एक युग का समापन हुआ...ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे ..!!

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  6. दीप्तिजी सुब्रमनियनजी अशोकजी प्रदीपजी शिवमजी लावय्नाजी और वानीजी गम में शिरकत का शुक्रिया लेकिन अशोकजी से कहना चाहूंगी की गायत्री देवी केवल एक प्रखर सामंती अवशेष नहीं थी, उन्होंने आधी आबादी पर लगे परदों को उतरा .. डिस्कवरी ने पोर्ट्रेट के तहत उन पर लम्बी श्रंखला केवल इसलिए नहीं बनायीं क्योंकि वे एक khoobsoorat maharani थी. उन्होंने प्रजातंत्र में भी खुद को सिद्ध किया तीन बार संसद का चुनाव जीता. स्त्री होकर खुद पर गर्व कर पाना आयर अपने मुताबिक ज़िन्दगी जी पान उस काल खंड मेंआसन नहीं था जन्म से आप क्या हैं यह तय कर पाना किसी के भी हाथ नहीं लेकिन अपने कर्मों से उन्होंने कभी सामंतवाद का झंडा बुलंद नहीं किया. धन और सौंदर्य तो कई महारानियों के पास हैं लेकिन बुलंद शख्सीयत नहीं .

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  7. उनकी समाज सेवा से इंकार नहीं…

    पर महारानी महारानी ही होती हैं…
    स्कूल तो अंग्रेज़ों ने भी खोले थे…
    खैर मृत्यु इस बहस का सही समय नहीं है।

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  8. I've already written on Maharani. Here , i salute u Varsha for answering shri Ashok ji !Long live Maharani !

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  9. आज एक अरसे बाद कुछ मन से पढ़ने लिखने लायक हुआ हूँ तो चला आया आपके द्वार.
    महारानी को श्रद्धांजली में आपने बड़े सटीक विषयों को उठाया है, उनको सिर्फ इस रूप में नहीं देखा जा सकता कि वे सामंत थी, उनकी उपस्थिति से क्रिया कलाप से सब चापलूस चिंतित थे वे पीढीयों से अंधी परम्पराओं में जकड़े हुए, उनके हर कदम पर तिलमिलाते थे. उनमे कोई विद्रोही स्वभाव भले ही मुखरित ना था पर वे एक राजपूत परिवार की वो स्त्री नहीं बनी जिसको झरोखे से दुनिया को देखना था परदे कि ओट से किच्कारी मारते हुए अपने आप को व्यक्त करना होता था. राजपरिवारों के शोषण पर भले ही अशोक जी झंडे उठाते रहें और मुनीश जी आपका समर्थन करते हों पर अतीत से सीखते हुए वर्तमान के साथ चलने और भविष्य को देख पाने का साहस गायत्री देवी में था उन्होंने राजपरिवार के सामर्थ्य का उपयोग सद्कार्यों के लिए किया था वे उन सब शोषकों से बेहतर थी इसी लिए उनको सम्मान हैं श्रद्धांजलि है !!

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  10. आज़ादी की 62वीं सालगिरह की हार्दिक शुभकामनाएं। इस सुअवसर पर मेरे ब्लोग की प्रथम वर्षगांठ है। आप लोगों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष मिले सहयोग एवं प्रोत्साहन के लिए मैं आपकी आभारी हूं। प्रथम वर्षगांठ पर मेरे ब्लोग पर पधार मुझे कृतार्थ करें। शुभ कामनाओं के साथ-
    रचना गौड़ ‘भारती’

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